गूगल, फेसबुक, टेस्ला के शेयर खरीदना है? जानिए भारत में बैठकर अमेरिकी स्टॉक्स में निवेश का आसान तरीका

US Stocks: क्या आप Apple, Google, Facebook जैसे अमेरिकी दिग्गज कंपनियों के शेयर खरीदना चाहते हैं? यह काम भारत में बैठकर भी मुमकिन है। जानिए क्या है इसका तरीका और कितना लगेगा चार्ज।

अपडेटेड Jun 10, 2025 पर 4:41 PM
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आप सीधे अमेरिका के किसी ब्रोकर के साथ भी अकाउंट खोल सकते हैं।

US Stocks: पिछले कुछ साल से स्टॉक मार्केट में निवेश करने वालों की तादाद तेजी से बढ़ी है। लेकिन, भारत ही नहीं, अमेरिकी शेयर बाजार में भी मुनाफा कमाने का अच्छा मौका मिल सकता है। बतौर निवेशक Apple, Google, Facebook, Teslaऔर General Motors जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों के शेयर खरीदना पोर्टफोलियो को काफी डायवर्सिफाइड कर सकता है। इससे न सिर्फ आपके पैसों को बढ़ने का नया जरिया मिलेगा, बल्कि आपका निवेश भी अलग-अलग जगह बंट जाएगा। इससे जोखिम थोड़ा कम हो जाता है।

ऐसे में सवाल उठता है कि भारत में कोई अमेरिकन ब्रोकर है नहीं, तो वहां के शेयर बाजार में निवेश कैसे होगा? इसका जवाब है भारतीय प्लेफॉर्म्स के जरिए। दरअसल, कई घरेलू प्लेटफॉर्म्स ने ऐसा इंतजाम कर दिया है, जिससे आप आसानी से अमेरिकी कंपनियों के शेयर खरीद सकते हैं।

अमेरिका में निवेश करने के दो रास्ते


भारतीय निवेशक अमेरिका के शेयर बाजार में दो तरीकों से पैसे लगा सकते हैं:

डायरेक्ट इनवेस्टमेंट: इसमें आप सीधे अमेरिकी कंपनियों के शेयर खरीदते हैं।

इनडायरेक्ट इनवेस्टमेंट: इसमें आप म्यूचुअल फंड या ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) के जरिए पैसा लगाते हैं, जो आगे चलकर अमेरिकी शेयरों में निवेश करते हैं।

डायरेक्ट इनवेस्टमेंट के लिए अकाउंट कैसे खोलें?

अब बहुत से भारतीय ब्रोकर्स ने अमेरिकी ब्रोकर्स से हाथ मिला लिया है। इसका मतलब है कि आप अपने जाने-पहचाने भारतीय ब्रोकर के जरिए ही अमेरिका में ट्रेडिंग अकाउंट खोल सकते हैं। इसके लिए आपको कुछ जरूरी कागजात देने होंगे। बस एक बात का ध्यान रखें कि इसमें कुछ पाबंदियां हो सकती हैं, जैसे आप कौन से प्रोडक्ट खरीद सकते हैं या कितनी बार ट्रेडिंग कर सकते हैं।

साथ ही, इसमें लगने वाले खर्चों को भी समझना जरूरी है। ब्रोकरेज फीस (शेयर खरीदने-बेचने का शुल्क) और करेंसी बदलने का खर्च (रुपये को डॉलर में बदलने का खर्च) थोड़ा ज्यादा हो सकता है।

विदेशी ब्रोकर के साथ अकाउंट खोलने का तरीका

आप सीधे अमेरिका के किसी ब्रोकर के साथ भी अकाउंट खोल सकते हैं, जैसे Charles Schwab, Ameritrade, या Interactive Brokers। ये ब्रोकर्स अक्सर आपको निवेश के ज्यादा विकल्प देते हैं। अकाउंट खोलने से पहले इनकी फीस और ट्रेडिंग की शर्तों को अच्छे से समझना जरूरी होता है।

इन-डायरेक्ट इनवेस्टमेंट कैसे करें?

