RBI Policy: आरबीआई के इंटरेस्ट रेट में 25 बीपीएस की कमी करने का इकोनॉमी और मार्केट के लिए क्या है मतलब?

फाइनेंशियल मार्केट्स को इंटरेस्ट रेट घटने की उम्मीद थी। लेकिन, OMO का सपोर्ट मिलने से अतिरिक्त राहत मिली है। बॉन्ड्स यील्ड में गिरावट की उम्मीद है, क्योंकि लिक्विडिटी बढ़ने से सरकार को अपने बॉरोइंग प्रोग्राम को लेकर थोड़ा स्पेस मिल जाएगा

अपडेटेड Dec 05, 2025 पर 10:49 PM
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दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 8.2 फीसदी रही है। लेकिन, आरबीआई ने कुछ इंडिकेटकर्स में नरमी के शुरुआती संकेतों के बारे में बताया है।

आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (एमपीसी) ने रेपो रेट 0.25 फीसदी घटाने का फैसला लिया। इससे रेपो रेट घटकर 5.25 फीसदी पर आ गया। केंद्रीय बैंक ने अपनी मॉनेटरी पॉलिसी का रुख 'न्यूट्रल' बनाए रखा है। एमपीसी के सभी सदस्यों ने एक राय से रेपो रेट में कमी का फैसला लिया। लेकिन, आरबीआई के जिस ऐलान की ज्यादा चर्चा हो रही है, वह एक लाख करोड़ रुपये का ओपन मार्केट पर्चेज ऑपरेशन है।

इनफ्लेशन आरबीआई के अनुमान से कम है

आरबीआई के लिए इंटरेस्ट रेट में कमी करने के लिए यह समय बहुत अनुकूल नहीं था। अक्तूबर में रिटेल इनफ्लेशन ऑल-टाइम लो लेवल पर पहुंच गया। इसमें फूड की कीमतों में तेज गिरावट का हाथ है। कोर इनफ्लेशन में भी नरमी आई है। इससे इनफ्लेशन का आउटलुक आरबीआई के दो महीने पहले के अनुमान के मुकाबले कम नजर आता है।


फिलहाल इनफ्लेशन को लेकर चिंता नहीं

2025-26 में अब सीपीआई इनफ्लेशन 2 फीसदी रहने का अनुमान है। भारत के मामले में यह एक असामान्य डेटा है। 2026-27 की पहली छमाही में रिटेल और कोर इनफ्लेशन 4 फीसदी के टारगेट के करीब रहने के अनुमान से एमपीसी को यह लगा होगा कि इनफ्लेशन को लेकर चिंता की बात नहीं है।

इंटरेस्ट रेट्स पर लिक्विडिटी बढ़ने का ज्यादा असर

बॉरोअर्स यानी लोन लेने वालों का पहला सवाल यह है कि क्या बैंक रेपो रेट में इस कमी का फायदा देंगे? पिछले एक साल में लोन के इंटरेस्ट रेट्स पर मॉनेटरी पॉलिसी से ज्यादा असर लिक्विडिटी का पड़ा है। एक लाख करोड़ रुपये का ओएमओ पर्चेज का मतलब इस बात का संकेत है। सिस्टम में लिक्विडिटी आने से आरबीआई बैंकों पर फंडिंग कॉस्ट में कमी लाने का दबाव बना रहा है।

होम लोन के ग्राहकों को सबसे ज्यादा फायदा

आरबीआई के दबाव का असर लोन के रेट्स पर पड़ेगा। इसका सबसे पहले फायदा होम लोन के ग्राहकों को होगा। वर्किंग कैपिटल के ज्यादा इंटरेस्ट रेट्स के बोझ से दबे एमएसएमई को उम्मीद है कि बैंक इस बार जल्द प्रतिक्रिया देंगे। सेविंग्स करने वालों के लिए कोई राहत नहीं मिलने जा रही। डिपॉजिट पर इंटरेस्ट रेट्स पहले से घट रहा है। लिक्विडिट बढ़ने से उसमें और कमी आ सकती है।

ओएमओ के रूप में अतिरिक्त राहत

फाइनेंशियल मार्केट्स को इंटरेस्ट रेट घटने की उम्मीद थी। लेकिन, OMO का सपोर्ट मिलने से अतिरिक्त राहत मिली है। बॉन्ड्स यील्ड में गिरावट की उम्मीद है, क्योंकि लिक्विडिटी बढ़ने से सरकार को अपने बॉरोइंग प्रोग्राम को लेकर थोड़ा स्पेस मिल जाएगा। इक्विटी मार्केट्स पर अभी भी वैश्विक खबरों और अर्निंग्स से जुड़े संकेतों का ज्यादा असर पड़ने की उम्मीद है।

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कुछ इंडिकेटटर्स में दिख रहे नरमी के संकेत

अगर इकोनॉमी का बात की जाए तो संदेश स्पष्ट है। अब तक ग्रोथ अच्छी रही है। दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 8.2 फीसदी रही है। लेकिन, आरबीआई ने कुछ इंडिकेटकर्स में नरमी के शुरुआती संकेतों के बारे में बताया है। प्राइवेट इनवेस्टमेंट में भी अब बढ़ता दिख रहा है। लेकिन, इसके लिए कम और स्थिर रेट्स का एक लंबा पीरियड चाहिए। इनफ्लेशन में नरमी से आरबीआई के पास इस रफ्तार को बनाए रखने की गुंजाइश है।

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