क्या हिंडनबर्ग रिसर्च ने सुप्रीम कोर्ट सहित इंडिया की न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं?

हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच का हिस्सेदारी उन बरमूडा और मॉरीशस फंडों में थी, जिनका इस्तेमाल विनोद अदाणी ने किया था। विनोद अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी के भाई हैं

अपडेटेड Aug 12, 2024 पर 3:30 PM
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3 जनवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ ने सीबीआई जांच या एसआईटी जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेबी इस मामले की व्यापक जांच कर रहा है और उसकी जांच से उसमें भरोसा बढ़ता है।

किसी मजबूत रेगुलेटरी सिस्टम की सबसे जरूरी शर्त में आर्म्स लेंथ और डिसक्लोजर शामिल हैं। खासकर आधुनिक फाइनेंशियल मार्केट्स के लिए यह और भी जरूरी है, क्योंकि आज माउस के सिर्फ एक क्लिक से दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर के अरबों डॉलर का ट्रांजेक्शन होता है। सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच पर लगे हिंडनबर्ग रिसर्च के हालिया आरोपों को हमें इसी नजरिया से देखना होगा।

Arm's Lenghth का मतलब ऐसी बिजनेस डील से है जिसमें बायर्स और सेलर्स स्वतंत्र रूप से फैसले लेते हैं। एक पक्ष दूसरे पक्ष को किसी तरह से प्रभावित करने की कोशिश नहीं करता है। इससे फाइनेंशियल ट्राजेक्शन में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित होती है। इस पैमाने पर देखने पर सेबी (SEBI) की चेयरपर्सन पर हिंडनबर्ग (Hindenburg Research) के उंगली उठाने का क्या मतलब है?

हिंडनबर्ग रिसर्च ने आरोप लगाया है कि माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच का हिस्सेदारी उन बरमूडा और मॉरीशस फंडों में थी, जिनका इस्तेमाल विनोद अदाणी ने किया था। विनोद अदाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अदाणी के भाई हैं। अब माधबी और धवल बुच ने कहा है कि निवेश के ये फैसले सेबी के डायरेक्टर पद पर बुच की नियुक्ति से दो साल पहले लिए गए थे। तब दोनों प्राइवेट सिटीजंस थे और सिंगापुर में रहते थे। ध्यान देने वाली बात है कि इस निवेश को 2018 में बेच (redeem) दिया गया था और इसमें अदाणी ग्रुप की कोई सिक्योरिटीज शामिल नहीं थी।


यह जानकारी अब पब्लिक डोमेन में है, जो डिसक्लोजर के जरूरी सिद्धांतों का अहम हिस्सा है। ऑफशोर इनवेस्टमेंट कंपनी में माधबी बुच और उनके पति का निवेश 2018 में निकाल लिया गया था, जो बुच के सेबी की चेयरपर्सन बनने के चार साल पहले की बात है। कानून के पैमाने पर इस आरोप के सही साबित होने के लिए ऐसे और साक्ष्य की जरूरत है जो यह स्थापित कर सके कि बुच के सेबी की चेयरपर्सन बनने से काफी पहले अदाणी ग्रुप की कंपनियों में यह निवेश किया गया था।

न्यायिक, अर्द्ध-न्यायिक या रेगुलेटरी सिस्टम में अगर कोई व्यक्ति किसी मामले से दूर से भी जुड़ा होता है तो उसे जांच से जुड़ी प्रक्रिया से खुद को बाहर रखना पड़ता है। इसे रिक्यूजल का सिद्धांत कहा जाता है। अदाणी समूह के बारे में हिंडनबर्ग रिसर्च की पहली रिपोर्ट 2023 में आई थी। सबसे उच्च स्तर पर इसकी ज्यूडिशियल और रेगुलेटरी जांच हुई है। हालिया आरोप के बाद बड़ा सवाल यह है कि सेबी चेयरपर्सन ने डिसक्लोजर किया और रिक्यूजल की प्रक्रिया का पालन किया।

सेबी ने 11 अगस्त को कहा कि चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने समय-समय पर जरूरी डिसक्लोजर किया था। उन्होंने संभावित हितों के टकराव से जुड़े मामलों से खुद को अलग किया था। नियामक ने यह भी कहा कि उसने हिंडनबर्ग की तरफ से अदाणी पर लगाए आरोपों की जांच की है और कुल 26 में से अंतिम जांच अब पूरी होने जा रही है।

सेबी ने यह भी कहा कि बुच के सेबी के चेयरपर्सन बनने के बाद सिंगापुर की कंसल्टिंग कंपनियां निष्क्रिय हो गई थीं और और सेबी के डिसक्लोजर में इसकी जानकारी दी गई थी। हिंडनबर्ग के हालिया आरोपों के बाद सेबी के बयान से एक दूसरा अहम सवाल खड़ा होता है: इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट और उसकी तरफ से नियुक्त समिति ने की थी।

3 जनवरी, 2023 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाय चंद्रचूड़ ने सीबीआई जांच या एसआईटी जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेबी इस मामले की व्यापक जांच कर रहा है और उसकी जांच से उसमें भरोसा बढ़ता है। 19 मई, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच करने वाली छह सदस्यों वाली समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया था।

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सेबी ने विदेश में निवेश में अदाणी ग्रुप की तरफ से नियमों का कोई उल्लंघन नहीं पाया और इस मामले की जांच ऐसा सफर हो सकता है जिसकी कोई मंजिल नहीं है। इस समिति के प्रमुख जस्टिस अभय मनोहर थे। वह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस हैं। इस सिमित ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा कि सेबी की तरफ से नियमों के पालन में चूक के कोई सबूत नहीं मिले हैं। फिर भी इसने प्रभावी इनफोर्समेंट पॉलसी की जरूरत बताई।

हिंडनबर्ग रिसर्च का हालिया आरोप सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई जांच को भी खारिज करता है। एक तरह से यह इंडिया की न्यायिक व्यवस्था की निष्पक्षता और पूर्वाग्रह रहित रुख पर उंगली उठाता है। इस वक्त सिर्फ अमेरिकी शॉर्ट सेलर की रिपोर्ट के आधार पर कोई नतीजा निकालना नामुमकिन लगता है। इस दावे के पक्ष में ठोस साक्ष्य होना जरूरी है।

Gaurav Chowdhry

Gaurav Chowdhry

First Published: Aug 12, 2024 3:26 PM

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