Cash Recovery Row: दिल्ली स्थित अपने आधिकारिक आवास से नकदी बरामद होने के बाद संसद में महाभियोग प्रस्ताव का सामना कर रहे जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी पहचान बताए बिना सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। इस याचिका का शीर्षक 'XXX बनाम भारत संघ' है और इसमें एक आंतरिक जांच पैनल के निष्कर्षों और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें हटाने की सिफारिश को चुनौती दी गई है। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की सुप्रीम कोर्ट की पीठ आज इस मामले की सुनवाई करेगी।
यह सिविल रिट याचिका 17 जुलाई को दायर की गई थी और प्रक्रियात्मक सुधारों के बाद 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा रजिस्टर्ड की गई थी। इसे साल की 699वीं याचिका के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। केंद्र को पहले प्रतिवादी के रूप में, जबकि सुप्रीम कोर्ट को दूसरे प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया है।
पहचान छिपा कर दर्ज किया मामला
जस्टिस वर्मा ने याचिका में अपनी पहचान छिपाने के लिए 'XXX' जैसे अनाम शीर्षक का इस्तेमाल किया है। वैसे ऐसा नाम लिखने की प्रक्रिया आमतौर पर यौन उत्पीड़न पीड़ितों या नाबालिगों से जुड़े मामलों में अपनाई जाती है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे याचिकाकर्ताओं की पहचान को गोपनीय रखने का निर्देश दिया है। हालांकि जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपने केस में खुद का नाम न लिखने के बजाय 'XXX' लिखा है जिस पर सवाल उठ रहे है।
जांच प्रक्रिया पर उठाए कई सवाल
जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया हैं कि जांच समिति ने सबूत का बोझ उल्टा उनके माथे पर मढ़ दिया है जिससे उन्हें अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को गलत साबित करने के लिए मजबूर किया गया। उन्होंने दावा किया कि यह प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण थी जिसमें प्रक्रियात्मक निष्पक्षता से समझौता किया। याचिका में तर्क दिया गया है कि पैनल ने पूरी और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उनके खिलाफ निष्कर्ष निकाले।
जांच पैनल ने की थी महाभियोग की सिफारिश
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू के नेतृत्व में तीन-न्यायाधीशों के जांच पैनल ने जस्टिस वर्मा के दिल्ली आवास पर 14 मार्च को लगी आग की 10 दिवसीय जांच की थी। पैनल ने 55 गवाहों से पूछताछ की और उस स्थान का दौरा किया जहां एक स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में अधजली नकदी बरामद हुई थी।इसके बाद समिति ने निष्कर्ष निकाला कि जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का उस क्षेत्र पर गुप्त या सीधा नियंत्रण था जहां नकदी मिली थी, जिससे दुराचार के ऐसे आधार स्थापित हुए जो उन्हें हटाने के लिए पर्याप्त थे।
पैनल के निष्कर्षों के आधार पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की सिफारिश की थी।