Spectrum auction : रिलायंस जियो ने भारतीय टेलीकॉम रेग्युलेटरी बॉडी ट्राई से मोबाइल सैटेलाइट सेवाओं (MSS) के लिए पारंपरिक रूप से उपयोग किए जाने वाले L और S स्पेक्ट्रम बैंड को टेलीकॉम ऑपरेटरों के लिए होने वाले नीलामी ढांचे के तहत लाने का आग्रह किया है। उसका कहना है कि ये फ्रीक्वेंसीज उपग्रह-आधारित डायरेक्ट-टू-डिवाइस (डी2डी) कम्युनिकेशन और भविष्य के 6जी इनोवेशन को पूरा करने के लिए बहुत जरूरी हैं।
स्पेक्ट्रम नीलामी पर जारी किए गएट्राई के कंसल्टिग पेपर पर अपनी प्रतिक्रिया में, जियो ने कहा कि सैटेलाइट-टू-फ़ोन कनेक्टिविटी के लिए L (1-2 GHz) और S (2-4 GHz) बैंड का ग्लोबल स्तर पर बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहा है। भारत को भी इन्हें अपनी IMT स्पेक्ट्रम योजना से बाहर नहीं रखना चाहिए। जियो ने कहा, "L और S बैंड को IMT स्पेक्ट्रम के बराबर माना जाना चाहिए और नीलामी में शामिल किया जाना चाहिए। इससे एक इंटग्रेटे, सॉफ़्टवेयर-डिफाइंड नेटवर्क ढांचा तैयार होगा जो 6G के अंतर्गत D2D और दूसरे नॉन-टेरेस्ट्रियल इनोवेशनों को सपोर्ट करेगा और सर्विस प्रोवाइडरों को व्यापक कवरेज प्रदान करेगा।
रिलायंस जियो ने बताया कि स्टारलिंक जैसी ग्लोबल कंपनियां पहले से ही डी2डी सेवाओं के लिए 1600 मेगाहर्ट्ज-2600 मेगाहर्ट्ज रेंज में स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे उसके सेटलाइट अच्छी तरह "आकाश में बेस स्टेशन" की तरह काम कर रहे हैं। इसी तरह, ग्लोबलस्टार के साथ ऐप्पल की साझेदारी आईफोन सैटेलाइट कनेक्टिविटी के लिए एस-बैंड का इस्तेमाल करती है। जियो ने कहा, "भारत के ऑक्शन फ्रेमवर्क में इन बैंडों को शामिल करने से ग्लोबल और घरेलू दोनों ऑपरेटरों को डेडीकेटेड स्पेक्ट्रम क्षमताओं के साथ उभरते डी2डी बाजार में प्रवेश करने का अवसर मिलेगा।"
अपर 6 गीगाहर्ट्ज बैंड के लिए को-इग्ज़िस्टेंस टेस्टिंग की मांग
जियो ने अपर 6 गीगाहर्ट्ज़ बैंड (6425-7125 मेगाहर्ट्ज़) में IMT-आधारित सेवाओं और सैटेलाइट-आधारित अपलिंक ऑपरेशन के बीच को-इग्ज़िस्टेंस सुनिश्चित करने पर ट्राई के फोकस का भी समर्थन किया। लेकिन उसने यह भी कहा है कि बैंड की नीलामी से पहले इस मुद्दे का अध्ययन किया जाना चाहिए। जियो ने कहा," इस स्पेक्ट्रम को IMT के लिए इस्तेमाल करने से पहले अभी काफी समय है, ऐसे मेंबैंड की नीलामी से पहले सैटेलाइट अपलिंक स्टेशनों से आईएमटी बेस स्टेशनों की दूरी निर्धारित करने के लिए एक पायलट टेस्ट करना सही रहेगा।"
कंपनी ने आगे कहा कि दुनिया भर के रेग्युलेटरों द्वारा इस तरह के टेस्ट किए गए हैं। CEPT (यूरोप), अमेरिका की FCC और ऑस्ट्रेलियाई की ACMA जैसी एजेंसियों ने इस तरह के टेस्ट किए हैं। कंपनी ने कहा, "ऑपरेटर बाद में एडिशनल साइट-स्पेसिफिक कोऑर्डिनेशन के जरिए तैनाती को और बेहतर बना सकते हैं, लेकिन IMT ग्रोथ और सेटेलाइट सर्विस की गुणवत्ता,दोनों को सुनिश्चित करने के लिए एक न्यूनतम सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही तय की जानी चाहिए।"