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कसाब को फौरन फांसी देना संभव नहीं

मौत की सजा को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की पुष्टि और राष्ट्रपति की सहमति जरूरी है।

MoneyControl Newsअपडेटेड May 06, 2010 पर 5:30 PM
कसाब को फौरन फांसी देना संभव नहीं

06 मई 2010
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

नई दिल्ली।
मुंबई की एक विशेष अदालत द्वारा 26/11 के हमले के दोषी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को गुरुवार को दी गई मौत की सजा को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से उसकी पुष्टि और राष्ट्रपति की सहमति चाहिए। इस प्रक्रिया में काफी समय लग सकता है।

इस पूरी प्रक्रिया में कई साल भी लग सकते हैं, क्योंकि अभी भी 52 लोगों की मौत की सजा को लागू करने के लिए राष्ट्रपति की सहमति का इंतजार है, वहीं निचली अदालतों से फांसी की सजा पाए 300 दोषियों के मामले सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन हैं।
अगर कसाब फांसी की सजा को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देता है और यदि न्यायालय ने उसके मामले की तेज सुनवाई की तो भी कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार मामले के निपटारे में कम से कम पांच वर्ष का समय लग सकता है।

यदि सर्वोच्च न्यायालय ने फांसी की सजा को बरकरार रखा तो कसाब फैसले की समीक्षा के लिए फिर अपील कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के अपने फैसले पर कायम रहने की स्थिति में वह तीसरी बार 'उपचारात्मक याचिका' के माध्यम से कुछ कानूनी सवाल उठा सकता है।


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सर्वोच्च न्यायालय के अपने फैसले पर कायम रहने की स्थिति में कसाब संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका पेश कर सजा से मुक्ति या फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलने की अपील कर सकता है।

फांसी की सजा पानेवालों की सूची में दिसंबर 2001 को संसद भवन हमले में भूमिका के लिए दोषी अफजल गुरु भी है। राष्ट्रपति को भेजी गई गुरु की दया याचिका अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास लंबित है।

यह जानना भी आवश्यक है कि भारत में किन-किन जुर्मों में सजा-ए-मौत दी जाती है-
 
1. युद्ध छेड़ना या इसके लिए प्रयास करना या भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना। इस मामले में मृत्युदंड या आजीवन कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।

2. विद्रोह के लिए उकसाना, यदि इस वजह से विद्रोह होता है तो मृत्युदंड या आजीवन कारावास या 10 वर्ष की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

3. आजीवन कारावास की सजा के दौरान यदि कोई हत्या करता है तो उसके लिए मृत्युदंड का प्रावधान है।

4. बच्चे या फिर मानसिक रूप से बीमार लोगों को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में मौत की सजा या आजीवन कारावास या 10 वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

5.आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी द्वारा हत्या के मामले में मृत्युदंड या 10 वर्ष कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

6.डकैती के दौरान हत्या के मामले में दोषी के लिए मौत या आजीवन कारावास, 10 वर्ष कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।

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