बिहार का यह विधानसभा चुनाव जनता से राजनीतिक दलों के बड़े वादों के लिए लंबे समय तक याद किया जाएगा। इस बार सीधे लोगों के अकाउंट में कैश ट्रांसफर करने सहित कई बड़े वादे किए गए हैं।खास बात यह है कि इस रेस में कोई राजनीतिक दल पीछे नहीं है। जिस तरह चुनावी मैदान पर मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है, उसी तरह मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की होड़ भी इन्हीं दोनों गठबंधनों के बीच दिख रही है।
एनडीए ने लगाई वादों की झड़ी
बिहार की NDA की सरकार ने तो चुनाव के ऐलान से पहले ही स्कीमों की झड़ी लगा दी थी। एनडीए ने 10,000 रुपये एक करोड़ महिलाओं के खाते में डालने का वादा किया है। सरकार ने कहा है कि इस पैसे का इस्तेमाल महिलाएं छोटे बिजनेस शुरू करने के लिए कर सकेंगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह नहीं बताया गया है कि 10,000 रुपये में कौन-कौन से बिजनेस शुरू किए जा सकते हैं। इस स्कीम पर करीब 10,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे। मंथली पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये का वादा किया गया है। इसका फायदा एक करोड़ लोगों को मिलेगा। इस पर 8,400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। सरकार ने पहले ही 125 यूनिट्स बिजली फ्री कर दी है। इस पर 3,800 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। बेरोजगारी भत्ता हर महीने 1,000 रुपये देने का वादा किया गया है।
रेवड़ियां बांटने में महागठबंधन भी पीछे नहीं
उधर, महागठबंधन ने हर परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया है। आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये देने का वादा किय गया है। इसका फायदा करीब 10 लाख महिलाओं को मिलेगा। इस स्कीम पर करीब 30,000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। महागठबंधन ने कहा है कि वह हर महीने परिवारों को 200 यूनिट्स बिजली मुफ्त देगी। इस पर करीब 6000 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। यह ध्यान देने वाली बात है कि बिहार की एनडीए सरकार पहले से हर परिवार को 125 यूनिट्स बिजली फ्री दे रही है। पहली बार बिहार में चुनाव लड़ रहे जनसुराज ने कहा है कि वह मासिक पेंशन 400 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये करेगी। इसका फायदा करीब 1 करोड़ लोगों को होगा। इस पर करीब 19,200 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
राज्य की आर्थिक हालत पहले से ही खराब
एक्सपर्ट्स का कहना है कि बाहर की आर्थिक हालत पहले ही सस्ती है। बिहार आबादी के हिसाब से भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। पहले से ही राज्य सरकार पर कर्ज का बोझ काफी ज्यादा है। शराबबंदी के बाद राज्य सरकार के लिए राजस्व का एक बड़ा स्रोत काफी पहले ही बंद हो चुका है। सालाना बजट का बड़ा हिस्सा सरकारी एंप्लॉयीज की सैलरी पेमेंट पर खर्च हो जाता है। राज्य की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है।
आबादी के लिहाज से कई छोटे राज्यों के मुकाबले छोटा बजट
अगर पिछले कुछ सालों के राज्य के बजट को देखा जाए तो यह देश के दूसरे राज्यों के बजट के मुकाबले काफी कम है। उदाहरण के लिए बिहार से काफी कम आबादी वाले राजस्थान का 2025-26 का बजट 5,37,000 करोड़ रुपये का है। यहां तक कि पश्चिम बंगाल का 2025-26 का बजट 3,89,000 करोड़ रुपये का है। इसके मुकाबले बिहार का 2025-26 का बजट सिर्फ 3,16,000 लाख करोड़ रुपये का है।
सरकार के पैसा पूंजीगत खर्च के लिए नहीं बचता पर्याप्त पैसा
आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार के रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा एंप्लॉयीज की सैलरी और मुफ्त की स्कीमों पर खर्च हो जाता है। ऐसे में पूंजीगत खर्च के लिए पर्याप्त पैसे नहीं बचते है। किसी भी राज्य के तेज विकास के लिए पूंजीगत खर्च का बढ़ना जरूरी है। इस बार चुनाव में राजनीतिक दल लोगों को कैश ट्रांसफर वाली स्कीमों का ऐलान कर रहे हैं, नौकरियां देने का वादा कर रहे हैं। लेकिन वे यह नहीं बता रहे हैं कि इनके लिए उनकी सरकार बनने पर पैसे का इंतजाम किस तरह से होगा।