संसद में पेश की गई एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि दिल्ली के छह बड़े सरकारी अस्पतालों में 2022 से 2024 के बीच 2,04,758 लोगों को अचानक होने वाली सांस की बीमारी यानी एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (ARI) की वजह से इमरजेंसी में आना पड़ा। इनमें से 30,420 मरीज, यानी करीब 15% की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। यह आंकड़े दिखाते हैं कि दिल्ली की लगातार बढ़ती वायु प्रदूषण की समस्या लोगों की सेहत पर कितना गंभीर असर डाल रही है।
यह आंकड़े स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने राज्यसभा सांसद डॉ. विक्रमजीत सिंह साहनी (मनोनीत) की ओर से पूछे गए सवाल संख्या 274 के जवाब में दिए।
डॉ. सहनी ने सरकार से खास तौर पर तीन सवाल पूछे थे:
सरकार ने संसद में छह बड़े अस्पतालों (AIIMS, सफदरजंग, LHMC समूह, RML, NITRD, VPCI) के आंकड़े भी बताए। इनके अनुसार इमरजेंसी विभाग (Emergency) में आए अक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (ARI) मामलों और भर्ती मरीजों की साल-दर-साल स्थिति इस तरह रही:
2024 में इमरजेंसी में आने वाले कुल मरीजों की संख्या थोड़ी कम हुई, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या काफी बढ़ गई। इससे पता चलता है कि अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों की हालत पहले की तुलना में ज्यादा गंभीर होने लगी है।
सरकार ने भी माना कि वायु प्रदूषण सांस से जुड़ी बीमारियों का एक बड़ा कारण है। हालांकि, उसने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की सेहत पर असर कई दूसरी बातों पर भी निर्भर करता है, जैसे खानपान, काम करने का माहौल, आर्थिक स्थिति और पहले से मौजूद बीमारियां।
लगातार बढ़ रहे वैज्ञानिक सबूत
ICMR (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) की पांच शहरों में की गई एक बड़ी स्टडी में पाया गया कि जब-जब प्रदूषण बढ़ा, अस्पतालों के इमरजेंसी विभाग में सांस संबंधी शिकायतों वाले मरीजों की संख्या भी बढ़ गई। 33,000 से ज्यादा मरीजों के डेटा के आधार पर यह साफ दिखा कि खराब होती हवा और सांस की बीमारियों के बीच गहरा संबंध है। हालांकि, यह स्टडी सीधे यह साबित नहीं कर पाई कि प्रदूषण ही बीमारी का सीधा कारण है।
इसी बीच, NCDC (नेशनल सेंटर फॉर डिज़ीज कंट्रोल) ने अगस्त 2023 से हवा से जुड़ी बीमारियों की डिजिटल निगरानी को और बढ़ाया है। अब इंटीग्रेटेड हेल्थ इंफॉर्मेशन प्लेटफॉर्म (IHIP) के जरिए 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 230 से ज्यादा अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों से डेटा एकत्र किया जा रहा है। इसमें दिल्ली के छह केंद्र भी शामिल हैं।