भारत में महिलाओं की बेरोजगारी दर सितंबर में तीन महीने के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई है, जो चिंता का विषय है। हाल ही में जारी पीरियडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के अनुसार, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं में बेरोजगारी दर सितंबर में 5.5% हो गई, जबकि शहरी महिलाओं में यह दर 9.3% तक पहुंच गई है। ग्रामीण महिलाओं की बेरोजगारी भी बढ़कर 4.3% हो गई है। पुरुषों की बेरोजगारी भी थोड़ी बढ़ी है, लेकिन महिलाओं में यह वृद्धि अधिक तेजी से हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार, कुल श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में सुधार देखा गया है, जो सितंबर में 55.3% थी, जो पिछले पांच महीनों में सबसे ज्यादा है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की कामकाजी आबादी में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है, जिससे आर्थिक समावेशन की संकेत मिलते हैं। हालांकि, युवाओं में बेरोजगारी दर लगभग 15% है और युवतियों में यह और भी अधिक, 26.4% तक पहुंच गई है, जो रोजगार अवसरों की कमी को दर्शाता है।
विशेषज्ञ इस बढ़ती बेरोजगारी को महिला रोजगार के लिए बड़ी चुनौती मान रहे हैं, जो आर्थिक विकास की गति को प्रभावित कर सकती है। महिलाओं के रोजगार सृजन, कौशल विकास और समान अवसर प्रदान करने के लिए बेहतर कदम उठाने की जरूरत पर बल दिया जा रहा है ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और समाज का विकास भी सुनिश्चित हो सके।
यह आंकड़े इस बात की अहमियत बताते हैं कि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाना न सिर्फ सामाजिक समानता के लिए जरूरी है, बल्कि भारत के व्यापक विकास के लिए भी अनिवार्य है। सरकार, नीति निर्माता और समाज को मिलकर इसके लिए ठोस योजनाएं बनानी होंगी ताकि महिलाएं रोजगार के बेहतर मौके पा सकें और आर्थिक क्रांति में एक मजबूत हिस्सेदार बन सकें।