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EXCLUSIVE :'लोग कहते थे इसपर पैसे बर्बाद मत करो...आज वही करते हैं तारीफ', आर्चरी की जादूगर शीतल देवी की कहानी

Sheetal Devi : शीतल देवी, पैरों से धनुष चलाने वाली कमाल की खिलाड़ी। एक कुर्सी पर बैठकर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाना, फिर दाहिने कंधे का इस्तेमाल कर स्ट्रिंग को पीछे खींचना और जबड़े की ताकत से तीर को छोड़ना... शीतल देवी को आर्चरी करते देखना ऐसा है मानो किसी जादूगर ने अभी कमाल का जादू दिखाया हो और आप अपनी आंखों पर यकीन ना कर पा रहे हो

अपडेटेड Oct 08, 2025 पर 5:04 PM
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Sheetal Devi महज 18 साल की उम्र में पैरा विश्व तीरंदाजी चैंपियन बनीं

'जब आप कुछ नहीं होते तो आपके साथ कोई भी नहीं होता...जब आप कुछ हो जाते हो तो फिर आपके साथ काफी लोग दिखते हैं। शुरुआत में तो मुझपर किसी को भरोसा ही नहीं था...लोग मेरे मां-बाप से कहते थे कि इसपर पैसे क्यों बर्बाद कर रहे हो, आज वहीं लोग जब मेरी तारीफ करते हैं तो मुझे सबसे ज्यादा सुकून मिलता है।', ये सारे शब्द शीतल देवी ने खुद हमसे बात करते हुए कहे। शीतल देवी, पैरों से धनुष चलाने वाली कमाल की खिलाड़ी। एक कुर्सी पर बैठकर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाना, फिर दाहिने कंधे का इस्तेमाल कर स्ट्रिंग को पीछे खींचना और जबड़े की ताकत से तीर को छोड़ना... शीतल देवी को आर्चरी करते देखना ऐसा है मानो किसी जादूगर ने अभी कमाल का जादू दिखाया हो और आप अपनी आंखों पर यकीन ना कर पा रहे हो।

हासिल किया ये बड़ा मुकाम

महज 18 साल की उम्र में शीतल देवी पैरा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियन बन चुकीं हैं। भारत की पहली और अभी दुनिया में एक मात्र आर्मलेस आर्चर शीतल देवी ने महिलाओं की कंपाउंड व्यक्तिगत वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उन्होंने तुर्किये की वर्ल्ड नंबर-1 ओजनूर क्यूर गिर्डी को 146-143 से हराया।


शीतल देवी जम्मू कश्मीर की एक छोटे से गांव किश्तवाड़ की रहने वाली हैं। 18 साल की शीतल फोकोमेलिया नाम की जन्मजात बीमारी से पीड़ित हैं। शीतल का जन्म 2007 में फोकोमेलिया नामक एक दुर्लभ जन्मजात विकार के साथ हुआ था जिसके कारण उसके अंग अविकसित रह जाते हैं। बचपन से उनके दोनों हाथ नहीं हैं, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी। उन्होंने पहले पेरिस और अब चीन में भारत का नाम रोशन किया है। मनीकंट्रोल से बात करते हुए शीतल देवी ने बताया कि, शुरुआत में लोग मुझेपर यकीन ही नहीं करते थे, गिनती के लोग थे जिन्होंने मुझपर यकीन करते थे पर आप मेहनत से हर चीज बदल सकते हो और यही मैंने भी किया। काफी मेहनत की...हर दिन में करीब तीन सौ के आसपास तीर चलाती थी। शायद इस मेहनत की ही नतीजा थी कि मैंने मेडल जीते। आज जब लोग मुझे पहचानते हैं और मेरा नाम लेते हैं तो वो खुशी सबसे अलग होती है।

तीन साल में बनी आर्चरी की जादूगर

18 साल की उम्र में इतिहास रचने वाली शीतल ने 15 साल की उम्र तक धनुष-बाण देखा तक नहीं था। 2022 उनके लिए एक बड़ा बदलाव लेकर आया। शीतल ने अपनी एक परिचित के कहने पर जम्मू के कटरा में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड खेल परिसर का दौरा किया। ये उनके घर से लगभग 200 किमी (124 मील) की दूरी पर है। वहां उनकी मुलाकात ऐसे लोगों से हुई जिन्होंने उन्हें आर्चरी की दुनिया से परिचित कराया। इसके बाद वो जल्द ही कटरा शहर में शिफ्ट होकर ट्रेनिंग करने लगीं और 2 साल के अंदर पैरालंपिक में वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया है। शीतल का सफर खेल से कहीं आगे की है। शीतल पूरी दुनिया के लिए साहस और दृढ़ता का प्रतीक हैं। उनकी कहानी दुनिया भर में अनगिनत लोगों को प्रेरित करती है। उनकी विरासत तीरंदाजी रेंज से आगे तक फैली है, जो एक पीढ़ी को चुनौतियों को स्वीकार करने और अपने सपनों का दृढ़ता से पीछा करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

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