कैपिटल मार्केट रेगुलेटर SEBI के बोर्ड ने 18 जून की मीटिंग में कई प्रपोजल्स को मंजूरी दी। उनमें से एक यह रहा कि ऐसी पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स (PSU), जिनमें सरकार के पास 90 प्रतिशत या उससे ज्यादा हिस्सेदारी है और जो अपनी मर्जी से शेयर बाजार से डीलिस्ट होना चाहते हैं, उनके लिए सेबी विशेष उपाय शुरू करेगा। इन उपायों में डीलिस्टिंग के लिए दो-तिहाई पब्लिक शेयरहोल्डर्स की मंजूरी की जरूरत से छूट और फ्लोर प्राइस के कंप्यूटेशन का तरीका शामिल है।
वर्तमान नियमों के तहत, अगर किसी PSU में प्रमोटर्स की हिस्सेदारी 90 प्रतिशत तक पहुंचती है, तो डीलिस्टिंग सफल है। इसके अलावा, डीलिस्टिंग के लिए फ्लोर प्राइस को 60 दिन के एवरेज प्राइस और पिछले 26 सप्ताह के सबसे ज्यादा प्राइस जैसे कई प्राइसिंग मैट्रिक्स की मदद से कैलकुलेट किया जाता है। ये नियम पीएसयू के लिए शेयर बाजार से डीलिस्ट होने की लागत को बढ़ाते हैं।
फिक्स्ड प्राइस पर हो सकेगी डीलिस्टिंग
अब डीलिस्ट होने की इच्छा रखने वाले PSU मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नॉर्म को पूरा किए बिना शेयर बाजार से हट सकते हैं। इसके अलावा, डीलिस्टिंग एक फिक्स्ड प्राइस पर हो सकती है। साथ ही ऐसे PSU जिनमें प्रमोटर की होल्डिंग 90 प्रतिशत है, उसकी डीलिस्टिंग के लिए अब दो तिहाई पब्लिक शेयरहोल्डर्स की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।
मीटिंग में और किन प्रपोजल्स पर लगी मुहर
- SEBI नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड प्लेटफॉर्म पर कारोबार करने वाले कुछ शेयर ब्रोकर्स के लिए सेटलमेंट स्कीम शुरू करेगा। इससे उन कारोबारियों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, जिनका पैसा जुलाई, 2013 में एनएसईएल पेमेंट संकट के बाद से अटका हुआ है।
- SEBI के बोर्ड ने ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेट फंड (AIF) के माध्यम से निवेश गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण सुधारों को भी मंजूरी दी। कैटेगरी-1 और 2 AIF को एआईएफ रेगुलेशंस के तहत को-इनवेस्टमेंट स्कीम्स की पेशकश करने की इजाजत देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इससे AIF और निवेशकों को AIF के जरिए नॉन-लिस्टेड कंपनियों में को-इनवेस्टमेंट करने और पूंजी निर्माण को सपोर्ट करने में सुविधा होगी।
- शेयर बाजार में लिस्ट होने की इच्छा रखने वाले स्टार्टअप्स के फाउंडर अब IPO संबंधी ड्राफ्ट जमा करने से कम-से-कम एक साल पहले अलॉटेड 'कर्मचारी शेयर विकल्प' (ESOP) को अपने पास रख सकते हैं।
- SEBI ने उन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के लिए नियमों को सरल बनाने और नियमों के पालन को सुगम बनाने का फैसला किया है, जो खास तौर पर भारत सरकार के बॉन्ड (जी-सेक) में निवेश करते हैं।