Bihar Elections: 5 कारण कैसे बिहार के 'बाइडन' नहीं, 'डोनाल्ड ट्रंप' बने नीतीश कुमार

Bihar Election Results: बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है! बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझानों में एक बार फिर यह बात साबित हो गई है। जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य की राजनीति में अब भी एक मजबूत और निर्णायक चेहरा बने हुए हैं। 20 सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं दिख रही है

अपडेटेड Nov 14, 2025 पर 2:48 PM
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Bihar Election Results: दोपहर 1.30 बजे तक के रुझानों में, जेडीयू 101 में 80 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी

Bihar Election Results: बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है! बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती रुझानों में एक बार फिर यह बात साबित हो गई है। जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य की राजनीति में अब भी एक मजबूत और निर्णायक चेहरा बने हुए हैं। 20 सालों तक सत्ता में रहने के बावजूद नीतीश के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं दिख रही है। दोपहर 1.30 बजे तक के रुझानों में, जेडीयू 101 में 80 सीटों पर बढ़त बनाए हुए थी।

विधानसभा चुनावों के ऐलान के समय नीतीश कुमार की हर तरफ से आचोलना सुनाई दे रही थी। यहां तक कि उनक कार्यक्षमता और स्वास्थ्य को लेकर भी अफवाहें उड़ाई गईं। तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसी विपक्षी नेताओं ने उन्हें पद छोड़ने की सलाह तक दे डाली। नीतीश कुमार की उम्र, थकान और कई मौकों पर कुछ बातों को भूलने का हवाला देते हुए उन्हें 'बिहार का बाइडेन' कहा जाने लगा था।

लेकिन शुक्रवार के चुनावी नतीजे ने साफ कर दिया कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पकड़ आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी दो दशक पहले हुआ करती थी।


यहां समझिए वे 5 बड़े फैक्टर जिन्होंने NDA की जीत में नीतीश कुमार की अहम भूमिका तय की-

1. महिलाओं का मजबूत समर्थन

पिछले कई चुनावों से महिलाएं नीतीश कुमार के सबसे स्थायी और भरोसेमंद वोट बैंक रही हैं। इस चुनाव में भी महिलाओं का वोट प्रतिशत 71.6% रहा, जो पुरुषों के मुकाबले करीब 8 प्रतिशत ज्यादा था। साल 2005 में सत्ता में आने के बाद से ही उन्होंने लड़कियों के लिए साइकिल-यूनिफॉर्म योजना, शराबबंदी, रोजगार कार्यक्रम और मातृ कल्याण जैसे कदम उठाए। ‘जीविका दीदी’ नेटवर्क ने जेडीयू का संगठन गांव-गांव तक फैला दिया और महिलाओं को पार्टी की रीढ़ बना दिया।

2. डायरेक्ट ट्रांसफर योजनाओं का असर

‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ के तहत एक करोड़ से अधिक महिलाओं को 10,000 रुपये का सीधा लाभ मिला। दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश और बंगाल में जिस तरह डायरेक्टर कैश ट्रांसफर (DBT) योजनाओं ने चुनावी नतीजे बदले हैं, बिहार में भी यही फैक्टर नीतीश के पक्ष में गया।

3. कानून-व्यवस्था पर भरोसा

लालू प्रसाद यादव के शासनकाल में लगे ‘जंगल राज’ के टैग को नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति का बड़ा मुद्दा बनाया। 2005 के बाद से कानून-व्यवस्था में सुधार का श्रेय उन्हें मिलना शुरू हुआ और आज भी यह एक मजबूत राजनीतिक पूंजी है, जिसने उन्हें सुरक्षा पसंद वोटरों का समर्थन दिलाया।

4. सोशल इंजीनियरिंग की पकड़

नीतीश कुमार ने OBC, EBC, महादलितों और महिलाओं का एक स्थायी गठजोड़ तैयार किया है। कुर्मी-कोयरी समुदाय, 26% अत्यंत पिछड़ा वर्ग, महादलित और महिला वोट बैंक। यह सामाजिक समीकरण बीजेपी के लिए भी बेहद फायदेमंद साबित हुआ।

5. NDA का चेहरा 'नीतीश कुमार'

चुनाव से पहले BJP ने भले ही उन्हें आधिकारिक तौर पर सीएम फेस घोषित न किया हो, लेकिन “25 से 30, फिर से नीतीश” जैसे पोस्टरों ने माहौल साफ कर दिया था। बाद में बीजेपी ने भी स्पष्ट किया कि NDA की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे। यही भरोसा स्थिरता चाहने वाले वोटरों को आकर्षित करता रहा।

ये बताता है कि लगातार राजनीतिक उलटफेरों के बावजूद नितीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे टिकाऊ और प्रभावशाली नेता बने हुए हैं।

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