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क्या आप हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने का कर रहे हैं प्लान? तो इन बातों का रखें ध्यान

Porting Health Insurance: आजकल इलाज के खर्चे तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस एक जरूरी निवेश बन चुका है। इससे आप इमरजेंसी और बीमारी के समय अस्पताल के भारी बिलों से बच जाते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि मौजूदा पॉलिसी आपकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती

अपडेटेड Jul 05, 2025 पर 7:13 PM
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Health Insurance Porting: क्या आप भी अपने हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को किसी दूसरी बीमा कंपनी में पोर्ट कर चुके हैं?

Porting Health Insurance: आजकल इलाज के खर्चे तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंस एक जरूरी निवेश बन चुका है। इससे आप इमरजेंसी और बीमारी के समय अस्पताल के भारी बिलों से बच जाते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि मौजूदा पॉलिसी आपकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती। या पॉलिसीहोल्डर हर साल काफी ज्यादा प्रीमियम बढ़ने से परेशान हो जाते हैं। इससे बचने के लिए क्या आप भी अपने हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को किसी दूसरी बीमा कंपनी में पोर्ट कर चुके हैं? या कई बार पोर्ट करा चुके हैं, तो अब थोड़ा संभल जाइए क्योंकि आपको इसका नुकसान भी हो सकता है।

क्या होता है हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करना?

पोर्टेबिलिटी यानी अपनी मौजूदा हेल्थ पॉलिसी को एक बीमा कंपनी से दूसरी में ट्रांसफर करना। इसमें आपके पहले पॉलिसी की कुछ सर्विसएं और वेटिंग पीरियड की क्रेडिट नए प्लान में मिल सकती है। हालांकि, इस प्रोसेस में कई चुनौतियां भी आती हैं, जिन्हें समझना जरूरी है।


1. डॉक्युमेंट और टाइमिंग का झंझट

पोर्टिंग के लिए कई डॉक्यूमेंट देने होते हैं, जैसे कि पुरानी पॉलिसी की जानकारी, क्लेम हिस्ट्री और मेडिकल डिक्लेरेशन। सबसे जरूरी बात पोर्टिंग का रिक्वेस्ट पॉलिसी रिन्यूअल से कम से कम 45 दिन पहले और 60 दिन से पहले नहीं देना चाहिए। अगर ये टाइमिंग चूक गई तो आपकी रिक्वेस्ट रिजेक्ट हो सकती है।

2. प्रीमियम में हो सकता है झटका

आपके पुराने पॉलिसी के कुछ फायदे जैसे लॉयल्टी डिस्काउंट या खास कवरेज जैसे घर पर इलाज की सर्विस नई पॉलिसी में ट्रांसफर नहीं होते। यानी अगर आपने किसी मेडिकल जरूरत के चलते कोई खास सर्विस ली थी, वो नई पॉलिसी में शायद न मिले।

3. वेटिंग पीरियड फिर से शुरू हो सकता है

हालांकि बीमा नियामक संस्था IRDAI के नियमों के अनुसार पुराने वेटिंग पीरियड की क्रेडिट मिलती है, लेकिन कुछ बीमा कंपनियां नई बीमारियों के लिए फिर से वेटिंग पीरियड लगा सकती हैं। इसलिए नई पॉलिसी के नियमों को ध्यान से पढ़ना बहुत जरूरी है।

4. अंडरराइटिंग और रिजेक्शन का खतरा

नई बीमा कंपनी आपका मेडिकल इतिहास देखकर पॉलिसी देने या न देने का फैसला करती है। बुजुर्ग या गंभीर बीमारी वाले व्यक्तियों को ज्यादा प्रीमियम देना पड़ सकता है या पोर्टिंग का रिक्वेस्ट खारिज भी किया जा सकता है।

5. कवरेज में गिरावट या गैप का खतरा

हर पॉलिसी की सर्विस एक जैसी नहीं होतीं। जैसे अगर आपने कोरोना से पहले सिर्फ 3 लाख रुपये की बेसिक पॉलिसी ली थी, तो अब आपको ज्यादा कवरेज की जरूरत हो सकती है। ऐसे में बेहतर होगा कि आप नई पॉलिसी के साथ-साथ टॉप-अप या सुपर टॉप-अप प्लान भी जोड़ें, जो कम कीमत में ज्यादा सुरक्षा देते हैं।

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