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ये 5 PSU स्टॉक्स शेयर बाजार से हो जाएंगे बाहर? SEBI ने दी नई डीलिस्टिंग नियमों को मंजूरी

शेयर बाजार से कम से कम 5 PSU स्टॉक्स यानी सरकारी कंपनियों के बाहर होने की संभावना बढ़ गई है। खास बात यह है कि इन पांचों कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से भी ज्यादा है। मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने ऐसी सरकारी कंपनियों के स्वैच्छिक डीलिस्टिंग का नया फ्रेमवर्क मंजूर किया है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत या उससे अधिक है

अपडेटेड Jun 19, 2025 पर 6:31 PM
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PSUs Stocks: सेबी के चेयरमैन ने बताया कि फिलहाल 5 लिस्टेड PSUs स्टॉक्स नए नियम के तहत डीलिस्टिंग के लिए योग्य हैं

PSUs Stocks: शेयर बाजार से कम से कम 5 PSU स्टॉक्स यानी सरकारी कंपनियों के बाहर होने की संभावना बढ़ गई है। खास बात यह है कि इन पांचों कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत से भी ज्यादा है। मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने ऐसी सरकारी कंपनियों के स्वैच्छिक डीलिस्टिंग का नया फ्रेमवर्क मंजूर किया है, जिनमें सरकार की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत या उससे अधिक है। सेबी के चेयरमैन तुहिन कांता पांडे ने बताया कि फिलहाल सिर्फ 5 लिस्टेड PSUs स्टॉक्स ही इस नए नियम के तहत डीलिस्टिंग के लिए योग्य हैं।

ये हैं वे 5 कंपनियां जो डीलिस्टिंग की दौड़ में हैं-

1. KIOCL (कुद्रेमुख आयरन ओर कंपनी लिमिटेड)

ये एक माइनिंग कंपनी है, जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में हैं। इस कंपनी में सरकार की 99.03% हिस्सेदारी है। कंपनी का मार्केट कैप ₹17,165.93 करोड़ है। इसके 37,000 के करीब रिटेल शेयरहोल्डर्स हैं जिनकी संख्या FY24 से FY25 के बीच 28% बढ़ी है। बीते तीन महीनों में इसका शेयर करीब 27% चढ़ चुका है। हालांकि पिछले एक साल में इसमें 36% की गिरावट देखी गई है, लेकिन पिछले पांच सालों की अवधि में देखें तो इसने 195% का मल्टीबैगर रिटर्न दिया है।


2. HMT (हिंदुस्तान मशीन टूल्स)

साल 1953 में बनी यह कंपनी कभी अपनी घड़ियों के लिए मशहूर थी। अब इसका मार्केट कैप ₹3,139.37 करोड़ है। FY24 से FY25 के दौरान इसके रिटेल निवेशकों की संख्या 35.47% बढ़ी है। इस कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 93.69% है। पिछले एक महीने में HMT का शेयर 32% चढ़ा है। वहीं पिछले तीन और पांच साल की अवधि में इसने सेंसेक्स से बेहतर प्रदर्शन करते हुए क्रमशः 201% और 358% का शानदार रिटर्न दिया है।

3. ITI Limited (आईटीआई लिमिटेड)

टेलीकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर में कारोबार करने वाली इस कंपनी में सरकार की 90.02% हिस्सेदारी है। इसका मार्केट कैप ₹29,398.34 करोड़ है और इसके 2 लाख से ज्यादा रिटेल निवेशक हैं। इनफैक्ट इन 5 कंपनियों में सबसे अधिक रिटेल शेयरधारक इसी कंपनी के है। पिछले तीन महीनों में इसका शेयर 25% चढ़ा है। वहीं तीन और पांच साल की अवधि में इसने 282% और 248% का रिटर्न दिया है। हालांकि पिछले छह महीनों में इसमें 12% की गिरावट रही है।

4. State Trading Corporation (STC)

यह कंपनी मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स के तहत आथी है। इसमें सरकार की लगभग 90 फीसदी हिस्सेदारी है। इस कंपनी का मार्केट कैप महज 888.6 करोड़ रुपये है, जो इन 5 कंपनियों में सबसे छोटा है। इसके रिटेल निवेशकों की संख्या करीब 25,500 हैं। पिछले एक महीने में STC का शेयर 16% और तीन महीनों में 40% चढ़ा है। वहीं तीन साल की अवधि में इसके शेयरों का भाव लगभग 100 प्रतिशत और पिछले 5 सालों में इसने 228% का रिटर्न दिया है।

5. Fertilisers & Chemicals Travancore (FACT)

इस कंपनी का गठन भारत की आजादी से पहले सन 1943 में ही हो गया था। यह भारत की पहली बड़ी फर्टिलाइजर कंपनी है और इसका मुख्यालय कोच्चि में है। कंपनी का मार्केट कैप ₹64,364.25 करोड़ है, जो इन पांचों PSUs में सबसे बड़ा है। इसमें सरकारी की हिस्सेदारी 90% है और इसके रिटेल निवेशकों की संख्या पिछले एक साल में लगभग 175% बढ़कर 83,610 हो गई है। पिछले तीन महीनों में इसके शेयर में 70% की उछला आई है। वहीं पिछले तीन और पांच साल की अवधि में इसने क्रमशः 910% और 2225% का जबरदस्त रिटर्न दिया है।

सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग की जरूरत क्यों पड़ रही है?

दरअसल शेयर बाजार में बने रहने के लिए इन कंपनियों SEBI के न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग का पालन करना होगा। ये नियम कहता है कि किसी भी कंपनी में प्रमोटर की हिस्सेदारी 75 पर्सेंट से अधिक नहीं हो सकती है। लेकिन अभी सरकार के पास 20 से अधिक ऐसे PSUs हैं जो अभी भी इस न्यूनतम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियम का पालन नहीं कर रही हैं। यानी इन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक है।

SEBI का मानना है कि कई PSUs में सरकार के लिए अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 75% तक लाना संभव नहीं है। ऐसे में इन कंपनियों के डीलिस्टिंग के रास्ते को नए फ्रेमवर्क के जरिए आसान बनाया गया है। लेकिन यहां ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या ये कंपनियां वाकई शेयर बाजार से बाहर जाती हैं या सरकार इनमें अपनी हिस्सेदारी घटाकर उन्हें सूचीबद्ध बनाए रखने का विकल्प चुनती है।

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