अगली बार जब आप किसी ऐप के जरिये खाना ऑर्डर करें, तो बेहद सावधानी बरतें। आपके कार्ट में कुछ ऐसा भी हो सकता है, जिसके लिए आपने कोशिश नहीं की है। कुछ ऐप चालाकी से आपकी खरीदारी में फ्री डिलीवरी के लिए पेड सब्सक्रिप्शन जोड़ देते हैं, जिस पर आम तौर पर लोगों की नजर नहीं जाती है। इस डार्क पैटर्न के तौर पर जाना जाता है, जहां ऐप और वेबसाइट्स यूजर्स को चालाकी से ऐसे एक्शन से जोड़ दिया जाता है, जिसके लिए वे तैयार नहीं थे। एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया एंड पैरलल HQ की हालिया स्टडी के मुताबिक, 53 में से 52 ऐप में इस तरह की चालबाजी वालाल पैटर्न नजर आया।
इन 53 ऐप का कुल डाउनलोड 21 अरब से भी ज्यादा है और इसमें कुल 9 इंडस्ट्रीज शामिल हैं। इन इंडस्ट्रीज में हेल्थ-टेक, फिनटेक, ई-कॉमर्स, डिलीवरी और लॉजिस्टिक्स, कैब बुकिंग और ट्रैवल बुकिंग शामिल हैं। जिन ऐप्स की स्टडी की गई, उनमें ओला, उबर, स्विगी, जोमैटो, पेटीएम, फोनपे, एमेजॉन, मिंट्रा, मेकमाईट्रिप आदि शामिल हैं। ये ऐप कई 'डार्क पैटर्न' का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन रिपोर्ट में 12 पैटर्न देखा गया है, जिसकी पहचान कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री ने भी की है।
इन गड़बड़ियों में प्राइवेसी के साथ छेड़छाड़ का मसला सबसे ज्यादा पाया गया और 79% ऐप यूजर्स को बेवकूफ बनाने के लिए इस तौर-तरीके का इस्तेमाल कर रहे थे। इसके अलावा, 45% ऐप इंटरफेस में छेड़छाड़ कर रहे थे। स्टडी के मुताबिक, ट्रैवल बुकिंग इंडस्ट्री 12 में 9 डार्क पैटर्न का इस्तेमाल कर रही थी, जबकि डिलीवरी और लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री को 8 डार्क पैटर्न इस्तेमाल करने का दोषी पाया गया। हेल्थ-टेक के मामले में यह आंकड़ा 7 डार्क पैटर्न का था।
एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया की CEO और सेक्रेटरी जनरल मनीषा कपूर ने बताया, 'डार्क पैटर्न पसंद के हिसाब से विकल्प चुनने की ग्राहकों की क्षमता सीमित कर देता है। अतिरिक्त प्राइसिंग जैसे कुछ पैटर्न ज्यादा स्पष्ट नजर आते हैं, लेकिन प्राइवेसी ऑप्शंस जैसे विकल्प ढूंढना शायद आसान नहीं होता है।' लिहाजा कुछ 'डार्क पैटर्न' से बचना आपके लिए बेहद जरूरी होता है।