श्री राम जन्म भूमि अयोध्या पर भव्य निर्माण की शुभ घड़ी आ चुकी है। मंदिर निर्माण का सपना जल्द ही साकार हो जाएगा। लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए न जाने कितने लोगों की कोशिश शामिल है। इन्हीं कोशिशों में अयोध्या के एक ऐसे साधु की कहानी बता रहे हैं, जिन्होंने राम जन्म भूमि में राम मंदिर निर्माण के लिए एक दूरदृष्टि योजना बनाई। न्यूज 18 के मुताबिक, इन साधु का जन्म बिहार के एक गांव में सन 1913 में हुआ। बचपन में इनका नाम चंद्रेश्वर तिवारी थी। कुछ साल बाद चंद्रेश्वर अयोध्या आ गए और दिगम्बर अखाड़ा (Digambar Akhara) के एक तपस्वी बन गए। बाद में लोग इन्हें महंत परमहंस रामचंद्र दास (Mahant Paramhans Ramchandra Das) के नाम से जानने लगे। साधु के रूप में दास केवल धार्मिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने कई क्षेत्र में अपने कौशल का परिचय दिया। राममंदिर आंदोलन में अहम भूमिका निभाई।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड के आधार पर सन 1947 में भारत की आजादी के समय महंत फैजाबाद में हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) के शहर अध्यक्ष (city president) थे। 22 दिसंबर 1949 की सर्द रात अयोध्या (ayodhya) में एक ऐसा काम हो गया, जिसने सुबह तक दिल्ली में हड़कंप मचा दिया। सुबह तक पूरे अयोध्या में खबर फैल गई कि बाबरी मस्जिद में प्रभु राम प्रकट हो गए हैं। दरअसल रात में कुछ लोगों ने राम चबूतरे से भगवान राम की मूर्ति उठाकर बाबरी मस्जिद में रख दी थी। इस घटना के बाद एक नाम बेहद चर्चा में आ गया था- परमहंस रामचंद्र दास। यही आगे चलकर रामजन्मभूमि आंदोलन (ram janmbhoomi andolan) की धुरी बने।

शुरुआती समय में रामचंद्र दास का नाम सामने नहीं आया था। जो 23 दिसंबर को सुबह 9 बजे FIR दर्ज हुई थी, उसमें रामचंद्र का नाम नहीं था। इसमें उनके कुछ परिचितों के नाम थे। जिसमें अभिराम दास, रामसकल दास, सुदर्शन दास, और करीब 50 अन्य लोग। ये सभी हिंदू महासभा से जुड़े हुए थे।

हालांकि परमहंस रामचंद्र दास को इस मामले में कभी औपचारिक तौर पर आरोपी नहीं बनाया गया था, लेकिन कुछ सालों के बाद उन्होंने दिसंबर 1949 की घटना क अंजाम देने का दावा किया। जो विवाद में नाम आ गया। यही सबसे बड़ा मोड रहा। मूर्ति को अंदर रखने के बाद आधिकारिक तौर पर इसे विवादित स्थल कहा जाने लगा। इसके मेन गेट को बंद कर दिया गया और मुसलमानों को नमाज अदा करने के लिए रोक दिया गया था। जबकि हिंदओं के गेट के एक साइड से दर्शन करने का अधिकार मिल गया था। 

सन 1991 में न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि मैं ही हूं जो मस्जिद में मूर्ति को अंदर रखा था। हालांकि इसके कुछ सालों बाद वो अपनी इस भूमिका पर चुप्पी साधे रहे। भले ही उनके कामों में अस्पष्टता बनी रही हो, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (VHP) और BJP के लिए वो बहुत बड़े संत थे।

1984 को दिल्ली में हुई पहली धर्म संसद से लगातार रामचंद्र दास आंदोलन को धार देते रहे। रामजन्म भूमि न्यास (Ram Janmabhoomi Nyas) का गठन किया, जिसके वो अध्यक्ष बने। अपना पूरा जीवन राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए न्योछावर कर दिया। उनकी एक ही इच्छा थी कि इस जगह राम मंदिर निर्माण हो। आज उनकी यह इच्छा अब पूरी होने जा रही है।
 
सोशल मीडिया अपडेट्स के लिए हमें Facebook (https://www.facebook.com/moneycontrolhindi/) और Twitter (https://ttter.com/MoneycontrolH) पर फॉलो करें।