छत्तीसगढ़ के बीजापुर-सुकमा जिलों की सीमा पर हुई सुरक्षाबलों और निक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ (Chhattisgarh Encounter) के दौरान आत्मघाती हमले का मास्टर माइंड 38 साल का माओवादी कमांडर मडवी हिडमा (Madvi Hidma) था, जिसके कारण 22 सैनिकों की जान चली गई और कई जवान घायल हो गए। वह CPI (माओवादी) की पहली सैन्य बटालियन का प्रमुख है। घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सुरक्षा अधिकारियों के अनुसार, जंगलों में अपनी उपस्थिति के बारे में सुरक्षा बलों को झूठे खुफिया इनपुट दे कर हिडमा द्वारा जाल बिछाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "हिडमा ने सुरक्षा बलों को फंसाने की योजना बनाई, लेकिन 15 दिनों तक सुरक्षा बल इलाके में नहीं पहुंचे, जिससे वह हताश हो रहा था। हिडमा ने बस्तर के अलग-अलग हिस्सों से 300 से ज्यादा सशस्त्र कैडर बुलाए, जो मुठभेड़ स्थल के पास में ही इकट्ठा हुए थे।"
बस्तर में सबसे खूंखार माओवादी नेताओं में से एक माना जाने वाले हिडमा का जन्म दक्षिण सुकमा के पुरवती गांव में हुआ था, जिसे हिडमालु और संतोष के नाम से भी जाना जाता है। उसकी एक निर्दयी विद्रोही नेता के रूप में पहचान है, जो पूरे इलाके में मुखबिरों का एक नेटवर्क चलाता है। हिडमा बस्तर क्षेत्र के मुरिया आदिवासी समुदाय से है। उसका गांव अभी भी पुलिस की सीमा से बाहर है।
हिडमा ने कथित तौर पर फिलीपींस में गुरिल्ला युद्ध की ट्रेनिंग ली है और ये भी माना जाता है कि उसने पिछले दशक में कई हमले किए हैं। एक पुलिस अधिकारी ने बताया, "बस्तरिया मुरिया आदिवासी क्रूर और आक्रामक होते हैं और हिडमा ने खुद की एक मास्टर प्लानर और सफल ऑपरेशनल कमांडर के रूप में पहचान बनाई हुई है।"
हिडमा को एक गुप्त व्यक्ति के रूप में भी जाना जाता है, जो मीडिया की चकाचौंध से बचता है। एक पत्रकार जिसने कई साल पहले उससे मिलने का दावा किया था, उसने कहा कि वह किसी ऐसे व्यक्ति की तरह है, जो बहुत कम बोलता है। उसकी सुरक्षा के अंदर के घेरे में भारी-सशस्त्र युवक होते हैं, जिनमें ज्यादातर उसके बचपन के दोस्त होते हैं।
सैकड़ों माओवादियों को शामिल करते हुए हिडमा द्वारा की गई क्रूर मुठभेड़ ने सुरक्षा बलों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि मुठभेड़ ने सुरक्षा बलों को फिर से एक रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया है, क्योंकि सेना इस तरह की मुठभेड़ों में माओवादियों को कोई और रणनीतिक लाभ नहीं दे सकती है।
एक दूसरे पुलिस अधिकारी ने कहा कि माओवादी हमले का स्पष्ट कारण छत्तीसगढ़ पुलिस की वो योजना हो सकती है, जिसके तहत तर्रेम के जंगलों से ठीक पहले सिल्गर गांव में एक सुरक्षा शिविर बनाया गया था। इस इलाके को माओवादियों का एक प्रमुख क्षेत्र माना जाता है।
उन्होंने कहा कि इस शिविर ने बीजापुर को सुकमा से जोड़ने वाले एक महत्वपूर्ण माओवादी गलियारे को काट दिया होगा और विद्रोहियों ने इस क्षेत्र पर अपना नियंत्रण खो दिया होगा। बता दें कि माओवादी, जो हाशिए के आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, 10 राज्यों में सक्रिय हैं और छत्तीसगढ़ को उनके आखिरी बचे गढ़ों में से एक माना जाता है।
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