Rangbhari Ekadashi 2025: मार्च में कब पड़ेगी रंगभरी एकादशी? जानें शुभ मुहूर्त और पारण समय

Rangbhari Ekadashi 2025: यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का शुभ पर्व है। इस दिन काशी विश्वनाथ मंदिर में विशेष पूजा होती है। व्रत और भगवान शिव-विष्णु की आराधना से सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पूजा विधि में अभिषेक, भोग और मंत्र जप का विशेष महत्व है

अपडेटेड Feb 27, 2025 पर 11:03 AM
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Rangbhari Ekadashi 2025: होली से पहले रंगभरी एकादशी मनाई जाती है।

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी या रंगभरी एकादशी कहा जाता है, जिसका हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आमतौर पर सभी एकादशी तिथियां भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं, लेकिन यह एकमात्र एकादशी है जो भगवान शिव से जुड़ी होती है। इस दिन वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव माता पार्वती का गौना कराकर पहली बार काशी आए थे। उनके स्वागत में भक्तों ने रंग-गुलाल उड़ाकर आनंद उत्सव मनाया, जिससे यह पर्व ‘रंगभरी एकादशी’ कहलाया।

इस दिन भगवान विष्णु और आंवले के पेड़ की भी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और भगवान शिव-विष्णु की आराधना करने से सुख-समृद्धि, कल्याण और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रंगभरी एकादशी 2025 की तिथि और मुहूर्त


एकादशी तिथि प्रारंभ: 9 मार्च 2025, सुबह 07:45 बजे

एकादशी तिथि समाप्त: 10 मार्च 2025, सुबह 07:44 बजे

व्रत पारण का समय: 11 मार्च 2025, सुबह 06:35 बजे से 08:13 बजे तक

द्वादशी समाप्ति का समय: 11 मार्च 2025, सुबह 08:13 बजे

रंगभरी एकादशी की पूजा विधि

सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

घर के मंदिर में दीप जलाएं।

भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें और तुलसी व पुष्प अर्पित करें।

भगवान शिव और माता पार्वती का जल से अभिषेक करें।

इस दिन व्रत रखना शुभ माना जाता है।

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।

सात्विक भोजन का भोग लगाएं, जिसमें तुलसी का पत्ता अवश्य हो, क्योंकि बिना तुलसी भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते।

पूरे दिन भगवान विष्णु और शिव का ध्यान करें और भजन-कीर्तन करें।

इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु और शिव की भक्ति करने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इन मंत्रों का करें जप

  1. वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |

पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।

एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |

य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।

  1. ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।

यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।

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First Published: Feb 27, 2025 11:03 AM

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