हर साल 29 सितंबर को मनाए जाने वाले World Heart Day का उद्देश्य लोगों को दिल की सेहत के प्रति जागरूक करना होता है। हार्ट अटैक एक गंभीर मेडिकल इमरजेंसी है, जिसके बाद की रिकवरी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। डॉक्टरों का कहना है कि हार्ट अटैक के बाद के पहले 90 दिन, जिन्हें 'गोल्डन विंडो ऑफ रिकवरी' कहा जाता है, पूरी रिकवरी के लिए निर्णायक होते हैं। इस दौरान दिल की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और दोबारा हार्ट अटैक का खतरा सबसे अधिक होता है।
डॉ. मुकेश गोयल के अनुसार, इस दौरान मरीजों को डॉक्टर के साथ नियमित फॉलो-अप करना चाहिए, जिसमें ब्लड प्रेशर, शुगर, कोलेस्ट्रॉल और दिल की धड़कन की जांच शामिल है। हार्ट अटैक के बाद दिए जाने वाले ब्लड थिनर, बीटा-ब्लॉकर आदि दवाओं को नियमित लेना बेहद जरूरी होता है, क्योंकि दवाओं की अनदेखी गंभीर खतरे को जन्म दे सकती है।
कार्डियक रीहैबिलिटेशन प्रोग्राम भी इस अवधि का अहम हिस्सा है, जिसमें डॉक्टर की निगरानी में एक्सरसाइज, सही खानपान और तनाव नियंत्रण शामिल है। रिसर्च ने दिखाया है कि रीहैब प्रोग्राम से मरीज जल्दी स्वस्थ होते हैं और जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है।
सही खानपान, जिसमें ताजी सब्जियां, फल, साबुत अनाज, मछली और नट्स शामिल हैं, दिल की सेहत के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही, नमक, चीनी और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए। हार्ट अटैक के बाद हल्की-फुल्की एक्सरसाइज जैसे वॉकिंग या सीढ़ियां चढ़ना दिल को मजबूत बनाता है, लेकिन शरीर के संकेतों को सुनना जरूरी है। अगर सीने में दर्द या असामान्य थकान हो तो तुरंत रोक देना चाहिए।
हार्ट अटैक का असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी होता है, जिससे तनाव, डर और अवसाद जैसी समस्याएं हो सकती हैं। काउंसलिंग, योग और मेडिटेशन से मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। परिवार का सहयोग और सकारात्मक माहौल मरीज की रिकवरी में सहायक होता है।
इस महत्वपूर्ण समय में जीवनशैली में बदलाव जैसे धूम्रपान छोड़ना, शराब से परहेज, पर्याप्त नींद लेना और तनाव प्रबंधन करने से हार्ट अटैक के बाद की सेहत बेहतर होती है। परिवार और केयरगिवर्स की भूमिका भी इस सफर में अहम होती है, जो मरीज को प्रेरित और सहयोग करते हैं।