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F&O में बड़ा बदलाव! NSE ने निफ्टी समेत इन 4 इंडेक्सों का F&O लॉट साइज घटाया, 28 अक्टूबर से लागू

F&O Trading: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज में बदलाव का ऐलान किया है। ये नए बदलाव 28 अक्टूबर 2025 से लागू होंगे। इसके तहत निफ्टी 50 और तीन अन्य प्रमुख इंडेक्स के लॉट साइज घटा दिए गए हैं। NSE के सर्कुलर के मुताबिक, निफ्टी 50 का लॉट साइज अब 75 से घटाकर 65 कर दिया गया है

अपडेटेड Oct 04, 2025 पर 9:14 PM
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F&O Trading: एनएसई ने निफ्टी बैंक का लॉट साइज 35 से घटकर 30 करने का ऐलान किया है

F&O Trading: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज में बदलाव का ऐलान किया है। ये नए बदलाव 28 अक्टूबर 2025 से लागू होंगे। इसके तहत निफ्टी 50 और तीन अन्य प्रमुख इंडेक्स के लॉट साइज घटा दिए गए हैं।

NSE के सर्कुलर के मुताबिक, निफ्टी 50 का लॉट साइज अब 75 से घटाकर 65 कर दिया गया है। वहीं निफ्टी बैंक का लॉट साइज 35 से घटकर 30 हो गया है। इसके अलावा निफ्टी फाइनेंशियल सर्विसेज का लॉट साइज 65 से घटाकर 60 और निफ्टी मिड सेलेक्ट इंडेक्स का लॉट साइज 140 से घटाकर 120 कर दिया गया है। हालांकि, निफ्टी नेक्स्ट 50 इंडेक्स के डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स का लॉट साइज पहले जैसा ही रहेगा।

निवेशक मौजूदा लॉट साइज के साथ 30 दिसंबर 2025 की एक्सपायरी तक ट्रेड कर सकते हैं। इसके बाद किसी भी अवधि के सभी नए कॉन्ट्रैक्ट्स संशोधित लॉट साइज में उपलब्ध होंगे।


NSE की ओर से जारी बयान में कहा गया, “सदस्यों को सलाह दी जाती है कि वे अपने क्लाइंट्स को सूचित करें, जिनके पास पोजिशन है या जो नई पोजिशन लेना चाहते हैं, कि नीचे बताई गई तारीखों से लॉट साइज में बदलाव लागू होंगे।”

निफ्टी के वीकली और मंथली कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए मौजूदा लॉट साइज के साथ आखिरी एक्सपायरी 23 दिसंबर 2025 को होगी, जबकि मंथली निफ्टी और बैंक निफ्टी कॉन्ट्रैक्ट की आखिरी एक्सपायरी 30 दिसंबर 2025 को होगी।

बता दें कि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) समय-समय पर फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज में बदलाव करता रहता है ताकि कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू एक मानक दायरे में बनी रहे। इससे ट्रेडर्स और निवेशकों के लिए कॉन्ट्रैक्ट्स अधिक किफायती बनते हैं।

चूंकि डेरिवेटिव्स लीवरेज्ड इंस्ट्रूमेंट होते हैं, इसलिए ट्रेडर्स को कॉन्ट्रैक्ट की पूरी वैल्यू पहले से नहीं चुकानी होती, लेकिन लॉट साइज उनके एक्सपोजर और मार्जिन आवश्यकता को तय करता है। NSE का मानना है कि इस तरह के संशोधन बाजार की दक्षता और लिक्विडिटी को बनाए रखने में मदद करते हैं।

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