इंडसइंड बैंक के स्टॉक का प्रदर्शन बीते 6 महीनों में कमजोर रहा है। इसके कई कारण हैं। बैंक के एसेट क्वालिटी को लेकर चिंता बढ़ी थी। मार्जिन में कमी देखने को मिली थी। सबसे अहम यह कि बैंक के टॉप मैनेजमेंट को लेकर अनिश्चितता की स्थिति थी। यह 10 मार्च से पहले की बात है। 10 मार्च को नए खुलासे के बाद तो इंडसइंड के बड़े संकट में फंसने की आशंका जताई जा रही है। 11 मार्च को इसके शेयरों में जिस तरह से गिरावट आई, उससे लगता है कि इंडसइंड पर निवेशकों के भरोसे को बड़ा झटका लगा है।
अकाउंटिंग में लैप्सेज की खबर ने भरोसे को चोट पहुंचाई है
IndusInd Bank के उदाहरण से यह संकेत मिलता है कि कोई बैंक कमजोर इकोनॉमिक साइकिल, एसेट क्वालिटी पर दबाव और मैनेजमेंट से जुड़ी अनिश्चितता का सामना कर सकता है। लेकिन, अकाउंटिंग में लैप्सेज की खबर बैंक पर निवेशकों के भरोसे को बड़ा चोट पहुंचाती है। अब एनालिस्ट्स इंडसइंड बैंक की हालिया दिक्कतों को नए नजरिए से देखने लगे हैं। पहले, सीएफओ का इस्तीफा और फिर RBI का सीईओ सुमंत कठपालिया को सिर्फ एक साल का एक्सटेंशन देना। इससे कई संकेत मिलते हैं। क्या डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में लैप्सेज और इन दोनों के बीच संबंध है? इस सवाल के जवाब के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
बैंक ने लैप्सेज के बारे में पहले नहीं किया खुलासा
Elara Capital के एनालिस्ट्स का कहना है कि इंडसइंड बैंक ने डेरिवेटिव पोर्टफोलियो के लैप्सेज का खुलासा करने के लिए जो समय चुना है, वह थोड़ा असामान्य लगता है। यह खुलासा तब हुआ है जब आरबीआई ने सुमंत कठपालिया को तीन साल का एक्सटेंशन देने से इनकार कर दिया। अब कुछ सवाल खड़े होते हैं-पहला, इंडसइंड बैंक ने डेरिवेटिव पोर्टफोलियो के लैप्सेज के बारे में पहले क्यों नहीं बताया? दूसरा, इतना बड़ा लैप्सेज कैसे मुमकिन है जब बैंक में लगातार ऑडिट होती रहती है? तीसरा, कैसे यह मसला 5 साल से ज्यादा समय तक छुपा रहा? ये ऐसे सवाल हैं जो इंडसइंड बैंक का हर इनवेस्टर जानना चाहता है।
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क्या आगे और खराब खबरें आ सकती हैं?
अब निवेशकों की नजरें इस बात पर लगी हैं कि क्या जो सबसे खराब बात थी, वह सामने आ चुकी है या आगे और खराब खबरें आने वाली हैं। पिछले कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखते हुए अभी इस बारे में कुछ अंदाजा लगाना मुश्किल है। बैंक के बिजनेस से कई रिस्क जुड़े होते हैं। बैंक का मैनेजमेंट जो भी फैसला लेता है, उससे कुछ रिस्क जुड़े होते हैं। इस रिस्क के बीच मैनेजमेंट को ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं, जो हर कसौटी पर खरे उतर सकें। इनवेस्टर्स का भरोसा बनाए रखने के लिए यह जरूरी है। अगर इनवेस्टर्स के भरोसे को चोट लगती है तो इसकी भरपाई में लंबा वक्त लगता है। यह भी जरूरी नहीं कि उसकी भरपाई हो जाए।