Margashirsha Purnima vrat katha: आज मार्गशीर्ष पूर्णिमा के व्रत में जरूर सुनें ब्राह्मण धनेश्वर और उसके बेटे देवदास की कथा, जानें इसका महत्व

Purnima vrat katha: आज मार्गशीर्ष पूर्णिमा है। इसे हिंदू धर्म की सबसे पवित्र तिथियों में से एक माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान और व्रत-पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन ब्राह्मण धनेश्वर और उसके बेटे देवदास की कथा सुनने का भी बहुत महत्व है।

अपडेटेड Dec 04, 2025 पर 10:45 AM
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मार्गशीर्ष मास में की गई पूजा, व्रत और दान का फल अन्य मासों की तुलना में कई गुना अधिक मिलता है।

Margashirsha Purnima Vrat Katha: मार्गशीर्ष मास को भगवान श्री कृष्ण का प्रिय मास बताया गया है। श्री कृष्ण ने इसे अपना ही स्वरूप बताया है। यही वजह है कि हिंदू धर्म में इस माह का बहुत महत्व है और इसकी पूर्णिमा तिथि को सबसे शुभ और मंगलकारी तिथियों में से एक माना जाता है। मार्गशीर्ष मास में की गई पूजा, व्रत और दान का फल अन्य मासों की तुलना में कई गुना अधिक मिलता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर गंगा स्नान, दान-पुण्य और जप करने से कई गुना अधिक फल मिलता है, जिससे मानसिक शांति, घर परिवार में स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इसे भक्ति, दान और आध्यात्मिक उन्नति का विशेष अवसर भी माना गया है। इस दिन व्रत करने वाले साधकों को ब्राह्मण धनेश्वा और उसके बेटे देवदास की कथा जरूर सुननी चाहिए। आइए जानें क्या है ये कथा और क्यों है इसका इतना महत्व ?

मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि

पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 4 दिसंबर की प्रातः 08:38 बजे से होगी और इसका समापन 5 दिसंबर की प्रातः 04:43 बजे होगा। इस दिन को मां अन्नपूर्णा, भगवान विष्णु और सूर्य देव की पूजा विशेष फल देने वाली होती है।

ब्राह्मण धनेश्वर और उसके बेटे देवदास की कथा

कांतिका नगर में, धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण अपनी पतिव्रता पत्नी रूपवती के साथ रहता था। वे अमीर थे लेकिन बच्चा न होने से दुखी थे। एक दिन, एक संत भिक्षा मांगने शहर में आए। उन्होंने उनके घर को छोड़कर हर घर से खाना लिया। इससे दुखी होकर, ब्राह्मण ने वजह पूछी। संत ने जवाब दिया कि वह बिना बच्चों वाले घर से भिक्षा नहीं ले सकते।

बहुत दुखी होकर, धनेश्वर ने हल के लिए प्रार्थना की। संत ने उन्हें देवी चंडिका की पूजा करने और पूर्णिमा का व्रत रखने की सलाह दी, जिसमें पूर्णिमा तक हर दिन एक और 32 दीपक जलाए जाएं। धनेश्वर ने पूरी श्रद्धा से निर्देशों का पालन किया। देवी के आशीर्वाद से, रूपवती ने जल्द ही एक सुंदर बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम प्यार से देवदास रखा गया।


जब देवदास बड़ा हुआ, तो उसे उसके चाचा के साथ पढ़ाई के लिए काशी भेजा गया। रास्ते में, एक बारात मिली। दूल्हा अचानक बीमार पड़ गया, और रस्म बचाने के लिए, परिवार ने देवदास से कहा कि वह कुछ समय के लिए दूल्हा बन जाए। पवित्र रीति-रिवाजों के तहत, शादी हुई। बाद में, देवदास ने अपनी दुल्हन को अपनी छोटी उम्र के बारे में बताया। दुल्हन ने हमेशा उसके साथ रहने की कसम खाई, चाहे खुशी हो या दुख। जाने से पहले, उसने उसे एक अंगूठी दी और उससे एक छोटा बगीचा लगाने के लिए कहा। फूलों की हालत उसकी जिंदगी को दिखाती थी। अगर फूल सूख जाते, तो इसका मतलब था कि वह मुसीबत में है।

काशी में, जब उसकी मौत का समय आया, तो एक जहरीले सांप ने देवदास को काटने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा। उसकी मां के व्रत ने उसकी रक्षा की। बाद में, जब यमराज उसकी जान लेने आए, तो देवी पार्वती ने भगवान शिव से उसे बचाने के लिए कहा। उनकी कृपा से देवदास को उसकी जान वापस मिल गई।

उसी समय, उसकी दुल्हन ने देखा कि उसके बगीचे में फूल सूख गए थे और फिर खिल गए। उसे पता चल गया कि उसका पति जिंदा और सुरक्षित है। जल्द ही, देवदास घर लौट आया, और पूरे परिवार ने खुशी मनाई।

इस कथा का महत्व

भगवान कृष्ण ने ये कहानी माता यशोदा को सुनाई थी। कथा कहने के बाद उन्होंने कहा कि जो भी महिला पूरे विश्वास के साथ पूर्णिमा का व्रत रखती है, उसे जीवन भर सुहाग, धन और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है। इस पवित्र व्रत को श्रद्धा के साथ करने वाले भक्तों को भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान विष्णु की कृपा मिलती है, और उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं।

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