Holashtak 2025: होलाष्टक को साल के सबसे अशुभ समय में से एक माना जाता है। इस दौरान ग्रहों की स्थिति नकारात्मक एनर्जी बढ़ा देती है, जिससे यह समय कठिन हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस पीरियड में लिए गए फैसले सही नहीं बैठते। इस दौरान लिए गए फैसलों से असफलता या परेशानियां आ सकती हैं। इसलिए इस दौरान शुभ कामों से बचने की सलाह दी जाती है। यहां जानिए कब से कब तक है होलाष्टक।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल होलाष्टक 7 मार्च 2025 से शुरू होकर 13 मार्च 2025 तक रहेगा। यह पीरियड फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक चलती है और होलिका दहन के दिन समाप्त होती है।
होलाष्टक क्यों माना जाता है अशुभ?
होलाष्टक को साल के सबसे अशुभ समय में से एक माना जाता है। इस दौरान सभी ग्रहों की नकारात्मक एनर्जी बढ़ जाती है, जिससे जीवन में कठिनाइयां बढ़ सकती हैं। इस पीरियड में कोई भी शुभ काम जैसे विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, सगाई और मुंडन संस्कार करने से बचने की सलाह दी जाती है।
होलाष्टक का संबंध भगवान शिव और कामदेव की कथा से जुड़ा है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती के अनुरोध पर कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास किया। इससे क्रोधित होकर शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। तभी से यह आठ दिन की पीरियड अशुभ माना जाती है और इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
कहां मनाया जाता है होलाष्टक?
होलाष्टक का त्योहार उत्तर भारत में मनाया जाता है। वे राज्य जो खासतौर पर रावी और सतलुज नदियों के आसपास स्थित हैं। हालांकि, दक्षिण भारत में इसका बहुत अधिक असर नहीं होता है। वहां शुभ कामों को लेकर कोई रोक नहीं होती।
होलाष्टक के दौरान किए जाने वाले अनुष्ठान
पहले दिन होलिका दहन के स्थान का चुनाव किया जाता है और उसे गंगाजल अथवा किसी पवित्र नदी के जल से शुद्ध किया जाता है।
वहां सूखी लकड़ियां, पत्ते और टहनियां रखी जाती हैं।
पूरे आठ दिनों तक इस स्थान पर लकड़ियां और अन्य सामग्री एकत्रित की जाती हैं।
अंतिम दिन, यानी पूर्णिमा के दिन होलिका दहन करके इस अशुभ समय का समापन किया जाता है।
क्या करें और क्या न करें?
इस दौरान भगवान विष्णु और शिव की पूजा करें।
दान और पुण्य के कार्य करें।
नए कामों की शुरुआत से बचें।
विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य न करें।