Ram Mandir: किसी बालक की तरह करते हैं भगवान राम की पूजा, क्या है रामानंदी संप्रदाय? राम मंदिर में इसी परंपरा से होगा पूजा-पाठ
Ram Mandir Inauguration: इस संप्रदाय के लोग खुद को भगवान के बेटे लव और कुश का वंशज मानते हैं। ये संप्रदाय राम की भक्ति करता है। उसका मूल मंत्र है ‘ओम रामाय नमः’। रामानंदी संप्रदाय के लोग मुख्य रूप से राम, सीता और हनुमान के साथ सीधे विष्णु और उनके दूसरे अवतारों की पूजा पर जोर देते हैं। आइए आज इसी रामानंदी संप्रदाय के बारे में और भी ज्यादा गहराई से जानने की कोशिश करते हैं
Ram Mandir: किसी बालक की तरह करते हैं भगवान राम की पूजा, क्या है रामानंदी संप्रदाय? राम मंदिर में इसी परंपरा से होगा पूजा-पाठ
Ram Mandir Inauguration: जैसे-जैसे अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) प्राण प्रतिष्ठा समारोह नजदीक आ रहा है, भक्तों के बीच उत्साह भी नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है। 22 जनवरी को होने वाले भव्य कार्यक्रम में देश भर के राजनेताओं, मशहूर हस्तियों और गणमान्य व्यक्तियों की भारी भीड़ जुटने की उम्मीद है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया था राम का मंदिर रामानंदी परंपरा का है, ये न शैव, शाक्त का और न ही संन्यासियों का... राम मंदिर के प्रबंधन के केंद्र में भी रामानंदी संप्रदाय (Ramanandi Sampradaya) है, जो वैष्णवों का सबसे बड़ा संप्रदाय है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम से अपने गहरे संबंध के लिए जाना जाता है।
इस संप्रदाय के लोग खुद को भगवान के बेटे लव और कुश का वंशज मानते हैं। ये संप्रदाय राम की भक्ति करता है। उसका मूल मंत्र है ‘ओम रामाय नमः’। रामानंदी संप्रदाय के लोग मुख्य रूप से राम, सीता और हनुमान के साथ सीधे विष्णु और उनके दूसरे अवतारों की पूजा पर जोर देते हैं। आइए आज इसी रामानंदी संप्रदाय के बारे में और भी ज्यादा गहराई से जानने की कोशिश करते हैं।
किसने और कैसे की रामानंदी संप्रदाय की शुरुआत?
रामानंदी संप्रदाय की जड़ें स्वामी रामानंदी से जुड़ी हैं, जिन्हें सम्मानपूर्वक स्वामी जगतगुरु श्री रामानंदाचार्य के नाम से संबोधित किया जाता है। मध्ययुगीन भारत में भक्ति आंदोलन के अग्रणी, उन्होंने वैष्णव बैरागी संप्रदाय की स्थापना की, जिसका मकसद समाज में जाति-आधारित भेदभाव को खत्म करना था।
स्वामी रामानंदी ने इस आदर्श वाक्य के साथ एक नया संप्रदाय शुरू किया कि 'जाति-आधारित मतभेद धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में बाधा नहीं बनना चाहिए'। रामानंदी संप्रदाय अब 36 उप-शाखाओं में विकसित हो गया है।
इस सब के पीछे भी एक छोटी सी कहानी है, दरअसल तीर्थ यात्रा करने के बाद जब रामानंदी घर आए और गुरुमठ पहुंचे, तो उनके गुरुभाइयों ने उनके साथ भोजन करने में आपत्ति जताई। उनका मनना था कि रामानंदी ने अपनी तीर्थ यात्रा में जरूर खाने पाने से जुड़े छुआछूत के बारे में नहीं सोचा होगा।
इसके बाद रामानंदी ने अपने शिष्यों से एक नया संप्रदाय चलाने की सलाह ली, जिसमें जात-पात धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में आड़े न आए। बस यहीं से रामानंदी संप्रदाय का जन्म हुआ।
स्वामी रामानंदीाचार्य ने समाज के सभी वर्गों में भगवान श्री राम की भक्ति का प्रचार किया। वह 15वीं शताब्दी के एक धार्मिक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने बड़ी संख्या में अनुयायियों को प्रेरित किया और आखिरकार रामानंदी संप्रदाय का गठन किया।
रामानंदी संप्रदाय से जुड़ी कुछ खास बातें:
- ये संप्रदाय बैरागियों के 4 प्राचीन संप्रदायों में से एक है।
- इसे बैरागी संप्रदाय, रामावत संप्रदाय और श्री संप्रदाय भी कहते हैं।
- काशी में पंचगंगा घाट पर रामानंदी सम्प्रदाय का प्राचीन मठ भी है।
- इस संप्रदाय के साधु-संन्यासी शुक्लश्री, बिंदुश्री और रक्तश्री आदि तरह के तिलक लगाते हैं।
- इस संप्रदाय के लोग भगवान राम की पूजा एक बालक के रूप में करते हैं। इसका मतलब ये कि जैसा एक बच्चे का ध्यान रखा जाता है, ठीक उसी तरह की पद्धति से भगवान की पूजा करने का विधान है।
- इसमें भगवान को छोटे बच्चे की तरह सुबह जगाना, उन्हें स्नान करवाना, उनका आकर्षक श्रंगार करना और भोजन करवाना शामिल है।
जैसे-जैसे प्रतिष्ठा समारोह नजदीक आ रहा है, रामानंदी संप्रदाय के संत 22 जनवरी को भगवान राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान महत्वपूर्ण अनुष्ठान करने जा रहे हैं। संप्रदाय के संत अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए अलग-अलग जिम्मेदारियां भी निभा रहे हैं। अयोध्या के ज्यादातर मंदिर इसी पूजा पद्धति का पालन करते हैं।