लक्ष्मी विलास बैंक: 94 साल पुराने बैंक का दुखद अंत, जानिए सफर की पूरी कहानी

लक्ष्मी विलास बैंक दक्षिण भारत के सबसे पुराने बैंकों में से एक है। इससे पहले की बैंक अपने 100 साल का सफर पूरा करता 94 पर बोल्ड हो गया। कैबिनेट ने लक्ष्मी विलास बैंक को सिंगापुर के सबसे बड़े बैंक DBS की भारतीय इकाई में विलय की मंजूरी दे दी। इसी के साथ 94 साल पुराने इस बैंक का नामोनिशान हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
फाइनल स्कीम के तहत लक्ष्मी विलास बैंक का अस्तित्व 27 नंवबर को खत्म हो जाएगा और इसके शेयर एक्सचेंज से डीलिस्ट हो जाएंगे। इसके पहले कि लक्ष्मी विलास बैंक हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाए जानते हैं इसके अब तक के सफर के बारे में।
कैसे हुई शुरुआत?
लक्ष्मी विलास बैंक की शुरुआत तमिलनाडु के करूर में कारोबारियों के एक समूह ने की थी। छोटे बिजनेस के लिए लोन देकर यह बैंक तेजी से बढ़ा। लेकिन इसके पहले कि बैंक 100 साल पूरे कर पाता DBS India Bank में इसका विलय साफ हो गया है।
बैंक की वेबसाइट के मुताबिक, 7 लोगों ने मिलकर इस बैंक की शुरुआत की थी। बुधवार को विलय पर कैबिनेट की मुहर लगने के बाद नाम जाहिर ना करने की शर्त पर बैंक के फाउंडर में से एक के परिवार के एक सदस्य ने मनीकंट्रोल से बात करते हुए अपने पुराने दौर को याद किया।
उस शख्स ने कहा, "आप देख सकते हैं कि हमारे पूर्वजों ने बैंक के लिए शुरुआती पूंजी जमा करने के लिए कितनी मेहनत की थी। उनलोगों ने कई लोगों से फंड जुटाया था। आज का दिन दुखद है।"
लक्ष्मी विलास बैंक की शुरुआत तमिलनाडु के टेक्सटाइल सिटी करूर के कारोबारियों की फाइनेंशियल जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई थी। बैंक के ग्राहक छोटे और मझोले कारबोरी थे जो कारोबार या खेती करते थे। इंडियन कंपनीज एक्ट 1913 के तहत 3 नवंबर 1926 को इस बैंक को शुरू किया गया था। इसे 10 नवंबर 1926 को बिजनेस शुरू करने का सर्टिफिकेट मिला था। यह संयोग है कि 94 साल बाद यह बैंक का अस्तित्व भी नवंबर में ही खत्म हुआ।
लक्ष्मी विलास बैंक को 19 जून 1958 को RBI से बैंकिंग लाइसेंस मिला था और 11 अगस्त 1958 को यह शिड्यूल कमर्शियल बैंक बन गया।
कब शुरू हुआ बुरा दौर?
पिछले कुछ साल में जब किसी बैंक के ग्रोथ को उसके लोन बुक से जोड़कर देखा जाने लगा तो इसका बुरा दौर शुरू हुआ। 4-5 साल पहले लक्ष्मी विलास बैंक ने रिटेल, MSME और SME को आक्रामक ढंग से बड़े लोन बांटना शुरू कर दिया। बड़े लोन से बैंक का लोन बुक तो बड़ा हो गया लेकिन यही इसकी मुसीबत बन गया। अर्थव्यवस्था में तेजी ना आने की वजह से बैंक का लोन NPA बन गया। एनालिस्ट्स के अनुमान के मुताबिक, बैंक का 3000-4000 करोड़ रुपए का कॉरपोरेट लोन बैड लोन है।
NPA बहुत ज्यादा बढ़ने के कारण सितंबर 2019 में RBI को प्रॉम्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) फ्रेमवर्क के तहत सख्त कदम उठाने पड़े। PCA एक कैटेगरी है जिसके तहत रेगुलेटर कमजोर बैंक और उसके कारोबार की निगरानी करता है। उस वक्त लक्ष्मी विलास बैंक का ग्रॉस NPAs 17 फीसदी से ज्यादा था। 2018-19 में बैंक को 894 करोड़ रुपए का लॉस हुआ था।
पिछले 10 तिमाही से लक्ष्मी विलास बैंक को लगातार लॉस हो रहा है। 30 सितंबर को खत्म तिमाही में टैक्स पेमेंट के बाद नेट लॉस 396.99 करोड़ रुपए का था। एक साल पहले इसी तिमाही में बैंक का नेट लॉस 357.18 करोड़ रुपए था।
मददगार की तलाश
NPA बढ़ने के कारण बैंक के पास अपना कारोबार बेचने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। दूसरे शब्दों में कहें तो बैंक खुद किसी बैंक के साथ विलय करना चाहता था ताकि कैश की दिक्कत खत्म हो। इसने इंडियाबुल्स फाइनेंस सहित कई NBFC से बातचीत की थी। इंडियाबुल्स अधिग्रहण के लिए राजी भी था लेकिन अक्टूबर 2019 में RBI ने बिना कोई वजह बताए इस डील पर औपचारिक रोक लगा दी।
इसके बाग Clix Group आया। लक्ष्मी विलास बैंक प्रमोग भसीन के इस NBFC के साथ डील करना चाहता था। अक्टूबर 2020 में लक्ष्मी विलास बैंक ने स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी थी कि इसे Clix Group से इंडिकेटिव नॉन बाइंडिंग ऑफर मिला है। इससे पहले 15 सितंबर को बैंक ने बताया कि दोनों पक्षों ने ड्यू डिलिजेंस (बहीखातों की जांच) कर ली है। Clix Group के साथ डील को लेकर लक्ष्मी विलास बैंक के निवेशक भी उत्साहित थे लेकिन यह उत्साह ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाया।
RBI ने बैंक पर मोरेटोरियम लागू करने के कुछ मिनटों के बाद ही यह ऐलान कर दिया कि DBS India बैंक के साथ इसका विलय होगा। इसके बाद लक्ष्मी विलास बैंक के शेयरों में जबरदस्त गिरावट रही। इसके शेयरों में लगातार लोअर सर्किट लग रहा था। हालांकि बुधवार को जब 3 बजे कैबिनेट यह ऐलान किया कि DBS अब लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण करेगा तो इसके शेयरों में तेजी आई। 25 नवंबर को कारोबार बंद होने तक लक्ष्मी विलास बैंक के शेयर 4.79 फीसदी चढ़कर 7.65 रुपए पर बंद हुए।
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