ईरान-इजरायल-अमेरिका की लड़ाई को लेकर कनफ्यूजन बढ़ गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सीजफायर का ऐलान करने के बाद आसमान में ईरान के मिसाइलों को देखने को बाद इजरायल को अपना डिफेंस सिस्टम एक्टिवेट करना पड़ा। सवाल है कि मार्केट की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी? दरअसल, इस बार ऐसा लगता है कि मार्केट ने इस लड़ाई को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। इंडियन मार्केट्स को कम समय में दो लड़ाइयों का सामना करना पड़ा। पहले इंडिया और पाकिस्तान की लड़ाई और फिर इजरायल और ईरान की लड़ाई।
सिर्फ लड़ाई शुरू होने पर मार्केट में गिरावट दिखी
जियोपॉलिटिकल टेंशन, टकराव और यहां तक की लड़ाई भी इनवेस्टर्स को डरा नहीं पा रही हैं। लड़ाई की शुरुआत में स्टॉक मार्केट्स में कुछ गिरावट देखने को मिली थी। लेकिन, बाद में मार्केट ने अच्छी रिकवरी दिखाई। यह माना जा रहा था कि ऐसे वक्त सप्लाई और लॉजिस्टिक्स में आई दिक्कतों का असर ग्लोबल इकोनॉमी पर पड़ेगा जब पहले से इनफ्लेशन हाई है और इंटरेस्ट रेट्स को लेकर तस्वीर साफ नहीं है।
लड़ाई के दौरान मार्केट सीमित दायरे में चढ़तेउतरते रहे
इंडिया-पाकिस्तान लड़ाई के वक्त भी शुरू में मार्केट में गिरावट आई थी। लेकिन, बाद में मार्केट में रिकवरी दिखी। ईरान और इजरायल के बीच की लड़ाई की अलग तरह की चुनौतियां हैं। इसके बावजूद ग्लोबल और इंडियन मार्केट्स सीमित दायरे में चढ़ते-उतरते रहे। इसका मतलब यह है कि मार्केट में आया करेक्शन ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया। लेकिन, सिर्फ लड़ाई वह चीज नहीं है, जिसे लेकर इनवेस्टर्स को चिंता करनी चाहिए।
सुस्ती पड़ती ग्रोथ, इंपोर्ट में बाधा और AI हैं मार्केट के डर की वजहें
इनवेस्टर्स को ज्यादा चिंता ग्लोबल इकोनॉमी की सुस्त पड़ती ग्रोथ, देशों के इंपोर्ट के रास्ते में बाधाएं खड़ी करने, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से खत्म होती नौकिरयां और आसमान छूती एसेट प्राइसेज को लेकर होना चाहिए। हाल में टैरिफ वॉर को लेकर एक्पोर्ट्स, सप्लाई चेन और सप्लाई चेन में दिक्कत देखने को मिली है। ग्रोथ बढ़ाने वाले उपायों के अभाव, इंटरेस्ट रेट में कमी की सीमित गुंजाइश और शहरी कंजम्प्शन में सुस्ती कंपनियों की चिंता बढ़ा सकती हैं।
मार्केट के लिए असली चैलेंज अब आने वाला है
यह सही है कि वॉर या टैरिफ को लेकर खींचतान मार्केट के कॉन्फिडेंस को घटाने में नाकाम रहीं। इधर, इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ का मुकाबले दुनिया में कई दूसरा देश करता नजर नहीं आ रहा है। लेकिन, स्थिति बदलते ही मार्केट की तस्वीर बदल सकती है। लिक्विडिटी में कमी और विदेशी निवेशकों के निवेश में बदलाव से मार्केट के लिए बड़ा चैलेंज पैदा हो सकता है। हालांकि, इंडियन मार्केट्स की लंबी अवधि की चाल को समझना मुश्किल नहीं है। ऐसा लगता है कि मार्केट के लिए असली चैलेंज अब आने वाला है।