क्या है UNESCO का ‘मेमोरी ऑफ वर्ल्ड’ रजिस्टर...जिसमें शामिल हुए गीता और नाट्यशास्त्र, PM मोदी बोले-गर्व का पल

यूनेस्को का 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड' रजिस्टर एक खास पहल है, जिसका मकसद दुनिया की डॉक्यूमेंट्री लेगसी को सुरक्षित रखना और इसे सभी के लिए हमेशा के लिए सुलभ बनाना है। इस कार्यक्रम की शुरुआत 1992 में की गई थी ताकि दुनियाभर के कीमती दस्तावेज, मैनुस्क्रिप्ट और पुस्तकालय संग्रह समय के साथ नष्ट न हों और उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभालकर रखा जा सके

अपडेटेड Apr 18, 2025 पर 4:29 PM
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भारत की कुल 14 सांस्कृतिक धरोहरें यूनेस्को की इस खास लिस्ट में शामिल हो चुकी हैं।

Memory Of World Register  : भारत की सांस्कृतिक विरासत को पहचान दिलाने की दिशा में एक अहम कदम उठाया गया है। भगवद गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर' में शामिल किया गया है। इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जताते हुए इसे हर भारतीय के लिए गर्व का पल बताया है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को इस सूची में जगह मिलना हमारे शाश्वत ज्ञान और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि ये ग्रंथ सदियों से हमारी सभ्यता और चेतना को दिशा देते आए हैं।

‘मेमोरी ऑफ वर्ल्ड’ रजिस्टर क्या है?

बता दें कि अब भारत की कुल 14 सांस्कृतिक धरोहरें यूनेस्को की इस खास सूची में शामिल हो चुकी हैं। इस मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी दुनियाभर के भारतीयों को शुभकामनाएं दी हैं।

यूनेस्को का 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड' रजिस्टर एक खास पहल है, जिसका मकसद दुनिया की डॉक्यूमेंट्री लेगसी को सुरक्षित रखना और इसे सभी के लिए हमेशा के लिए सुलभ बनाना है। इस कार्यक्रम की शुरुआत 1992 में की गई थी ताकि दुनियाभर के कीमती दस्तावेज, मैनुस्क्रिप्ट और पुस्तकालय संग्रह समय के साथ नष्ट न हों और उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभालकर रखा जा सके।


इस पहल का खास उद्देश्य संघर्ष या प्राकृतिक आपदा से प्रभावित इलाकों में मौजूद सांस्कृतिक धरोहरों को भी बचाना है। यूनेस्को की वेबसाइट पर भी साफ तौर पर लिखा है कि दुनिया कीडॉक्यूमेंट्री लेगसी सभी की है और इसे बिना किसी रुकावट के, सभी के लिए संरक्षित और सुलभ होना चाहिए — साथ ही हर संस्कृति की मान्यताओं और परंपराओं का सम्मान भी होना चाहिए। इसका एक और मकसद लोगों को डॉक्यूमेंट्री लेगसी के महत्व के बारे में जागरूक करना और इसके संरक्षण की जरूरत को लेकर समझ बढ़ाना है, ताकि हमारी सांस्कृतिक पहचान और इतिहास को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रखा जा सके।

यूनेस्को अपने 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड' (MoW) कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली समितियों और सहयोगी नेटवर्क के जरिए संचालित करता है। ये सभी समितियाँ दस्तावेजी विरासत की सुरक्षा के लिए तय किए गए सामान्य दिशानिर्देशों के अनुसार काम करती हैं। इस पूरे कार्यक्रम की योजना और निगरानी का जिम्मा एक मुख्य निकाय – अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार समिति (IAC) के पास होता है। यह समिति यूनेस्को की प्रमुख सलाहकार इकाई के रूप में काम करती है। IAC में कुल 14 सदस्य होते हैं, जिन्हें उनके ज्ञान और अनुभव को देखते हुए यूनेस्को के महानिदेशक द्वारा नियुक्त किया जाता है। ये सदस्य व्यक्तिगत रूप से अपनी सेवाएं देते हैं।

यूनेस्को के महानिदेशक हर दो साल में इस समिति की बैठक बुलाते हैं। साथ ही, यह कार्यक्रम क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की समितियों की सक्रियता, पहल और योगदान पर भी काफी हद तक निर्भर करता है।

भगवद गीता और नाट्यशास्त्र को क्यों चुना गया?

भगवद गीता, एक प्रमुख हिंदू धर्मग्रंथ है। इसमें कुल 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं। यह ग्रंथ न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें जीवन, कर्तव्य, ज्ञान और भक्ति जैसे गहरे विषयों पर विचार किया गया है। भगवद गीता में वैदिक, बौद्ध, जैन और चार्वाक जैसे प्राचीन भारतीय दर्शन का सुंदर मेल देखने को मिलता है। यही कारण है कि इसे दुनियाभर में पढ़ा जाता है और कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है।

इन ग्रंथों को यूनेस्को के 'मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड' रजिस्टर में शामिल किए जाने के साथ अब इस सूची में भारत की कुल 14 धरोहरें दर्ज हो गई हैं। इनमें अन्य प्रमुख भारतीय प्रविष्टियों में ऋग्वेद की पांडुलिपियाँ, गिलगित पांडुलिपियाँ, तमिल चिकित्सा पांडुलिपियों का संग्रह, मुगल कालीन शाही दस्तावेज और रामचरितमानस की पांडुलिपियाँ शामिल हैं। यूनेस्को ने गुरुवार को जानकारी दी कि इस साल रजिस्टर में 74 नई प्रविष्टियाँ जोड़ी गई हैं, जिससे अब कुल दस्तावेजी धरोहरों की संख्या 570 हो गई है।

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First Published: Apr 18, 2025 4:29 PM

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