Criminal Defamation: सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, और कहा है कि 'अब समय आ गया है' कि इस औपनिवेशिक काल के कानून को गैर-आपराधिक बनाने पर विचार किया जाए। ये टिप्पणियां एक ऑनलाइन लेख से संबंधित आपराधिक मानहानि मामले में एक मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा जारी किए गए समन को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान आईं।
'बदला लेने के लिए हो रहा दुरुपयोग'
जस्टिस एमएम सुंदरेश और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि इस कानून का दुरुपयोग व्यक्तियों और राजनीतिक दलों द्वारा एक-दूसरे से 'बदला लेने' के लिए किया जा रहा है। जस्टिस सुंदरेश ने कहा, 'मुझे लगता है कि अब आपराधिक मानहानि को गैर-आपराधिक बनाने का समय आ गया है।' कोर्ट ने कहा कि कई विकसित और लोकतांत्रिक देशों ने इस कानून को खत्म कर दिया है, क्योंकि वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता देते हैं।
क्या है आपराधिक मानहानि का कानून?
आपराधिक मानहानि को अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 के तहत परिभाषित किया गया है। इसने पहले की भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 की जगह ली है। इस कानून के तहत, 'किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से... शब्दों, संकेतों या फोटो के माध्यम से कोई भी आरोप लगाना' एक अपराध है।
8 साल से चल रहे मामले पर कोर्ट ने जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट द वायर नामक ऑनलाइन समाचार पोर्टल द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई कर रहा था, जिस पर जेएनयू की प्रोफेसर अमिता सिंह ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था। कोर्ट ने इस मामले की लंबी अवधि पर भी सवाल उठाया, जो मूल रूप से 2016 में दायर किया गया था। कोर्ट ने पूछा, 'आप इसे कब तक खींचते रहेंगे?' बता दें कि इस मामले में जनवरी में मजिस्ट्रेट ने फिर से समन जारी किया था, जिसे दिल्ली उच्च न्यायालय ने 7 मई को बरकरार रखा था।