03 अगस्त 2011
आईबीएन-7

नई दिल्ली।
राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में हर भ्रष्टाचार के लिए सुरेश कलमाडी को जिम्मेदार ठहराने वालीं शीला दीक्षित अब खुद कैग (सीएजी) के निशाने पर हैं। सीएजी ने राष्ट्रमंडल खेल घपलों पर तैयार अपनी रिपोर्ट में 80 पन्ने सिर्फ शीला सरकार की गड़बड़ियों पर लिखे हैं, जिनमें 46 बार मुख्यमंत्री का नाम आया है। चाहे मामला खेलों के दौरान दिल्ली की सड़कों को रोशन करने का हो या फिर हरियाली बढ़ाने का, हर बात में सीएजी को घोटाले की बू आ रही है।

सूत्रों की मानें, तो सीधे मुख्यमंत्री को करोड़ों रुपयों के नुकसान का जिम्मेदार ठहराया गया है।

दरअसल राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान आठ सौ किलोमीटर लंबी सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें लगनी थीं। सूत्रों के मुताबिक सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि सरकार ने विदेशी लाइटों को कई गुना महंगे दामों पर खरीदा। मुख्यमंत्री की हरी झंडी के बाद ही विदेशी स्ट्रीट लाइटों की खरीद को हरी झंडी मिली। हर विदेशी लाइट की खरीद पर 25 हजार 704 रुपए से लेकर 32 हजार तक का भारी अंतर पाया गया। सीएजी ने कहा कि पीडब्ल्यूडी, एमसीडी और एनडीएमसी ने विदेशी लाइटों की खरीद पर 31 करोड़ सात लाख रुपए से ज्यादा फूंके। देश में बनी जो स्ट्रीट लाइटें 15 हजार 160 रुपए की कीमत पर मिल रही थीं, विदेश में बनी उसी स्ट्रीट लाइट को 32 हजार रुपए तक में खरीदा गया।

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सीएजी खुद भी दंग है। उसका कहना है कि राजधानी दिल्ली की सड़कों को रोशन करने के लिए कुल 45 करोड़ 80 लाख रुपए अधिक खर्च किए गए। सूत्रों के मुताबिक लाइटें लगाने से पहले दिल्ली की सड़कों को तीन श्रेणियों में बांटा गया था। लेकिन वास्तव में सरकार ने यह बताया ही नहीं कि कौन-सी सड़क किस श्रेणी में आती है। लिहाजा सभी सड़कों को ए श्रेणी की सड़क बताकर एजेंसियों ने विदेशी स्ट्रीट लाइटें लगवा दीं।

हरियाली हुई काली, जमकर हुई धांधली

सूत्रों की मानें, तो सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जरूरत से 20 फीसदी ज्यादा पेड़-पौधे खरीदने की इजाजत दी। सारे विभाग होने के बावजूद सरकार ने पौधे सरकारी नर्सरी में न पैदा कर बाहर से खरीदे।

सूत्रों के मुताबिक सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि राष्ट्रमंडल खेलों से करीब दो साल पहले अगस्त 2008 में ही दिल्ली के मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजा था कि राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी जगहों को सुंदर बनाने के लिए 30 से 50 लाख पेड़-पौधे सरकारी नर्सरी में पैदा किए जाएं। मुख्यमंत्री इस पर सहमत हो गईं, लेकिन सरकारी नर्सरी में पौधे उगाने का फैसला होने के बावजूद पर्यावरण सचिव ने इसकी अनदेखी की।

एक बैठक कर यह तय कर दिया गया कि दूसरी एजेंसियों से 60 लाख पौधे खरीदे जाएंगे। बैठक के तुरंत बाद शीला सरकार ने इस काम के लिए 28 करोड़ रुपए खर्च करने की इजाजत भी दे दी।

साइन बोर्ड के टेंडर में बंदरबांट

फरवरी 2006 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने सड़कों को बेहतर और खूबसूरत बनाने के लिए वर्ल्ड क्लास साइनेज सिस्टम लगाने की बात कही। इस बड़े काम के लिए 3एम इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी से प्रेजेंटेशन लिया गया। इस कंपनी को एवरी डेनिसन नाम की एक दूसरी कंपनी के साथ मिलकर दिल्ली के तिलक मार्ग और राजघाट के बीच और दिल्ली सचिवालय तक जाने वाली फीडर रोड पर एक पायलट प्रोजेक्ट चलाने को कहा गया, ताकि अंदाजा लग सके कि यह साइन बोर्ड दिल्ली का कायाकल्प कैसे करेंगे।

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1.77 करोड़ रुपए की लागत के इस पायलट प्रोजेक्ट को दिल्ली सरकार ने अप्रैल 2006 में ही हरी झंडी दे दी, लेकिन पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ मई 2008 में और खत्म हुआ दिसंबर 2008 में। इसके बाद टेंडर निकले, लेकिन पूरे काम को एक टेंडर से निपटाने के बजाय पीडब्ल्यूडी के तीन जोन के लिए अलग-अलग टेंडर निकले। सीएजी ने अपने ऑडिट के बाद सवाल किया है कि आखिर क्यों सारे काम के लिए एक टेंडर नहीं निकाला गया? ऐसा होने से काम बेहतर और सस्ता होता।

दिल्ली में यह वर्ल्ड क्लास साइनेज लगाने का काम छह महीने में खत्म होना था, और इसकी कुल लागत थी 53.13 करोड़ रुपए, लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2010 तक काम चल ही रहा था। कुल लागत के 53 करोड़ में से 25.06 करोड़ रुपए दिसंबर 2010 तक दिए जा चुके थे, लेकिन इनमें से 2.83 करोड़ रुपए अतिरिक्त सामान (एक्सट्रा आइटम) की मद में दिए गए थे जिसकी पूरी जानकारी नहीं थी।