पिछले दो हफ्तों में कुछ ट्रेडर्स ने ट्विटर (अब X) पर ऐसे ब्रोकर्स की शिकायत की है, जो ट्रेडर्स को अपने ट्रेडिंग टर्मिनल्स के इस्तेमाल की इजाजत देकर अवैध प्रॉपरायटरी डेस्क चला रहे हैं। प्रॉपरायटरी स्टॉक ब्रोकर्स शेयर्स/डेरिवेटिव्स खरीदने और बेचने के लिए खुद की पूंजी का इस्तेमाल करते हैं। मनीकंट्रोल ने ऐसे दो ट्रेडर्स से बात की, जिन्होंने प्रॉपरायटरी ब्रोकिंग फर्मों के जरिए इक्विटी डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग की थी। मार्केट में उन्हें प्रॉप ट्रेडिंग फर्म कहा जाता है।
इस धंधे पर लग सकता है ताला
दोनों ट्रेडर्स ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर यह जानकारी दी। दोनों ने बताया कि इसके लिए जिस तरीके का इस्तेमाल होता है, वह मल्टीलेवल मार्केटिंग (MLM) स्कीमों की तरह है। इसमें प्रॉपरायटरी ब्रोकिंग फर्म ट्रेडर्स को हायर करते हैं, जो अपने तहत ज्यादा ट्रेडर्स हायर करते हैं। ये एक टीम की तरह मिलकर काम करते हैं। लेकिन, NSE की सख्ती की वजह से इस धंधे पर ताला लग सकता है। ऐसे धंधों पर अंकुश लगाने के लिए एनएसई ने अपनी जांच बढ़ाई है।
अपने तहत 10 ट्रेडर्स को मैनेज करने वाले एक ट्रेडर ने बताया, "टीम लीड नियुक्त होने के लिए एक ट्रेडर के लिए एक करोड़ या इससे ज्यादा डिपॉजिट करना जरूरी है। इसके एवज में वह 5 करोड़ या इससे ज्यादा मूल्य के पॉजिशन ले सकता है। यह मुख्य ब्रोकर के साथ हुए समझौते की शर्त पर निर्भर करता है। उसके बाद टीम लीड अपने तहत ऐसे ट्रेडर्स की भर्ती करता है, जिनके पास 10-20 लाख की पूंजी होती है। वह सभी ट्रेडर्स से यह पैसा कलेक्ट कर ब्रोकर को दे देता है। उसके बाद ब्रोकर एक निश्चित फंड रिलीज करता है और हर ट्रेडर के लिए ट्रेडिंग लिमिट तय करता है। यह लिमिट उनके ट्रैक रिकॉर्ड और अनुभव पर निर्भर करती है।"
ट्रेडर्स को प्रॉपरायटरी फर्म अपना एंप्लॉयी बताते हैं
ब्रोकिंग फर्म को डिपॉजिट देने के लिए प्राइवेट फर्म को माध्यम बनाया जाता है। इससे ब्रोकर और ट्रेडर्स के बीच किसी तरह की लेनदेन का सबूत नहीं बचता है। इस तरीके में फर्म के हिसाब से थोड़ा अंतर हो सकता है। कुछ फर्म ट्रेडर्स से सीधे डिपॉजिट एक्सेप्ट करती हैं। इसके लिए वे ऐसे समझौते का इस्तेमाल करती हैं, जिनमें नियम और शर्तों गोलमोल लिखी होती हैं। इसमें गैरकानूनी यह है कि ट्रेडर्स को प्रॉपरायटरी ब्रोकिंग फर्म के पेरोल में एंप्लॉयीज/कंसल्टेंट्स दिखाया जाता है। बताया जाता है कि ये हर महीने फिक्स्ड अमाउंट प्लस कमीशन पर काम करते हैं। लेकिन, वास्तव में ये ब्रोकिंग फर्म के क्लाइंट्स होते हैं।
ऐसे तोड़े जाते हैं स्टॉक एक्सचेंज के नियम
अगर कोई ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज में खुद को प्रॉपरायटरी ट्रेडिंग फर्म घोषित करता है तो उसके क्लाइंट्स नहीं हो सकते। असल में होता यह है कि ब्रोकर्स अपने अप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) फीड इन ट्रेडर्स को ऑफर करते हैं और उन्हें अपने ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर उनके एल्गोरिद्म इस्तेमाल करने की इजाजत देते हैं। इन ट्रे़डर्स को एंप्लॉयीज दिखाने से ये ब्रोकर्स स्टॉक एक्सचेंजों के दो नियमों का उल्लंघन करते हैं। पहला, ट्रेडिंग टर्मिनल्स के इस्तेमाल की इजाजत ब्रोकर्स के सिर्फ अथॉराइज्ड एंप्लॉयीज को है। दूसरा, ब्रोकर्स अपने क्लाइंट्स के ट्रेड को फाइनेंस नहीं कर सकता है।
प्रॉपरायटरी ब्रोकर्स और ट्रेडर्स दोनों का फायदा
इस तरीके के इस्तेमाल से ट्रेडर का फायदा यह है कि उसे रेगुलर ब्रोकिंग फर्म के मुकाबले काफी ज्यादा लेवरेज (leverage) मिल जाता है। आसान शब्दों में एक ट्रेडर जो प्रॉपरायटरी ब्रोकिंग फर्म में एक करोड़ रुपये डिपॉजिट करता है, वह 5 से 15 करोड़ रुपये की पॉजिशन ले सकता है। यह ब्रोकर के साथ उसके समझौते पर निर्भर करता है। यह प्रॉपरायटरी ब्रोकिंग फर्म के लिए भी फायदे का सौदा है, क्योंकि वह ट्रेडर्स को लोन पर दिए गए फंड पर इंटरेस्ट कमाता है, जो करीब सालाना 12 फीसदी होता है। इसके अलावा उसे NSE से एक्सचेंज ट्राजेक्शन टैक्स में तब रिबेट मिल जाता है, जब टर्नओवर एक सीमा से ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा उसका ट्रेडर्स के साथ प्रॉफिट-शेयरिंग अरेंजमेंट होता है।