MC Explainer: दुनियाभर के स्टॉक मार्केट्स क्यों क्रैश कर रहे हैं, इनवेस्टर्स को क्या करना चाहिए?
stock market crash: डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ का असर पड़ने का अनुमान था। लेकिन, इसके इतना ज्यादा असर के बारे में किसी ने नहीं सोचा था। 2020 के बाद पहली बार अमेरिकी मार्केट्स में 3 अप्रैल को इतनी बड़ी गिरावट आई है। इंडियन मार्केट्स भी 4 अप्रैल को लगातार दूसरे दिन दबाव में दिख रहे हैं
3 अप्रैल को एसएंडपी500 सूचकांक 4.84 क्रैश कर गया। नैस्डेक 5.97 फीसदी लुढ़का। डाओ जोंस 3.98 फीसदी गिरा।
अमेरिकी स्टॉक मार्केट में 3 अप्रैल को जो हुआ, उसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की होगी। 2 अप्रैल को रेसिप्रोकल टैरिफ के एलान के बाद अमेरिकी स्टॉक मार्केट क्रैश कर गए। एसएंडपी500 सूचकांक 4.84 क्रैश कर गया। नैस्डेक 5.97 फीसदी लुढ़का। डाओ जोंस 3.98 फीसदी गिरा। ट्रंप के टैरिफ ने अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स की हवा निकाल दी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2025 में अब तक नैस्डेक 15 फीसदी गिरा है। ट्रंप ने 20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। तब से अमेरिकी मार्केट में गिरावट जारी है।
अगर इंडियन मार्केट की बात की जाए तो 3 अप्रैल को ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) का इस पर ज्यादा असर नहीं पड़ा। इंडियन मार्केट्स के प्रमुख सूचकांक 1 फीसदी से कम गिरावट के साथ बंद हुए। सवाल है कि आखिर ग्लोबल स्टॉक मार्केट्स में इतनी ज्यादा गिरावट की क्या वजह है? क्या इंडियन मार्केट पर इस गिरावट का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा? निवेशकों को क्या करना चाहिए?
सबसे पहले तो यह समझ लेना जरूरी है कि ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने का मकसद यह है कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को वापस अमेरिका आने के लिए आकर्षित किया जाए। लेकिन, इसका ग्लोबल मार्केट्स पर खराब असर पड़ रहा है। ट्रंप सरकार ने ट्रेड पॉलिसी में बड़ा बदलाव लाने का प्लान बनाया है। इसका मकसद अमेरिकी ट्रेड डेफिसिट में 50 फीसदी तक कमी लाना है। 2024 में अमेरिका का ट्रेड डेफिसिट 1.2 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर था।
अमेरिका ने ट्रेड डेफिसिट घटाने के लिए कई उपाय अपनाने का प्लान बनाया है:
टैरिफ में इजाफा: अमेरिका में आयातित गुड्स पर ज्यादा ड्यूटी लगाने का फैसला पहला कदम है। अमेरिकी सरकार के खास निशाने पर चीन, मैक्सिको, कनाडा और यूरोपीय यूनियन है।
मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाना: अमेरिकी कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करना। इसके लिए सरकार अमेरिका में उत्पादित गुड्स पर टैरिफ खत्म कर देगी। अभी अमेरिका की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी सिर्फ 10 फीसदी है।
डॉलर की वैल्यू में कमी: ट्रंप सरकार डॉलर को कमजोर करना चाहती है। ऐसा करने से अमेरिका में बने गुड्स की प्रतिस्पर्धी क्षमता दूसरे देशों में बढ़ेगी।
फाइनेंशियल इनवेस्टमेंट को हतोत्साहित करना: ट्रंप सरकार चाहती है कि निवेश अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स की जगह अमेरिका के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने पर किया जाए। इसके नौकरियों के मौके बढ़ाने में मदद मिलेगी।
अमेरिकी स्टॉक्स मार्केट्स में गिरावट की वजह
अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स के प्रमुख सूचकांक S&P500 में 7 कंपनियों की 37 फीसदी हिस्सेदारी है। इन कंपनियों को 'Magnificent 7' कहा जाता है। इनमें Apple, Microsoft, Google, Amazon, Nvidia, Tesla और Meta शामिल हैं। इन कंपनियों की मुख्य रूप से तीन चिंताएं हैं। पहला, Apple जैसी कंपनियां अमेरिका से बाहर अपना ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग कर रही हैं। iPhone की 50 फीसदी से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग चीन में होती है। अमेरिका के टैरिफ बढ़ाने से विदेश में बने आईफोन अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे। इससे अमेरिकी कंपनियां दूसरे देशों की जगह अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग करने के लिए प्रोत्साहित होंगी।
दूसरा, ज्यादातर अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों का कारोबार दुनियाभर में फैला हुआ है। हालांकि, यूरोपीय यूनियन इन कंपनियों के लिए सबसे बड़ा बाजार है। अभी अमेरिका ने सिर्फ गुड्स पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया है। उन्होंने सर्विसेज पर टैरिफ नहीं लगाया है। अब यूरोपीय यूनियन जवाबी कार्रवाई में अमेरिकी के सर्विसेज बिजनेस पर चोट करना चाहती है। ईयू पहले ही गलत जानकारियां फैलाने के लिए X पर 1 अरब डॉलर का जुर्माना लगाने का प्लान बना चुकी है। इन उपायों का असर अमेरिका के सर्विसेज बिजनेस पर पड़ेगा।
तीसरा, टैरिफ बढ़ने से अमेरिका में महंगाई बढ़ेगी, जिससे इंटरेस्ट रेट हाई बनी रहेगी। यह टेक्नोलॉजी कंपनियों की वैल्यूएशन के लिए खराब होगा। चौथा, अगर ज्यादा टैरिफ की वजह से ग्लोबल ट्रेड घटता है तो उन कंपनियों पर ज्यादा असर पड़ेगा जिनके रेवेन्यू का बड़ा हिस्सा दूसरे देशों से आता है। इन कंपनियों का रेवेन्यू घट सकता है। इससे अमेरिका में मंदी भी आ सकती है।
डॉलर को कमजोर करने की स्ट्रेटेजी
आम तौर पर अनिश्चितता बढ़ने पर इनवेस्टर्स दूसरे से अपना निवेश निकालते हैं और डॉलर में लगाते हैं। इस बार स्थिति अलग दिख रही है। डॉलर को कमजोर बनाना ट्रंप की स्ट्रेटेजी का हिस्सा है। वह इससे अमेरिका में विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहते हैं। ट्रेड डेफिसिट घटाने की कोशिश से भी डॉलर में कमजोरी आएगी। केंद्रीय बैंक और फंड मैनेजर्स डॉलर में अपना निवेश घटाने की कोशिश करेंगे। वह दूसरे एसेट्स में निवेश बढ़ाएंगे।
इंडिया पर क्या पड़ेगा असर
ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ से भले ही दुनिया में उथलपुथल की स्थिति बनी है। लेकिन, यह कुछ मायनों में इंडिया के लिए फायदेमंद हो सकता है। जून 2024 में विदेशी इनवेस्टर्स का अमेरिकी फाइनेंशियल सिक्योरिटीज में 31.3 लाख करोड़ डॉलर (ट्रिलियन) का निवेश था। इसमें से 17 ट्रिलियन डॉलर अमेरिकी कंपनियों के शेयरों में है और 12.5 ट्रिलियन डॉलर लंबी अवधि के बॉन्ड्स में है। अगर डॉलर कमजोर होता है तो कुछ विदेशी निवेशक अपने निवेश में बदलाव कर सकते हैं। खासकर तब जब उन्हें लगता है कि अमेरिकी स्टॉक मार्केट्स ट्रंप की प्रायरिटी नहीं हैं। ऐसे में इंडिया की ग्रोथ स्टोरी विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकती है।
