क्या है चीन का 'खतरनाक' 9-9-6 वर्क सिस्टम, Infosys फाउंडर नारायण मूर्ति ने की जिसकी पैरवी

नारायण मूर्ति के हालिया बयान ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या ऐसा सिस्टम विकास को बढ़ावा देता है या केवल कामगारों को खाता है। ये एक बहस का विषय है, जिस पर सभी के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन इससे आइए जानते और समझते हैं, चीन 9-9-6 वर्किंग सिस्टम को...

अपडेटेड Nov 18, 2025 पर 6:31 PM
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अरबपति एन आर नारायण मूर्ति ने प्रोडक्टिविटी, काम लंबे घंटों और वैश्विक मंच पर भारत को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए क्या करना होगा, इस पर अपने विचार रखे हैं

जब भी भारत में वर्क-लाइफ बैलेंस की बात होती है, तो इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति अक्सर चर्चा के केंद्र में देखे जाते हैं। एक बार फिर, 79 साल के अरबपति मूर्ति ने प्रोडक्टिविटी, काम लंबे घंटों और वैश्विक मंच पर भारत को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए क्या करना होगा, इस पर अपने विचार रखे हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में मूर्ति ने चीन के पॉपुलर ‘9-9-6’ वर्क सिस्टम का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके अनुसार युवा भारतीयों को भी इसी तरह काम करना चाहिए।

उनके हालिया बयान ने एक बार फिर सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या ऐसा सिस्टम विकास को बढ़ावा देता है या केवल कामगारों को खाता है। ये एक बहस का विषय है, जिस पर सभी के अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन इससे आइए जानते और समझते हैं, चीन 9-9-6 वर्किंग सिस्टम को...

क्या है चीन का 9-9-6  वर्क सिस्टम?


9-9-6 का मतलब है एक ऐसा वर्क-सिस्टम, जिसमें लोग सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, हफ्ते में छह दिन यानी कुल 72 घंटे काम करते हैं। चीन में तकनीकी क्षेत्र में भारी उछाल के दौरान, दिग्गज टेक कंपनियों ने इसी कल्चर का अपनाया। Alibaba और Huawei जैसी बड़ी कंपनियां अपने कर्मचारियों से लंबे काम के घंटों की उम्मीद करती हैं, और कई बार उनके लिए इतने लंब समय तक काम करने का नियम भी बना दिया जाता है।

इस मॉडल ने चीन के तेज विकास को बढ़ावा दिया, लेकिन इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ी। मजदूरों और वर्करों ने 9-9-6 की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे थकावट, तनाव, टेंशन और निजी जीवन में बिखराव पैदा होता है। कुछ कर्मचारी इसे "आधुनिक गुलामी" कहते हैं।

सरकार ने खत्म कराना पड़ा ये वर्क कल्चर

समय के साथ चिंताएं बढ़ती गईं। Reuters के अनुसार, चीन की सरकार ने आखिरकार हस्तक्षेप किया और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए 2021 में ऐसी शेड्यूल को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।

उसी साल, ByteDance और Tencent जैसी प्रमुख कंपनियों ने सार्वजनिक रूप से इस प्रथा से खुद को अलग कर लिया। पिंडुओडुओ के एक 22 साल के वर्कर की आधी रात के बाद घर लौटते समय अचानक गिरकर मौत हो जाने के बाद बदलाव की मांग और तेज हो गई।

चीन के लेबर कानून अब साफ सीमाएं तय करते हैं। कामगारों को हर दिन आठ घंटे या हफ्ते में 44 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए। ओवरटाइम प्रतिदिन एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए, और विशेष मामलों में इसे तीन घंटे तक बढ़ाया जा सकता है, लेकिन महीने में 36 घंटे से ज्यादा नहीं।

ये प्रतिबंध अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के मानकों के मुताबिक ही हैं।

हालांकि, इन सभी नियमों के बावजूद, कई उद्योगों में अभी भी लंबे काम के घंटे मौजूद हैं। श्रम कानूनों का कमजोर पालन, टारगेट हासिल करने का दबाव और उम्मीद से कम सैलरी के कारण, कई चीनी कामगारों के लिए ओवरटाइम एक कड़वी सच्चाई बनी हुई है।

नारायण मूर्ति ने क्यों कहा ऐसा?

एन.आर. नारायण मूर्ति ने रिपब्लिक टीवी के साथ बातचीत में कहा कि भारत सचमुच चीन को वाकई हराने का सपना देख सकता है, लेकिन इसके लिए देश को वो लगातार मेहनत करनी होगी, जो इस लक्ष्य के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा, "अगर हमारे पास बेहतरीन विचार हैं और हम हर क्षेत्र में शानदार कार्रवाई करें- हर नागरिक, हर नौकरशाह, हर राजनेता, हर कॉर्पोरेट नेता, हर सामाजिक नेता, तो मुझे लगता है कि हम यह कर सकते हैं। लेकिन यह काम आसान नहीं है।"

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि असली बदलाव तभी आएगा, जब व्यक्ति खुद से ज्यादा मानदंड तय करे। मूर्ति ने कहा, "हमें समझना होगा कि यह काम आसान नहीं है। इसके लिए हर एक को अपनी क्रियाओं के लिए उच्च मानदंड स्थापित करना होगा। और उन मानदंडों का योग ही भारत को चीन तक पहुंचाएगा।"

मूर्ति ने चीन के कुख्यात "9-9-6" वर्क कल्चर का जिक्र किया, जिसमें हफ्ते में छह दिन सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक, कुल 72 घंटे काम करना पड़ता है, और सुझाव दिया कि अगर भारत तेजी से प्रगति करना चाहता है, तो भारतीय युवाओं को भी और कड़ी मेहनत के लिए तैयार रहना चाहिए।

उन्होंने वह विचार भी दोहराया जिसने पिछले साल देश में विवाद पैदा किया था कि युवाओं को पहले अपने करियर को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि वर्क-लाइफ बैलेंस पर फोकस करना चाहिए। उनके अनुसार, "पहले जीवन को स्थापित करो और फिर वर्क-लाइफ बैलेंस की चिंता करो।"

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