महाराष्ट्र में महा विकास आघाडी सरकार में तकरार बढ़ती जा रही है। नागरिकता संशोधन कानून हो या NRC और NPR, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने जिस तरह सरकार का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में ले लिया है उससे महाआघाडी की गाड़ी हिचकोले खाने लगी है। कांग्रेस और NCP नागरिकता संशोधन कानून, NRC और NPR का विरोध कर रहे हैं। जबकि उद्धव ठाकरे ने खुलकर CAA और NPR का समर्थन कर दिया है। हालांकि वो NRC के खिलाफ हैं।
भीमा कोरेगांव की हिंसा और एलगार परिषद मामले की जांच के मुद्दे ने भी शिवसेना और NCP-कांग्रेस के बीच खाई पैदा कर दी है। दरअसल, शरद पवार चाहते थे कि भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच राज्य की SIT करे। लेकिन उद्धव ठाकरे ने जांच NIA को सौंप दी। इसे लेकर पवार की नाराजगी बढ़ गई। पवार ने NCP नेताओं के साथ बैठक के बाद भीमा कोरेगांव मामले की जांच SIT से कराने का फैसला कर लिया।
पवार की नाराजगी को देख उद्धव ठाकरे मामला संभालने की कोशिश कर रहे हैं। वो भीमा कोरेगांव और एलगार परिषद के मामले को अलग करके देख रहे हैं।
CAA, NPR और भीमा कोरेगांव मामले को लेकर राज्य सरकार के ढुलमुल रुख पर बीजेपी को उद्धव ठाकरे को घेरने का मौका मिल गया है। बीजेपी का कहना है कि एलगार परिषद मामले की जांच पूरी तरह NIA के अधीन है। राज्य सरकार को इसमें NIA का सहयोग करना पड़ेगा।
सवाल ये है कि क्या महाराष्ट्र सरकार में सब कुछ ठीक चल रहा है? महाआघाडी में हर मुद्दे को लेकर विवाद क्यों है? क्या उद्धव ठाकरे अपने पार्टनर की बातों को दरकिनार कर रहे हैं और अपना रुतबा दिखाना चाहते हैं? या दो विपरीत विचारधाराओं वाले पार्टनर की सरकार का क्या यही हाल होना था?