दिग्गज फिल्ममेकर करण जौहर (Karan Johar) ने हाल ही में इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC) की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित एक कार्यक्रम में शिरकत की। इस दौरान उन्होंने अपनी निजी जिंदगी, नेपोटिज्म के आरोपों, AI क्रांति और भारतीय सिनेमा के भविष्य को लेकर खुलकर बातें की। पद्मश्री से सम्मानित करण जौहर ने कहा कि मैंने पहली बार फिल्में बना रहे 24 लोगों को लॉन्च किया। इनमें से 2 को छोड़ दें तो, 22 लोगों का फिल्म इंडस्ट्री से कोई कनेक्शन नहीं है। लेकिन इनकी कोई बात नहीं करता। करण ने कहा कि इनके अलावा भी मैंने 100 से ज्यादा टेक्नीशियंस को पहली बार ब्रेक दिए। कॉस्ट्यूम डिजाइनर्स, फोटोग्राफी डायरेक्टर, एडिटर सहित काफी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्हें हमने सबसे पहले ब्रेक दिया और आज वो इंडस्ट्री में काफी अच्छा काम कर रहे हैं। लेकिन सभी लोग स्टार किड्स की बात करते हैं।
करण जौहर ने ICC के प्रेसिडेंट और जिंदल स्टेनलेस के एमडी अभ्युदय जिंदल (Abhyuday Jindal) और सारेगामा की वाइस चेयरपर्सन अवर्णा जैन के साथ आयोजित एक स्पेशल 'फायरसाइड चैट' शो में ये बातें की। करण जौहर ने कार्यक्रम में भारतीय सिनेमा के बदलते स्वरूप, रचनात्मकता और नेतृत्व के महत्व पर बात की।
करण जौहर ने कहा कि पहले उन्हें नेपोटिज्म के आरोपों से थोड़ी चिढ़न होती थी, लेकिन अब वो इन पर ध्यान नहीं देते। मुझे जो भी अच्छा लगता है, मैं उसे ब्रेक देता है। उन्होंने कहा, "हाल ही हमनें दिल्ली के एक लड़के लक्ष्य को लॉन्च किया। उसने 'किल' फिल्म में शानदार काम किया है और यह फिल्म काफी सफल रही थी। लेकिन कोई आपका इसका क्रेडिट नहीं देता है।"
AI से फिल्म इंडस्ट्री को खतरा नहीं
फिल्म इंडस्ट्री इस समय आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) को कैसे देख रही है और क्या उसे इससे कोई खतरा है? इस सवाल पर करण जौहर ने कहा, "AI एक ऐसी चीज है जिसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इसे स्वीकार करना और इसका लाभ उठाना जरूरी है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि AI का मतलब 'Artificial Intelligence' है। यानी यह खुद स्वीकार करता है कि यह आर्टिफिशियल यानी कृत्रिम है। जबकि नैचुरल इंटेलीजेंसी और ऑर्गेनिक क्रिएटिविटी की कभी जगह नहीं ले सकता।"
करण जौहर ने अपनी बात को समझाने के लिए एक दिलचस्प उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, "अगर आपके पास ताजा संतरे का रस है और डिब्बाबंद संतरे का रस है, तो दोनों में फर्क होगा। हां, डिब्बाबंद रस को बड़े पैमाने पर बेचा जा सकता है और इससे फायदा कमाया जा सकता है। लेकिन यह कभी ताजे संतरे के रस की शुद्धता का जगह नहीं ले सकता। हम ताजे संतरे का रस हैं और हम कभी डिब्बाबंद नहीं बनेंगे।"
इस कार्यक्रम में अभ्युदय जिंदल ने सिनेमा और संगीत के महत्व पर जोर देते हुए कहा, "संगीत और सिनेमा न सिर्फ हमारा मनोरंजन करते हैं बल्कि भारत के सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को भी दिखाते हैं। यह हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, हमें अपने सपनों को साकार करने का हौसला देते हैं। जब हम 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहे हैं, तब हमारी सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां हमारी पहचान को ग्लोबल स्तर पर मजबूती देंगी।"
उन्होंने आगे कहा कि "GDP हमारी आर्थिक ताकत दिखाती है, लेकिन फिल्में और संगीत हमारे करोड़ों लोगों की भावनाओं, आकांक्षाओं और आत्म-विश्वास को दर्शाते हैं।"
अभ्युदय जिंदल ने यह भी कहा कि फिल्म इंडस्ट्री एक तरह से कला, रचनात्मकता और बिजनेस का संगम है। ICC ने हमेशा कला को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है और 'ऑरेंज इकोनॉमी' को समर्थन देने की दिशा में काम किया है।