Indus Water Treaty: सिंधु जल समझौता निलंबित होने से पाकिस्तान और भारत पड़ेगा क्या और कितना असर?
Pahalgam Attack Indus Water Treaty: इसके अलावा भी भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कूटनीतिक घोषणाएं की हैं, जिसमें अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट बंद करना, SAARC वीजा रद्द करना और पाकिस्तानी उच्चायोद से कई कर्मियों को भारत से बाहर करने का फैसला शामिल है। हालांकि, इस सब में सिंधु जल समझौते के निलंबन के सबसे दूरगामी परिणाम हो सकते हैं
Indus Water Treaty: सिंधु जल समझौता निलंबित होने से पाकिस्तान और भारत पड़ेगा क्या और कितना असर?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ हुई सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित कर दिया। ये समझौता दोनों देशों के बीच चार युद्ध, पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ दशकों से जारी सीमा पार आतंकवाद और दोनों देशों के बीच दुश्मनी के लंबे इतिहास को झेल चुका है। भारत ने यह निर्णय पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले के एक दिन बाद लिया, जिसमें पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 26 लोगों की जान ले ली थी।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बुधवार शाम कहा, "1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपना समर्थन त्याग नहीं देता।"
इसके अलावा भी भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कूटनीतिक घोषणाएं की हैं, जिसमें अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट बंद करना, SAARC वीजा रद्द करना और पाकिस्तानी उच्चायोग से कई कर्मियों को भारत से बाहर करने का फैसला शामिल है। हालांकि, इस सब में सिंधु जल समझौते के निलंबन के सबसे दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।
सिंधु जल संधि क्या है?
भारत और पाकिस्तान के बीच नौ साल की बातचीत के बाद 19 सितंबर, 1960 को कराची में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि में 12 अनुच्छेद और 8 एनेक्सर (A से H तक) हैं।
इस समझौते के प्रावधानों के अनुसार, सिंधु सिस्टम की "पूर्वी नदियों" - सतलुज, व्यास और रावी- के पानी का भारत बेरोकटोक इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि, कुछ अपवादों को छोड़कर।
जबकि पाकिस्तान को "पश्चिमी नदियों" - सिंधु, झेलम और चिनाब से पानी मिलेगा। हालांकि, इन पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का कुछ सीमित अधिकार भारत को भी दिया गया था, जैसे बिजली बनाना, खेतीबाड़ी के लिए सीमित पानी।
समझौते के एक भाग के रूप में, भारत को पश्चिमी नदियों का इस्तेमाल हाइड्रोपावर और सीमित सिंचाई के लिए करने का अधिकार है, लेकिन उसे उनके पानी के फ्लो को इस तरह से स्टोर करने या मोड़ने की अनुमति नहीं है, जिससे निचले इलाके को नुकसान पहुंचे।
वहीं पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियां- सिंधु, झेलम और चिनाब से पानी मिलता है, जो साझा बेसिन के ज्यादातर पानी का लगभग 80 प्रतिशत है। पाकिस्तान के लिए, यह सिर्फ पानी का समझौता नहीं है, बल्कि यह पूरी सिंचाई और वॉटर मैनेजमेंट सिस्मट के निर्माण के लिए जरूरी है।
इसके मैनेजमेंट के लिए एक स्थायी सिंधु आयोग मौजूद है, जिसमें दोनों देशों से एक-एक कमिश्नर होता है, जिनका काम आंकड़ों का आदान-प्रदान करना, नए प्रोजेक्ट की समीक्षा करना और नियमित रूप से बैठकें करना है।
तो फिर भारत का बुधवार का निर्णय महत्वपूर्ण क्यों है?
सिंधु जल संधि को निलंबित करने के निर्णय से नई दिल्ली को सिंधु नदी सिस्टम के पानी का इस्तेमाल करने के संबंध में ज्यादा विकल्प मिलेंगे।
Indian Express के मुताबिक, सिंधु जल के पूर्व भारतीय आयुक्त पी के सक्सेना ने बताया, "उदाहरण के लिए, भारत पाकिस्तान के साथ वॉटर फ्लो डेटा शेयर करना तुरंत बंद कर सकता है। सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के इस्तेमाल के लिए भारत पर कोई डिजाइन या ऑपरेशनल रोक नहीं होगी। इसके अलावा, भारत अब पश्चिमी नदियों, सिंधु, झेलम और चिनाब पर रिजर्वायर भी बना सकता है।"
बता दें कि वॉटर फ्लो डेटा का मतलब वॉटर डेटा फ्लो का मतलब है कि एक प्वाइंट से दूसरे प्वाइंट तक किस समय कितनी पानी छोड़ा गया। रिजर्वायर जलाशय को कहते हैं, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर पानी को स्टोर करने के लिए किया जाता है, खासकर नदियों पर बांध बनाकर।
सक्सेना ने कहा कि भारत जम्मू-कश्मीर में वर्तमान में बना रहे दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट - झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट और चिनाब पर रातले हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट- का दौरा करने के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों को भी रोक सकता है।
क्योंकि इस समझौते के तहत जब कोई एक देश किसी प्रोजेक्ट पर काम करता है और दूसरे को उस पर कोई आपत्ति है, तो पहला देश उसका जवाब देगा। इसके लिए दोनों पक्षों की बैठकें होंगी और उनके अधिकारी दौरा भी कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, "भारत किशनगंगा प्रोजेक्ट पर रिजर्वायर फ्लशिंग कर सकता है, जिससे बांध की लाइफ बढ़ जाएगी।" ये एक तकनीक है, जिसके तहत बांध या रिजर्वायर में जमा गाद को हटाने के लिए, लोअर लेवल के आउटलेट्स से पानी को छोड़ा जाता है। इससे गाद नीचे की ओर बह जाती है और रिजर्वायर की क्षमता को बनाए रखने में मदद मिलती है, जिससे बांध की लाइफ भी बढ़ जाती है
हालांकि, इस रोक से कम से कम कुछ सालों तक पाकिस्तान को जाने वाले पानी के फ्लो पर तुरंत कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। भारत के पास अभी पाकिस्तान में पानी के फ्लो को रोकने या इसे अपने इस्तेमाल के लिए मोड़ने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है।
कहां फंस सकता है पेंच?
