Malegaon Blast Timeline: 10 साल की जांच, 7 आरोपी बरी, 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में कब-कब क्या हुआ?

Malegaon Blast Case: 2018 में शुरू हुआ यह मुकदमा 19 अप्रैल, 2025 को पूरा हुआ और मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया गया। इस मामले की जांच शुरू में महाराष्ट्र ATS ने की थी, जिसके बाद 2011 में इसे NIA को सौंप दिया गया। BJP नेता और पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात आरोपियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के लिए मुकदमे का सामना करना पड़ा

अपडेटेड Jul 31, 2025 पर 12:59 PM
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Malegaon Blast Timeline: 10 साल की जांच, 7 आरोपी बरी, 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में कब-कब क्या हुआ?

महाराष्ट्र के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मालेगांव में हुए विस्फोट के 17 साल बाद, NIA अदालत ने गुरुवार को कई सालों के उतार-चढ़ाव के बाद सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने सबूतों के अभाव और जांच एजेंसियों की प्रक्रिया में खामियों को कारण बताते हुए आरोपियों को क्लीन चिट दे दी। 29 सितंबर 2008 को मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर इस कस्बे में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर लगाए गए विस्फोटक उपकरण में धमाका होने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।

2018 में शुरू हुआ यह मुकदमा 19 अप्रैल, 2025 को पूरा हुआ और मामले को फैसले के लिए सुरक्षित रख लिया गया। इस मामले की जांच शुरू में महाराष्ट्र ATS ने की थी, जिसके बाद 2011 में इसे NIA को सौंप दिया गया।

BJP नेता और पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात आरोपियों को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों के लिए मुकदमे का सामना करना पड़ा।


रिटायर मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी इस मामले में बाकी आरोपी हैं।

जांच करने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आरोपियों के लिए “उचित सजा” की मांग की थी। अपनी अंतिम दलील में, एजेंसी ने कहा कि मालेगांव एक बड़ी मुस्लिम आबादी वाला शहर है, जहां विस्फोट की साजिश षड्यंत्रकारियों ने समुदाय के एक वर्ग को आतंकित करने, जरूरी सेवाओं को बाधित करने, सांप्रदायिक तनाव पैदा करने और राज्य की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालने के लिए रचा गया था। यह विस्फोट रमजान के पवित्र महीने में, नवरात्रि से ठीक पहले हुआ था।

मालेगांव ब्लास्ट मामले में कब-कब क्या हुआ?

29 सितंबर, 2008: महाराष्ट्र के मालेगांव में भीकू चौक पर एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर रखा बम फट गया, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा घायल हो गए। यह घटना रमजान के पवित्र महीने और नवरात्रि से पहले हुई।

2008-2009: मामले में बड़ा मोड़

हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र ATS ने जांच का जिम्मा संभाला और भारत में पहली बार यह आरोप लगाया गया कि विस्फोट हिंदू दक्षिणपंथी समूहों से जुड़े लोगों ने किया था।

अक्टूबर 2008: अब बीजेपी नेता साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार किया गया। दोनों पर हिंदू दक्षिणपंथी समूह अभिनव भारत से संबंध होने का आरोप है और उन पर मुस्लिम समुदाय पर "बदला लेने के लिए हमला" करने का शक था।

नवंबर 2008: विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल, जो कथित तौर पर प्रज्ञा सिंह ठाकुर की थी, सहित बाकी सबूत बरामद किए गए। मामले के मु्ख्य जांचकर्ता और स्पेशल IG हेमंत करकरे 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले में शहीद हो गए।

2009-2011: मामले पर राजनीति

ATS ने अपना जाल फैलाया और दयानंद पांडे, समीर कुलकर्णी और अजय राहिरकर जैसे दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं सहित और भी गिरफ्तारियां कीं। लेकिन इस पर भारी राजनीतिक प्रतिक्रिया हुई, क्योंकि हिंदुत्ववादी संगठनों ने इस जांच को राजनीति से प्रेरित बताया।

जनवरी 2009: ATS ने अपना पहला आरोपपत्र दाखिल किया जिसमें 11 अभियुक्तों और तीन वांटेड व्यक्तियों के नाम शामिल थे, जिनमें ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित मुख्य षड्यंत्रकारी थे। आरोपों में UAPA, IPC और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MACOCA) के तहत चार्ज लगाए गए थे।

31 जुलाई, 2009: एक विशेष अदालत ने अभियुक्तों के खिलाफ अन्य मामलों से जुड़े सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए MACOCA के आरोप हटा दिए।

19 जुलाई, 2010: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मकोका के आरोप बहाल कर दिए।

13 अप्रैल, 2011: मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दिया गया।

2016-2017: NIA के आरोप, मुख्य आरोपी को जमानत

एक बड़े घटनाक्रम में, NIA ने अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट से MACOCA के आरोप हटा दिए और ATS पर सबूत गढ़ने और जबरदस्ती आरोप कबूल करवाने का आरोप लगाया। 2017 में, मामले के मुख्य आरोपी - ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित - को जमानत मिल गई।

13 मई, 2016: NIA ने एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की, जिसमें मकोका के आरोप हटा दिए गए और कहा गया कि एटीएस ने कानून का इस्तेमाल संदिग्ध तरीक से किया। आरोप लगाया गया कि ATS ने सबूत गढ़े और पूछताछ के दौरान जबरदस्ती के हथकंडे अपनाए।

25 अप्रैल, 2017: बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्वास्थ्य कारणों से ठाकुर को जमानत दी।

21 अगस्त, 2017: सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल जेल में रहने के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को जमानत दी।

27 दिसंबर, 2017: मकोका के आरोप हटा दिए गए, लेकिन एक विशेष अदालत ने ठाकुर और छह अन्य आरोपियों को बरी करने से इनकार कर दिया और उन्हें UAPA, IPC और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने का आदेश दिया।

2018 से अब तक: मुकदमा और फैसला

इस दुखद घटना के 10 साल बाद मामले की सुनवाई शुरू हुई और अब फैसला 17 साल बाद सुनाया गया।

30 अक्टूबर, 2018: ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित सहित सात आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए।

दिसंबर 2018: औपचारिक रूप से मुकदमा शुरू हुआ।

सितंबर 2023: अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ करने के बाद अपनी गवाही पूरी कर ली, जिनमें से 37 अपने बयान से मुकर गए।

19 अप्रैल, 2025: अंतिम बहस पूरी हुई और अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

31 जुलाई, 2025: फैसला सुनाया गया। सभी सात अभियुक्तों को बरी कर दिया गया।

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