Indian Spy in Pakistan : जासूसों की बात होते ही दिमाग में जो तस्वीर उभरकर सामने आ जाती है, जो जेम्स बॉन्ड की ही होती है। एक ऐसा शख्स जो दुशमन के बीच रहकर भी अपनी पहचान उजागर नहीं होने देता और उनके मिशन को फेल कर देता है। ऐसी ही कहानी थी रवींद्र कौशिक की। खुफिया दुनिया में कई रोमांचक कहानियां हैं, लेकिन राजस्थान के युवा रंगमंच कलाकार रविंदर कौशिक की कहानी सबसे अलग और प्रेरणादायक मानी जाती है। ब्लैक टाइगर के नाम से मशहूर उन्हें नवंबर 1975 में सिर्फ 23 साल की उम्र में पाकिस्तान भेज दिया गया था.
रवींद्र कौशिक कई सालों तक पाकिस्तान की सेना में मेजर के पद पर रहे। ‘ब्लैक टाइगर’ को भारत के सबसे बहादुर और कीमती जासूसों में गिना जाता है। उनका जीवन देश के लिए संघर्ष और बलिदान की मिसाल बन गया।
रविंदर कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को राजस्थान के श्रीगंगानगर में हुआ था। उनके पिता जे.एम. कौशिक भारतीय वायु सेना में काम करते थे। रविंदर ने एस.डी. बिहानी पी.जी. कॉलेज से पढ़ाई की और कॉलेज के दिनों में वे अपने शानदार नाटकों और अभिनय के लिए जाने जाते थे। मंच पर उनके इसी हुनर को देखकर भारत की खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ ने उन्हें चुना और उनकी ज़िंदगी एक गुप्त मिशन की ओर बढ़ गई।
जब रविंदर कौशिक बने ‘नबी अहमद शाकिर’
साल 1973 में, जब रविंदर कौशिक सिर्फ 23 साल के थे, तब उन्हें भारत की खुफिया एजेंसी 'रॉ' ने चुना। उन्होंने अपने परिवार को बताया कि वे नौकरी के लिए दिल्ली जा रहे हैं, लेकिन असल में वे एक गुप्त मिशन पर जा रहे थे। sadashree.substack.com की रिपोर्ट के अनुसार, कौशिक ने इसके बाद दो साल का कठिन प्रशिक्षण लिया। इस दौरान उन्हें उर्दू भाषा, इस्लाम धर्म, पाकिस्तान की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं की गहराई से जानकारी दी गई। अपनी असली पहचान को पूरी तरह मिटाने के लिए उन्होंने इस्लाम कबूल किया, खतना करवाया और उन्हें नया नाम दिया गया—नबी अहमद शाकिर।
1975 तक वह पूरी तरह अपनी नई पहचान में ढल चुके थे। इसके बाद उन्हें पाकिस्तान भेजा गया, जहां उन्होंने कराची यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और कानून की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पाकिस्तानी सेना के सैन्य लेखा विभाग में शामिल हो गए और धीरे-धीरे मेजर की रैंक तक पहुँच गए।
जासूस जो सिस्टम को चकमा देकर निकला आगे
रविंदर कौशिक ने सालों तक पाकिस्तान के भीतर रहकर भारत को बेहद अहम खुफिया जानकारियां भेजीं। कहा जाता है कि उनकी सूचनाओं की बदौलत लगभग 20,000 भारतीयों की जान बचाई जा सकी। यह दावा इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में किया गया है। कौशिक की सबसे बड़ी ताकत थी—पाकिस्तानी समाज में पूरी तरह घुल-मिल जाना। वह इतने भरोसेमंद लगते थे कि उनकी पाकिस्तानी पत्नी अमानत को भी कभी यह शक नहीं हुआ कि वह एक भारतीय जासूस हैं और दोहरी ज़िंदगी जी रहे हैं। उनके बहादुरी भरे काम के लिए उन्हें "ब्लैक टाइगर" का नाम दिया गया था। कहा जाता है कि यह नाम उन्हें खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिया था।
एक गलती जिसने सब कुछ बदल दिया
साल 1983 में एक बड़ी चूक ने रविंदर कौशिक की जिंदगी का रुख बदल दिया Sadashree.substack.com के मुताबिक, रॉ का एक और एजेंट इनायत मसीह पाकिस्तान में पकड़ा गया। जब उसे कड़ी पूछताछ और यातना दी गई, तो उसने रविंदर कौशिक की पहचान उजागर कर दी। इसके बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने एक जाल बिछाया। उन्होंने कौशिक और मसीह के बीच एक नकली मुलाकात तय की। जैसे ही कौशिक उस मुलाकात के लिए एक सार्वजनिक पार्क पहुंचे, उन्हें वहीं पकड़ लिया गया। रविंद्र को फांसी की सजा हुई थी लेकिन पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा कम करके उम्रकैद कर दी। साल 2001 में उनकी दिल के दौरा पड़ने से मौत हो गई।
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