27 अप्रैल 2010
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस
वाशिंगटन। विश्व बैंक द्वारा लिए गए एक ऐतिहासिक निर्णय से भारत और दूसरे विकासशील देशों को अब ज्यादा ऋण और विश्व बैंक में ज्यादा हिस्सेदारी रखने का अधिकार मिल जाएगा। विश्व बैंक में भारत का मतभार, जो कि 1970 के बाद से लगातार घट रहा था, अब 2.79 फीसदी से बढ़कर 2.91 फीसदी हो गया है।
भारतीय आधिकारियों के मुताबिक विश्व बैंक ने एक नीतिगत निर्णय के जरिए अपनी वित्तीय क्षमता में बढ़ोतरी करके विकासशील देशों को ज्यादा लाभ देने का फैसला किया है।
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यहां रविवार को विश्व बैंक की विकास समिति की बैठक में हुए इस फैसले से भारत विश्व बैंक के महत्वपूर्ण हिस्सेदारों में शामिल हो जाएगा। साथ ही विश्व बैंक में भारत का मतभार बढ़कर रूस, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इटली और सऊदी अरब से ज्यादा हो जाएगा। इसके चलते भारत विश्व बैंक के सदस्य देशों में सातवां सबसे ज्यादा मतभार वाला देश बन जाएगा।
विश्व बैंक में भारत का मतभार जो कि 1970 के बाद से लगातार घट रहा था अब 2.79 फीसदी से बढ़कर 2.91 फीसदी हो गया है। पिछले 40 सालों में यह पहली बार हुआ है जब भारत के मतभार में बढ़ोतरी हुई है, जबकि इस दौरान चीन का मतभार 2.77 फीसदी से बढ़कर 4.42 फीसदी हो चुका है।
अधिकारियों का कहना है कि पिछले 10 सालों में भारत की आर्थिक तरक्की और विश्व अर्थव्यवस्था में भारत के बढ़ते प्रभाव के चलते यह बदलाव हुआ है।
विकासशील देशों को कुल मतभार का 3 फीसदी हिस्सा हस्तांतरित करने से अब विकासशील देशों का हिस्सा बढ़कर 47 फीसदी पर पहुंच गया है। यह बदलाव विश्व अर्थव्यवस्था में हो रहे बदलावों को भी प्रदर्शित करता है।
इस निर्णय से ब्राजील, इंडोनेशिया, मैक्सिको और तुर्की का मतभार भी विश्व बैंक में बढ़ा है, जबकि कुछ बड़े यूरोपीय देशों और पारंपरिक रूप से वित्तीय मामलों में प्रभुत्व रखने वाले देशों जैसे ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया और कनाडा का मतभार घट गया है।
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साथ ही बैंक ने सदस्यों की हिस्सेदारी की स्थिति पर पांच साल में पुनर्विचार करने की स्वीकृति दी है, इस कारण अगले सालों में भारत में होने वाले विकास का फायदा उसे विश्व बैंक में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में भी मिलेगा।
इसके अलावा विकास समिति ने पूंजी निर्माण के जरिए बैंक का पूंजी आधार बढ़ाने की स्वीकृति भी दी है, पिछले 30 सालों में पहली बार ऐसा किया जा रहा है। इस बढ़ोतरी से बैंक की कुल पूंजी करीब 6 फीसदी बढ़कर 58 अरब डॉलर हो जाएगी।
सबसे बड़े ऋण ग्राहकों में से एक होने से भारत विश्व बैंक से अतिरिक्त सहायता भी प्राप्त कर सकता है। बैंक की क्षमता में बढ़ोतरी के चलते भारत अगले कुछ सालों में 7-10 अरब डॉलर की अतिरिक्त सहायता प्राप्त कर सकेगा।
इस निर्णय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय वित्त सचिव अशोक चावला ने कहा "यह बदलाव परिवर्तन का प्रतीक है और इससे विश्व बैंक को वैश्विक अर्थतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में मदद मिलेगी।"