सिंधु जल संधि में कोई एग्जिट क्लॉज नहीं है। इसका मतलब है कि न तो भारत और न ही पाकिस्तान कानूनी रूप से इसे एकतरफा रद्द कर सकते हैं। इस संधि की कोई एंड डेट भी नहीं है और इसमें किसी भी संशोधन के लिए दोनों पक्षों की सहमति जरूरी है।
भले ही इस संधि से एकतरफा बाहर नहीं निकला जा सकता, फिर भी इसमें किसी भी तरह के विवाद के समाधान का नियम मौजूद है। अनुच्छेद IX, एनेक्सर F और G के साथ, कोई भी पक्ष एक तय प्रोसेस के तहत अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। वो शिकायत सबसे पहले स्थायी सिंधु कमिशन के सामने, फिर एक न्यूट्रल एक्सपर्ट के सामने और आखिरकार एक आर्बिट्रेटर फोरम के सामने रखी जा सकती है।
पाकिस्तान ने भारत के सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है।
हालांकि, पाकिस्तान के सूत्रों का कहना है कि सिंधु जल संधि के निलंबन से संभावित पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं पैदा होती हैं। सिंधु नदी सिस्टम में पानी का फ्लो कम होने से इकोसिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है।
BBC के मुताबिक, पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उपप्रधानमंत्री इसहाक डार ने पाकिस्तानी मीडिया से बातचीत में कहा कि भारत इस तरह से एकतरफा फैसला नहीं कर सकता है।
इसहाक डार ने समा टीवी से बातचीत में कहा, ''अतीत का जो हमारा अनुभव है, उससे हमें अंदाजा था कि भारत ऐसा कर सकता है। मैं तो तुर्की में हूं, लेकिन फिर भी पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पहलगाम हमले की निंदा की। भारत ने सिंधु जल संधि के अलावा बाकी जो चार फैसले किए हैं, उनका जवाब तो आसानी से मिल जाएगा।"
उन्होंने आगे कहा, "सिंधु जल संधि को लेकर भारत पहले से अड़ा है। पानी रोकने के लिए इन्होंने कुछ वाटर रिजर्व भी बनाए हैं। इसमें वर्ल्ड बैंक भी शामिल है और यह संधि बाध्यकारी है यानि कि दोनों देशे इसे मानने के लिए बाध्य हैं। आप इसमें एकतरफा फैसला नहीं ले सकते हैं। ऐसे तो दुनिया में मनमानी शुरू हो जाएगी, जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाला मामला तो नहीं चल सकता। भारत के पास कोई भी कानूनी जवाब नहीं है। इस मामले का जवाब पाकिस्तान का कानून मंत्रालय देगा।"
पाकिस्तान को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि संधि के तहत भारत भले ही एकतरफा इससे बाहर नहीं निकल सकता है, लेकिन "वियना समझौते के लॉ ऑफ ट्रीटीज की धारा 62 के तहत भारत इस आधार पर संधि से पीछे हट सकता है कि पाकिस्तान उसके खिलाफ आतंकी गुटों का इस्तेमाल कर रहा है। इंटरनेशनल कोर्ट ने भी कहा है कि अगर मौजूदा स्थितियों में कोई बदलाव हो तो कोई भी संधि रद्द की जा सकती है।"
क्या भारत और पाकिस्तान ने संधि को लेकर हाल ही में कोई कार्रवाई की है?
जम्मू और कश्मीर में दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट भारत और पाकिस्तान के बीच कई सालों से विवाद का विषय रहे हैं, जिसके कारण नई दिल्ली ने जनवरी 2023 में इस्लामाबाद को संधि में “संशोधन” करने के लिए एक नोटिस जारी किया है।
पाकिस्तान ने दो हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के डिजाइन पर आपत्ति जताई है। हालांकि ये “रन-ऑफ-द-रिवर” परियोजनाएं हैं, जो नदी के नेचुरल फ्लो को छेड़े बिना बिजली पैदा करती हैं, पाकिस्तान ने बार-बार आरोप लगाया है कि ये IWT का उल्लंघन करती हैं।
जनवरी 2023 में पाकिस्तान को भेजे गए नोटिस में नई दिल्ली ने संधि को लागू करने में इस्लामाबाद के लगातार “अड़ियल रवैया” का हवाला दिया।
नई दिल्ली की ओर से सितंबर 2024 में जारी नोटिस में सिंधु जल संधि की “समीक्षा और संशोधन” की मांग की गई थी। विशेषज्ञों के अनुसार, “समीक्षा” शब्द ने भारत की संधि को रद्द करने और फिर से बातचीत करने की मंशा को दर्शाया।