साल 1961, गुजरात—एक प्रेम कहानी जिसने समाज की बंदिशों को तोड़ते हुए प्यार को उसकी असली मंजिल तक पहुंचाया। हर्ष और मृदु, दो प्रेमी जो जात-पात की बेड़ियों में बंधे समाज से बगावत कर भाग निकले और एक नई जिंदगी की शुरुआत की। संघर्षों के बावजूद उन्होंने अपने रिश्ते को संवारते हुए एक खुशहाल परिवार बसाया। समय बीता, बच्चे बड़े हुए, फिर नाती-पोते भी आए, लेकिन उनका प्यार जस का तस बना रहा। अब, 80 साल की उम्र में जब उनकी शादी को 64 साल पूरे हो चुके हैं, तो परिवार ने उनके प्यार को एक नया आयाम देने का फैसला किया।
नाती-पोतों ने इस जोड़े की दोबारा शादी करवाई, वो भी पूरे रीति-रिवाजों के साथ। लाल साड़ी में सजी मृदु और कुर्ता-पजामा पहने हर्ष ने जब फिर से एक-दूसरे को वरमाला पहनाई, तो ये सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि प्यार की अमर कहानी का जश्न था।
हर्ष जैन और मृदु ब्राह्मण परिवार से थीं। उनकी प्रेम कहानी स्कूल के दिनों में चिट्ठियों से शुरू हुई, लेकिन उस दौर में अंतरजातीय विवाह को समाज स्वीकार नहीं करता था। जब मृदु के परिवार को उनके प्यार का पता चला, तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया। ऐसे में हर्ष और मृदु के पास सिर्फ दो ही रास्ते थे—या तो परिवार की बात मानकर अलग हो जाएं या फिर अपने प्यार के लिए सबकुछ छोड़ दें। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना और परिवार से बगावत कर भाग निकले।
संघर्षों से भरी नई जिंदगी
बिना किसी सहारे के हर्ष और मृदु ने एक नई जिंदगी की शुरुआत की। संघर्षों के बावजूद उन्होंने एक खुशहाल जीवन बनाया, जहां प्यार की मजबूत नींव थी। उनके बच्चे और नाती-पोते उनकी प्रेम कहानी को सुनते हुए बड़े हुए और इसे सच्चे प्रेम की मिसाल मानते रहे।
नाती-पोतों ने रचाई दादा-दादी की दोबारा शादी
समय के साथ उनके परिवार ने उनकी प्रेम कहानी को सम्मान देने के लिए एक अनोखी योजना बनाई। उनकी 64वीं शादी की सालगिरह को यादगार बनाने के लिए नाती-पोतों ने एक सरप्राइज वेडिंग का आयोजन किया। शादी से पहले दोनों को अलग रखा गया, जिससे वे फिर से दूल्हा-दुल्हन बनने के अनुभव को महसूस कर सकें।
इस बार शादी में वो सभी रस्में निभाई गईं, जो उनकी पहली शादी में छूट गई थीं। अग्नि के चारों ओर उन्होंने सात फेरे लिए और अपने पुराने वादों को फिर से दोहराया। मृदु ने गुजरात की पारंपरिक घरचोला साड़ी पहनी, जबकि हर्ष ने खादी कुर्ता-पजामा और पगड़ी में शादी की रस्में निभाईं।
शादी के दौरान जब मृदु ने लाल साड़ी पहनकर हर्ष को वरमाला पहनाई, तो हर्ष उन्हें बस निहारते ही रह गए। परिवार ने तालियों और खुशी के साथ इस शादी को सफल बनाया। ये शादी सिर्फ एक सालगिरह का जश्न नहीं था, बल्कि ये सच्चे प्रेम की जीत थी।