सोशल मीडिया पर इन दिनों एक खास पोस्ट वायरल हो रहा है, जिसमें एक युवक अपने दादाजी की 1996 की स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) पासबुक दिखाता है। पुराने दौर की बैंकिंग की इस झलक ने इंटरनेट पर हजारों लोगों को भावुक कर दिया है और लोग उस पासबुक की खूबसूरती और नॉस्टैल्जिया में डूब गए हैं। इस वायरल पोस्ट ने आज की डिजिटल बैंकिंग पीढ़ी को बीते जमाने की मेहनत और बैंकिंग सिस्टम की सादगी से रूबरू कराया है।
पासबुक की सुंदरता और डिजाइन
पोस्ट में युवक सबसे पहले पासबुक के कवर की डिजाइन और दादाजी की तस्वीर दिखाता है। कवर पर बैंक का लोगो और नाम बड़े अनोखे ढंग से प्रिंट है, जबकि अंदर की पेज को पलटते-पलटते भारतीय बैंकिंग की पुरानी टर्म्स "निरंतर पेंशन", "नकद प्रमाण पत्र" का भी जिक्र होता है। उस दौर में पेजों पर एंट्री हाथ से या प्रिंटर द्वारा की जाती थी, और हर लेन-देन का उल्लेख पंक्तिबद्ध तरीके से किया जाता था। 1996 में कलर प्रिंटर आना भी यूजर्स के लिए आश्चर्य की बात रही।
पोस्ट में युवक दादाजी की पेंशन एंट्री फोकस में दिखाता है उस समय उनकी पेंशन करीब 5000 रुपए थी, जो कि उस दौर में एक बड़ी रकम मानी जाती थी। इतना ही नहीं, सेविंग्स की रकम 25000 रुपए तक पहुंच चुकी थी, जिससे दर्शक हैरान रह गए। इन आंकड़ों ने काफी यूजर्स को सोचने पर मजबूर कर दिया कि पिछली पीढ़ी कितनी किफायतशीर और सेविंग्स में माहिर थी।
वायरल का कारण और यूजर्स के रिएक्शन
इंस्टाग्राम पर @igovinnd नाम के यूजर ने इस वीडियो को पोस्ट किया और इसे ‘1996 की SBI की सेविंग बुक’ बताया। इस रील को 3.45 लाख से अधिक व्यूज, 6 हजार से ज्यादा लाइक्स और 100 से अधिक कमेंट्स मिल चुके हैं। लोगों ने कमेंट सेक्शन में मजाकिया अंदाज में कहा "अमीर घराने से हो भाई", "1996 में कलर प्रिंटर आ गए थे क्या?", और “दादा ने बिटक्वाइन मिस कर दिए!” कई यूजर्स ने बैंकिंग की इस पुरानी शैली को ‘विंटेज’, ‘क्लासिक’ और ‘एस्थेटिक’ कहा।
पैटर्न और बैंकिंग बदलाव को समझना
अगर पैटर्न की बात करें, तो 1996 की पासबुक और आज की बैंकिंग में जमीन-आसमान का फर्क है। उस वक्त हर ट्रांजैक्शन की मैनुअल एंट्री, फोटो पेज, कागजी प्रमाणपत्र, और पेंशन जैसे टर्म्स बहुत मायने रखते थे। आज डिजिटल बैंकिंग, ऑनलाइन अकाउंट स्टेटमेंट और एप्स का जमाना है, लेकिन पुराने बैंकिंग दस्तावेजों की फीलिंग कुछ अलग ही थी। उस वक्त पासबुक में एंट्री कराना भी एक सुखद अनुभव होता था, जो आज की तेज-रफ्तार तकनीक में कहीं खो सा गया है।