06 जून 2012
वार्ता
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नई दिल्ली। आईसीसी की स्वतंत्र समीक्षा समिति के सलाहकार और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुद्गल ने खेलों में सट्टेबाजी को कानून के दायरे में लाने की वकालत की है। न्यायमूर्ति मुद्गल यहां वाणिज्य एवं उद्योग संगठन फिक्की द्वारा खेलों में सट्टेबाजी विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा कि यह कैसी विडंबना है कि आप एक घोड़े पर तो सट्टा लगा सकते हैं लेकिन मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर पर नहीं। यानि आपको सचिन से ज्यादा एक घोड़े की क्षमताओं पर यकीन है।
उल्लेखनीय है कि भारत में घुड़दौड़ पर सट्टा वैध है, लेकिन अन्य खेलों पर सट्टा लगाना कानूनन जुर्म है। न्यायमूर्ति मुद्गल ने कहा कि खेलों में सट्टेबाजी को कानून के दायरे में लाकर हम कई बुराइयों को मिटा सकते हैं और इससे जो राजस्व की प्राप्ति होगी उसे खेल सुविधाओं के विकास पर खर्च किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता मिलने से मैच फिक्सिंग से काफी हद तक छुटकारा मिल जाएगा।
अभी एक अनुमान के मुताबिक देशभर में प्रतिवर्ष लगभग तीन लाख करोड़ रुपए का सट्टा लगता है। इसमें अंडरवर्ल्ड, हवाला, काला धन और कई तरह की अवैध गतिविधियां शामिल हैं। इसमें व्याप्त बुराइयों को खतम करना जरूरी हैं अगर इसे कानूनी मान्यता मिल गई तो सरकार को भारी राशि राजस्व के रूप में मिलेगी।
न्यायमूर्ति मुद्गल ने कहा कि सट्टेबाजी से निपटने के हमारे कानून अब पुराने पड़ चुके हैं। इंटरनेट और नई तकनीक के आगमन से अब सट्टेबाजों को पकड़ना आसान नहीं रह गया है। हमें खेलों में सट्टेबाजी को कानून के दायरे में लाने की जरूरत है।
इस अवसर पर ब्रिटेन के कानून विशेषज्ञ कार्ल ए रोसलर ने कहा कि खेलों में सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने के मामले में भारत को बीच का रास्ता अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जिब्राल्टर जैसे कई देशों में सट्टेबाजी पर कोई रोक नहीं है क्योंकि इससे उनको जमकर राजस्व मिलता है।
रोसलर ने कहा कि लेकिन ब्रिटेन सहित यूरोपीय देशों और अमेरिका के अधिकतर प्रांतों में वहां की सांस्कृतिक और स्थानीय परिस्थितियों के हिसाब से कानून बनाए गए हैं। लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का पूरा ध्यान रखते हुए बीच का रास्ता निकाला गया है। भारत में भी ऐसा ही कुछ करने की जरूरत है। एक अन्य वक्ता वी लक्ष्मीकुमारन ने सट्टेबाजी के आर्थिक पहलू पर अपने विचार रखते हुए कहा कि भारत को इस मामले में जल्दबाजी में कोई कदम उठाने की जरूरत नहीं है बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से सीखकर धीरे-धीरे आगे बढ़ने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि सट्टेबाजी का हमारा इतिहास बहुत पुराना है। लेकिन इसके सामाजिक, कानूनी और आर्थिक पहलू हैं। अगर इसे कानूनी मान्यता मिलती है तो इससे कई बुराइयों से मुक्ति मिल सकती है, लेकिन सरकारें ऐसा करने से डरती हैं क्योंकि इससे उन्हें वोट बैंक खोने का खतरा है।
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