सेबी उन मसलों की जांच करेगा जिनकी वजह से इलेक्ट्रॉनिक गोल्ड रिसीट्स (ईजीआर) इंडिया में गोल्ड प्राइस डिस्कवरी के लिए प्रभावी और स्वीकार्य बेंचमार्क नहीं बन पा रहे है। यह पहल सेबी की उस व्यापक स्ट्रटेजी का हिस्सा है, जिसके तहत वह कमोडिटीज मार्केट ईकोसिस्टम को मजबूत बनाना चाहता है और अलग-अलग कमोडिटीज सेगमेंट्स में पार्टिसिपेशन बढ़ाना चाहता है।
Electronic Gold Receipt का मतलब क्या है
Electronic Gold Receipt यानी ईजीआर एक डिजिटल इंस्ट्रूमेंट है, जो फिजिकल गोल्ड को रिप्रजेंट करता है। इसकी ट्रेडिंग स्टॉक एक्सचेंजों में होती है। इसे एक पारदर्शी और एफिशिएंट नेशनल स्पॉट मार्केट बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसके जरिए इनवेस्टर्स डीमैट फॉर्म में गोल्ड में ट्रेडिंग कर सकते हैं। इसे सेबी रेगुलेट करता है।
ईजीआर की स्वीकार्यता के रास्ते की बाधाएं दूर होंगी
SEBI के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने कहा कि रेगुलेटर उन स्ट्रक्चरल, ऑपरेशनल और रेगुलेटरी चैलेंजेज का एनालिसिसि कर रहा है, जो ईजीआर की स्वीकार्यता में बाधा हैं। इस बारे में जिन मामलों पर विचार चल रहा है, उनमें से एक जीएसटी से जुड़े मसलों का असर है। मार्केट पार्टिसिपेंट्स का मानना है कि यह लिक्विडी और व्यापक स्वीकार्यता के रास्ते की बाधा हो सकता है। इंडिया में गोल्ड प्राइस डिस्कवरी में ईजीआर की बड़ी भूमिका निभाने के लिए इन मसलों का समाधान जरूरी है।
2021 में ईजीआर को सिक्योरिटीज के रूप में मान्यता मिली थी
पांडेय ने ये बातें कमोडिटी पार्टिसिपेंट्स एसोसिएशंस ऑफ इंडिया (CPAI) के एक प्रोग्राम में कहीं। सरकार ने दिसंबर 2021 में ईजीआर को सिक्योरिटीज के रूप में मान्यता देकर इस फ्रेमवर्क की कानूनी बनियाद रखी थी। इसके बाद सेबी ने 10 जनवरी, 2022 को जारी एक सर्कुलर के जरिए गोल्ड एक्सचेंज ईकोसिस्टम की शुरुआत की थी। इसमें वॉल्टिंग स्टैंडर्ड्स, ईजीआर क्रिएशन एंड रिडेम्प्शन, इंटरमीडिटरीज के रोल और रिस्क मैनेजमेंट नॉर्म्स सहित व्यापक फ्रेमवर्क शामिल हैं।
कमोडिटीज मार्केट का विस्तार सेबी की प्रायरिटी
इसके बावजूद मार्केट में एक्टिविटी सीमित रही है, जिसके चलते रेगुलेटर दोबारा पार्टिसिपेशन और लिक्विडिटी को प्रभावित करने वाले व्यावहारिक मसलों पर विचार कर रहा है। पांडेय ने यह भी कहा कि कमोडिटीज मार्केट का विस्तार रेगुलेटर की टॉप प्रायरिटी में शामिल है। सेबी ने पुराने मसलों पर विचार के लिए दो वर्किंग ग्रुप बनाए हैं। पहले ग्रुप का फोकस उन चुनौतियों पर है, जिनका सामना एक्सचेंजेज, ब्रोकर्स और दूसरे पार्टिसिपेंट्स को करना पड़ता है।
कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट में गहराई के लिए कदम उठाए जाएंगे
सेबी का दूसरा ग्रुप उन चिंताओं पर विचार कर रहा है, जो फॉर्मर-प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशंस (FPO) की तरफ से व्यक्त की गई हैं। दोनों वर्किंग ग्रुप सुझाव में डेटा आधारित उपाय पेश कर सकते हैं। इनमें एग्रीकल्चरल डेरिवेटिव्स पर प्रतिबंध में नरमी शामिल हो सकती है। सेबी स्टेकहोल्डर्स से भी बातचीत कर रहा है। इस साल जुलाई में सेबी ने एक्सचेंजों, क्लियरिंग कॉर्पोरेशंस, ब्रोकर्स, एफपीओ, डोमेन एक्सपर्ट्स और इंडस्ट्री एसोसिएशंस से बातचीत की थी। इसका मकसद ऐसी पॉलिसी तय करना और उन कदमों की पहचान करना था, जो कमोडिटी डेरिवेटिव्स मार्केट्स में गहराई के लिए जरूरी हैं।