
पति की मृत्यु हो जाने पर पत्नी को हसबेंड की नौकरी मिल जाती है। लेकिन दिक्कत तब आती है जब पत्नी की उम्र नौकरी की एज लिमिट से आगे निकल जाती है। अब ऐसे ही मामले ने हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। उम्र निकल जाने पर विधवा पत्नी को पति की नौकरी मिलेगी। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि पत्नी की उम्र तय लिमिट से ज्यादा है, उसे कम कंपैशनेट जॉब से अलग नहीं किया जा सकता। इंसानियत और परिवार की जरूरत को नियमों से ऊपर रखा जाना चाहिए।
क्या है मामला?
47 साल की सरोजा जिनके पति कोंडई KSRTC में 2006 से काम कर रहे थे, 27 सितंबर 2023 को ड्यूटी के दौरान ही उनका निधन हो गया। वे ही परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य थे। पति की मौत के बाद सरोजा ने कंपैशनेट अपॉइंटमेंट के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन किया, ताकि परिवार का गुजारा चल सके। लेकिन 17 जनवरी 2025 को KSRTC ने उनकी एप्लिकेशन यह कहते हुए ठुकरा दी कि उनकी उम्र 47 साल है, जबकि योजना में अधिकतम उम्र की लिमिट 43 साल तय की गई है। सरोजा ने इस फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
हाई कोर्ट ने क्यों दिया सरोजा के पक्ष में फैसला?
कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि कंपैशनेट नियुक्ति का मकसद दुखी परिवार को तुरंत आर्थिक संबल देना है। उम्र की लिमिट को मशीन की तरह लागू करना इंसानियत के खिलाफ है। पहले भी इसी तरह के मामलों में कोर्ट ने उम्र की लिमिट सीमा को अनदेखा कर नियुक्ति का हक दिया है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के केनरा बैंक vs. Ajithkumar (2025) फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी संस्था को उम्र देखने से पहले यह देखना चाहिए कि परिवार वास्तव में आर्थिक संकट में है या नहीं।
कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?
हाई कोर्ट ने KSRTC के आदेश को रद्द् कर दिया है। साथ ही KSRTC को निर्देश दिया गया कि वह सरोजा के आवेदन पर आठ सप्ताह के अंदर दोबारा विचार करे और यह देखे कि उनकी उम्र लिमिट को खास परिस्थिति में कैसे मैनेज किया जा सकता है। यह फैसला सिर्फ सरोजा के लिए नहीं, बल्कि उन सभी परिवारों के लिए बड़ी राहत है जिनका जीवन अचानक किसी कमाने वाले की मौत से जिंदगी अस्त-व्यस्त हो जाती है। कर्नाटक हाई कोर्ट का यह फैसला उन सभी सरकारी कर्मचारियों के परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है जो कठिन परिस्थितियों में उम्र के कारण नौकरी पाने के लए संघर्ष कर रहे हैं।
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