म्यूचुअल फंड: अगर आप सीधे शेयर खरीदने के झंझट में नहीं पड़ना चाहते, तो म्यूचुअल फंड एक अच्छा तरीका है। कुछ म्यूचुअल फंड ऐसे होते हैं, जो मुख्य रूप से अमेरिकी शेयरों में ही पैसा लगाते हैं। इसमें आपको अलग से कोई विदेशी अकाउंट खोलने की जरूरत नहीं पड़ती और न ही ज्यादा पैसे जमा करने की शर्त होती है।

ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड): आप उन ETFs में भी पैसा लगा सकते हैं, जो अमेरिकी शेयर बाजार के बड़े-बड़े इंडेक्स (जैसे S&P 500) को ट्रैक करते हैं। कुछ ETFs सीधे अमेरिका में लिस्टेड होते हैं, जिन्हें आप विदेशी ब्रोकर के जरिए खरीद सकते हैं। वहीं, कुछ भारतीय ETFs भी हैं, जिन्हें खास तौर पर इंटरनेशनल इंडेक्स को कॉपी करने के लिए बनाया गया है।

अमेरिकी शेयरों में निवेश के लिए नए ऐप्स

आजकल कुछ नए-नए मोबाइल ऐप्स भी आ गए हैं, जिन्होंने भारतीयों के लिए अमेरिकी शेयरों में निवेश करना और भी आसान बना दिया है। हालांकि, सरकारी नियमों के चलते इन ऐप्स पर शायद आप इंट्राडे ट्रेडिंग (एक ही दिन शेयर खरीदकर बेचना) न कर पाएं।

कितना पैसा लगा सकते हैं अमेरिकी शेयरों में?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने एक नियम बनाया है, जिसे लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) कहते हैं। इसके तहत, एक भारतीय नागरिक बिना किसी खास परमिशन के साल में $250,000 (करीब ₹1.9 करोड़) तक अमेरिका में निवेश कर सकता है।

अमेरिकी शेयरों में निवेश के खर्च

अमेरिका में पैसा लगाने से पहले, आपको कुछ खास खर्चों के बारे में पता होना चाहिए:

  1. सोर्स पर टैक्स कलेक्शन (TCS): अगर आप LRS के तहत एक साल में ₹7 लाख से ज्यादा पैसा भेजते हैं, तो उस पर 5% TCS कटता है। हालांकि, इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करते समय आप इस TCS का रिफंड क्लेम कर सकते हैं।
  2. बैंक चार्ज: बैंक अक्सर रुपये को डॉलर में बदलने और पैसे ट्रांसफर करने के लिए फीस लेते हैं। कभी-कभी खाता खोलने का भी शुल्क लग सकता है।
  3. ब्रोकरेज फीस: ब्रोकर शेयर खरीदने और बेचने पर अपना कमीशन लेते हैं।
  4. फॉरेन एक्सचेंज रेट : रुपये और डॉलर की कीमत ऊपर-नीचे होती रहती है, जिसका असर आपके निवेश की लागत और आपके पास रखे शेयरों के मूल्य पर भी पड़ सकता है।

कैपिटल गेन्स और डिविडेंड टैक्स

अमेरिकी कंपनियों से मिलने वाले डिविडेंड पर भारतीय निवेशकों के लिए 25% टैक्स लगता है। लेकिन, भारत और अमेरिका के बीच एक 'डबल टैक्स अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA)' है। इसकी वजह से आप विदेश में चुकाए गए टैक्स का क्रेडिट भारत में ले सकते हैं। अमेरिका में कैपिटल गेन्स पर कोई टैक्स नहीं लगता, लेकिन अमेरिकी शेयरों से होने वाले मुनाफे पर भारत के टैक्स नियम लागू होंगे।

आखिर क्यों करें अमेरिकी शेयरों में निवेश?

अपने निवेश में अमेरिकी शेयरों को शामिल करने से आपको दो बड़े फायदे हो सकते हैं। पहला, आपका पोर्टफोलियो डायवर्सिफाइ बनता है यानी एक जगह पैसा लगाने का जोखिम कम होता है। दूसरा, आपको दुनिया की कुछ सबसे बेहतरीन कंपनियों में पैसा लगाने का मौका मिलता है। आजकल नए-नए टूल और ऐप आ गए हैं, जिनसे ग्लोबल मार्केट में रिसर्च करना और निवेश करना पहले से कहीं अधिक आसान हो गया है।

हालांकि, किसी भी अंतरराष्ट्रीय निवेश में कुछ जोखिम और खर्चे भी होते हैं। इसलिए, कोई भी फैसला लेने से पहले अपनी वित्तीय स्थिति और कितना जोखिम ले सकते हैं, ये जरूर देख लें।

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डिस्क्लेमर: यहां मुहैया जानकारी सिर्फ सूचना हेतु दी जा रही है। यहां बताना जरूरी है कि मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है। निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें। मनीकंट्रोल की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहां कभी भी सलाह नहीं दी जाती है।

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