Covid-19 Variant XFG : पिछले कई दिनों से लगातार कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं। वहीं भारत में कोरोनावायरस का नया वेरिएंट XFG मिला है। अब तक, देश में इसके 163 मामले सामने आ चुके हैं। अभी तक कोविड-19 के ओमिक्रोन वेरिएंट का JN.1 वैरिएंट फैल रहा था, लेकिन पिछले कुछ दिनों में नए XFG वेरिएंट के कई मामले सामने आ चुके हैं। कोरोना वायरस का XFG वेरिएंट बहुत तेज़ी से फैलता है। शरीर की इम्यूनिटी भी इसे जल्दी नहीं पकड़ पाती। आइए जानते हैं XFG वेरिएंट कितना खतरनाक है।
XFG कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) का एक नया सब-वैरिएंट है, जो दो पुराने वेरिएंट के मिलकर बनने से बना है। इसे "रिकंबाइनेंट वेरिएंट" कहा जाता है। इसका मतलब है कि यह वायरस तब बना जब किसी व्यक्ति को एक साथ दो अलग-अलग वेरिएंट से संक्रमण हुआ और दोनों वायरस के जीन आपस में मिल गए। इस मामले में, LF.7 और LP.8.1.2 नाम के दो वैरिएंट मिलकर XFG को बनाते हैं। सबसे पहले इसकी पहचान कनाडा में की गई थी। XFG वेरिएंट, कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन परिवार का हिस्सा है। ओमिक्रॉन वेरिएंट पहली बार 2021 के अंत में सामने आया था और तब से यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा फैलने वाला वेरिएंट रहा है।
भारत में XFG वेरिएंट के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं, जहां अब तक 89 केस मिले हैं। इसके बाद: तमिलनाडु में 16 मामले, केरल में 15, गुजरात में 11 और आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश व पश्चिम बंगाल में 6-6 मामले सामने आए हैं। इन मामलों में से सबसे ज्यादा 159 केस मई 2024 में पाए गए। इसके अलावा, अप्रैल और जून में 2-2 मामले रिपोर्ट हुए हैं।
XFG वैरिएंट पहले के वैरिएंट से अलग क्यों है?
भारतीय वैज्ञानिक XFG वेरिएंट पर बारीकी से नज़र रख रहे हैं क्योंकि इसके स्पाइक प्रोटीन में कुछ खास बदलाव (म्यूटेशन) पाए गए हैं। यह वही हिस्सा है जिससे वायरस इंसानी कोशिकाओं से जुड़ता है और उनके अंदर प्रवेश करता है। द लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, XFG में His445Arg, Asn487Asp, Gln493Glu और Thr572Ile जैसे बदलाव पाए गए हैं। इन म्यूटेशन की वजह से वायरस: इंसानी कोशिकाओं में और आसानी से घुस सकता है, हमारी इम्यून सिस्टम (रोग प्रतिरोधक क्षमता) से बच निकलने में सक्षम हो सकता है और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में तेज़ी से फैल सकता है।
XFG वैरिएंट से कैसे करें बचाव में कैसा है?
कुछ बदलाव XFG वैरिएंट को इंसानी कोशिकाओं से जुड़ने में कमज़ोर बना सकते हैं, यानी यह वायरस पहले जितना आसानी से शरीर में नहीं घुस पाता (इसे वैज्ञानिक कम ACE2 रिसेप्टर बाइंडिंग कहते हैं)। लेकिन कुछ दूसरे बदलाव ऐसे भी हैं जो इसे शरीर की इम्यून सिस्टम से बचने में मदद करते हैं, जिससे यह वायरस प्राकृतिक इम्यूनिटी या वैक्सीन के असर से बच सकता है। इसका मतलब यह है कि भले ही XFG वैरिएंट बहुत तेज़ी से न फैले, लेकिन अगर कोई इससे संक्रमित हो जाता है तो शरीर के लिए इसे हराना मुश्किल हो सकता है। खासकर उन लोगों के लिए जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है या जिन्होंने नए वैक्सीन अपडेट नहीं लिए हैं।