सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को मराठा समुदाय को आरक्षण की संवैधानिकता पर बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण देने के महाराष्ट्र कानून को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा कोटा (Maratha reservation) को रद्द करते हुए कहा कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे इंद्रा साहनी के फैसले से निर्धारित 50 फीसदी की सीमा से अधिक का औचित्य साबित करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा समुदाय को दिए आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने 1992 के इंदिरा साहनी केस में दिए गए फैसले की समीक्षा करने से भी इनकार कर दिया है।

शीर्ष अदालत ने 2018 के राज्य सरकार के कानून को भी खारिज कर दिया है। बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने 50 फीसदी सीमा से बाहर जाते हुए मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। महाराष्ट्र सरकार की ओर से 2018 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं, जिन पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह फैसला सुनाया है।

जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा लांघी नहीं जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया कि मराठा समुदाय के लोग शैक्षिक और सामाजिक तौर पर इतने पिछड़े नहीं हैं कि उन्हें आरक्षण के दायरे में लाया जाए। शीर्ष अदालत ने 26 मार्च को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले को महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। सीएम ने कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण के कानून को खारिज कर दिया। हमने सर्वसम्मति से कानून पारित किया था। अब न्यायालय का कहना है कि महाराष्ट्र इस पर कानून नहीं बना सकता है, केवल प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बना सकते हैं।

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