दिवाली की रौनक खत्म होते ही बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देशभर में छठ पर्व की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। ये पर्व न केवल सूर्य देव और छठ मईया की आराधना का प्रतीक है, बल्कि इसमें प्रकृति, जल और पवित्रता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में हर नियम और परंपरा का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व होता है। व्रती सूर्योदय और सूर्यास्त के समय अर्घ्य देकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस व्रत की सबसे खास बात ये है कि इसमें पूजा की हर सामग्री चाहे वो प्रसाद हो, सूप, डाला या फल सभी का अपना प्रतीकात्मक अर्थ होता है।
खासकर सात विशेष फल, जिन्हें छठ मईया का प्रिय माना गया है। इन फलों के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए जानते हैं, कौन-से हैं ये सात शुभ फल और क्यों हैं ये इतने खास।
डाभ नींबू सामान्य नींबू से आकार में बड़ा और अंदर से लाल रंग का होता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा और परत काफी मोटी होती है, जिससे ये लंबे समय तक ताज़ा रहता है और कोई पशु-पक्षी इसे जूठा नहीं कर पाता। यही वजह है कि इसे छठ मईया का प्रिय फल माना गया है। पूजा की टोकरी में डाभ नींबू रखना बेहद शुभ माना जाता है।
छठ पूजा में गन्ने का विशेष महत्व होता है। कई घरों में गन्ने का मंडप बनाकर उसके नीचे दीया जलाया जाता है। ये परंपरा शुभ मानी जाती है क्योंकि गन्ना स्थिरता और समृद्धि का प्रतीक है। इसकी पवित्रता के कारण ही व्रती इसे पूजा में जरूर शामिल करते हैं। माना जाता है कि गन्ना छठ मईया को प्रसन्न करता है और घर में सुख-शांति बनाए रखता है।
केला न केवल पोषक फल है बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत शुभ माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसमें भगवान विष्णु का वास होता है। इसीलिए केले को छठ पूजा में खास स्थान दिया गया है। व्रती केले को कच्चा तोड़कर घर पर ही पकाते हैं ताकि ये शुद्ध बना रहे। पूजा में केले को चढ़ाने से व्रती को माता का आशीर्वाद और घर में समृद्धि प्राप्त होती है।
नारियल हर धार्मिक अनुष्ठान का अभिन्न हिस्सा है, और छठ पर्व में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। नारियल को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इसे फोड़ने का अर्थ है अपने अहंकार को तोड़कर पवित्रता से पूजा करना। व्रती नारियल चढ़ाकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की प्रार्थना करते हैं।
सिंघाड़ा यानी जलफल, छठ मईया को बेहद प्रिय माना गया है। ये फल पानी में पनपता है और इसकी बाहरी परत इतनी सख्त होती है कि यह अपवित्र नहीं होता। आयुर्वेद के अनुसार, सिंघाड़ा शरीर को ऊर्जा देता है और व्रत के बाद कमजोरी से बचाता है। इसलिए इसे पूजा में शामिल करना शुभ और स्वास्थ्यवर्धक दोनों माना गया है।
हिंदू परंपरा में सुपारी के बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। सुपारी कठोर और दीर्घकालिक फल है, जिसे देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। छठ पूजा में इसे टोकरी में रखना अनिवार्य है क्योंकि ये स्थायित्व और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है।
सुथनी यानी कच्चा शकरकंद, जिसे मिट्टी से निकालकर लाया जाता है, छठ पूजा में शुद्धता का प्रतीक माना गया है। ये फल धरती माता की देन है और शरीर को ऊर्जा देता है। आयुर्वेद के अनुसार, सुथनी कई बीमारियों से बचाने में मददगार है। इसे पूजा में शामिल करने से व्रती की भक्ति और प्रकृति से जुड़ाव दोनों का संदेश मिलता है।