
Cinema Ka Flashback: एक जमाना था जब हिंदी फिल्मों का मेन आकर्षण हीरो-हीरोइन नहीं, बल्कि फिल्म में विलेन हुआ करता था। खास कर 60 से लेकर 80 के दशक तक, हर फिल्म का मेन एक्टर विलेन ही होता था। वहीं अगर फिल्म में विलेन प्राण हो तो क्या ही कहना। हर बड़े से बड़ा सुपरस्टार उनके सामने फीका पड़ जाता था। चाहे कितने बड़े सितारे ही क्यों न मेन लीड में हो, प्राण पूरी लाइम लाइट चुरा लेते थे। पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान इलाके में जन्मे प्राण कृष्ण सिकंद ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वह एक दिन हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बादशाह कहलाएंगे।
काफी कम लोगों को पता है कि प्राण साहब ने कभी भी एक्टर बनने का सपना नहीं देखा था। उन पर फोटोग्राफी का खुमार चढ़ा हुआ था। उन्होंने अपने पैशन के लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया। कुछ दिन दिल्ली में काम भी किया, लेकिन मन मुताबिक काम नहीं मिला तो वह लाहौर पहुंच गए। एक दिन वहां वह एक पान की दुकान के सामने पान खाने पहुंचे। इसी जगह पर लेखक वली मोहम्मद वली की उन पर नजर पड़ी और फिल्मों के लिए उनसे बात कर ली गई। बिना मन के प्राण ने उनके साथ फिल्म ‘यमला जट्ट’ शूट की। फिल्म ने सफलता के झंडे गाढ़ दिए थे।
प्राण साहब को एक्टर नहीं बनना था। लेकिन उन्होंने फिर भी ये फिल्म की थी। उनके साथ फिल्म में नूरजहां नजर आई थीं। खास बात ये थी कि एक्ट्रेस की भी ये डेब्यू ही फिल्म थी। इस फिल्म के बाद प्राण एक से बढ़कर एक फिल्मों में नजर और बॉलीवुड के आइकॉनिक विलेन का ताज उनके सिर पर सज गया।
उनका हर एक किरदार चाहे वह 'मिलन' का क्रूर जमींदार हो या 'जंजीर' का शेर खान, दर्शकों के दिलों में अपनी गहरी छाप छोड़कर गया। उनकी आवाज, उनकी आंखों के इशारे और उनके चेहरे पर एक खास किस्म की मुस्कान...वहीं सबसे खास उनके सिगरेट के धुंए के छल्ले....ये सब मिलकर उन्हें एक आइकॉनिक खलनायक बनाते थे। फिल्मों में एक्टर को हीरो से ज्यादा फीस दी जाती थी। एक वक्त तो ऐसा आया जब प्राण के साथ निर्देशक फिल्में करने के लिए मरने लगे।
साल 1973 में सोहनलाल कंवर की फिल्म ‘बेईमान’ ने अपने नाम कई सारे फिल्मफेयर अवार्ड किए थे। सात अवार्ड में प्राण के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता की ट्रॉफी भी शामिल थी। लेकिन अभिनेता ने इस पुरस्कार को लेने से साफ मना कर दिया था। क्योंकि एक्टर को एहसास हुआ कि जज कमेटी को ‘बेईमान’ के लिए शंकर-जयकिशन को सर्वश्रेष्ठ म्यूजिक डायरेक्शन का अवार्ड नहीं देना था। प्राण के मुताबिक इस अवॉर्ड पर पाकीज़ा फिल्म का पूरा अधिकार था।
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