रेसिप्रोकल टैरिफ का इंडिया की जीडीपी पर सिर्फ 0.60 फीसदी तक असर पड़ने का अनुमान है। इसका मतलब है कि इंडिया पर रेसिप्रोकल टैरिफ का दूसरे देशों के मुकाबले कम असर पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि इंडियन इकोनॉमी की ग्रोथ काफी हद तक घरेलू कंजम्प्शन पर आधारित है। डॉलर के ज्यादा कमजोर होने से रुपये की मजबूती बढ़ेगी। इंडिया का अमेरिका के साथ 45 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस है। इसके उलट चीन, कोरिया, वियतनाम और ताइवान जैसे देश अमेरिको को निर्यात पर काफी ज्यादा निर्भर हैं। रेसिप्रोकल टैरिफ बढ़ने से टेक्सटाइल्स, अपैरल्स, फुटवीयर और इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स के मामले में इंडिया की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ेगी।
इंडिया के लिए रिस्क
विदेशी इनवेस्टर्स की बिकवाली: विदेशी निवेशकों ने सिर्फ मार्च में इंडियन मार्केट्स में 3 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की है। एक समय इंडियन स्टॉक्स में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी 32 फीसदी थी, जो अब घटकर करीब 17 फीसदी पर आ गई है। इंडिया में विदेशी निवेश का ज्यादा पैसा Emerging Market Funds के जरिए आता है। फिलहाल बड़े इमर्जिंग मार्केट्स में कुछ गंभीर आर्थिक दिक्कतें दिख रही हैं, जिससे इंडिया में विदेशी निवेशकों की बिकवाली जारी रह सकती है।
प्रतिद्वंद्वियों का दबाव: इंडिया को ज्यादा रिस्क रेसिप्रोकल टैरिफ से नहीं है बल्कि इसके असर से है। खासकर इससे कि दूसरे देश ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ के जवाब में किस तरह के कदम उठाते हैं। चीन का कुल मर्चेंडाइज ट्रेड डेफिसिट 992 अरब डॉलर है, जिसमें सिर्फ अमेरिका की हिस्सेदारी 360 अरब डॉलर है। अगर यह गुड्स दूसरे देशों में पहुंचता है तो बाजार सस्ते गुड्स से पट जाएंगे। यह लोकल इंडस्ट्रीज के लिए बड़ा रिस्क हो सकता है।
निवेशकों को क्या करना चाहिए?
घरेलू कंजम्प्शन वाली कंपनियों पर फोकस: निवेशकों को उन कंपनियों के स्टॉक्स पर फोकस करने की जरूरत है, जिनके बिजनेसेज में घरेलू मांग की ज्यादा हिस्सेदारी है। Banks, Infrastructure और FMCG कंपनियां इसके उदाहरण हैं।
यूएस टेक्नोलॉजी कंपनियां: अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों से दूर रहने में भलाई है। एक तरफ ट्रंप की पॉलिसी तो दूसरी तरफ यूरोपीय यूनियन की जवाबी कार्रवाई का असर इन कंपनियों पर पड़ने वाला है।
इंडियन फार्मा कंपनियां: इंडियन फार्मा कंपनियों के स्टॉक्स में 3 अप्रैल को तेजी दिखी, क्योंकि रेसिप्रोकल टैरिफ का असर इन कंपनियों पर नही पड़ेगा। अच्छे फंडामेंटल्स और वैल्यूएशन वाली फॉर्मा कंपनियों का अट्रैक्शन बढ़ा है।
लार्जकैप स्टॉक्स: लार्जकैप स्टॉक्स की वैल्यूएशन ठीक लग रही है, जबकि मिडकैप और स्मॉलकैप स्टॉक्स की वैल्यूएशन अब भी ज्यादा है। अगर विदेशी निवेशक लार्जकैप स्टॉक्स में बिकवाली जारी रखते हैं तो इनकी कीमतें और अट्रैक्टिव हो जाएंगी।
डायनेमिक एप्रोच: इंडियन मार्केट्स में गिरावट बढ़ सकती है। अगर दुनिया के बाजार गिरते हैं तो इंडियन मार्केट भी पूरी तरह से अछूता नहीं रहेगा। इंडियन मार्केट्स को इस गिरावट के असर से बाहर निकलने में समय लग सकता है। ऐसे में बाजार में उतारचढ़ाव जारी रह सकता है। आपको इस गिरावट में थोड़ी-थोड़ी खरीदारी करने का मौका मिलेगा।
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डायवर्सिफिकेशन पर फोकस: अमेरिकी डॉलर पर दबाव जारी रहने से गोल्ड की चमक बढ़ेगी। ऐसे में डायवर्सिफिकेशन जरूरी है। अपने इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो में इक्विटी और फिक्स्ड इनकम एसेट्स के साथ गोल्ड को भी शामिल करें।