नेपाल के राजमहल में रक्तपात: 24 साल पहले राजकुमार ने ही गोलियों से भून डाला पूरा राज परिवार, इश्क, इनकार या इन्तिकाम?

आज से 24 साल पहले नेपाल के क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने अपने माता-पिता और भाई-बहनों सहित अपने परिवार के नौ सदस्यों की हत्या कर दी और फिर खुद को भी गोली मार ली। आज करीब दो दशक बाद भी यह सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है कि आखिर होने वाले राजा ने अपने ही परिवार का खून क्यों बहाया

अपडेटेड Jun 01, 2025 पर 4:44 PM
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1 जून 2001 को नेपाल का शाही महल आधुनिक इतिहास के सबसे भयावह नरसंहार का गवाह बना।

1 जून 2001 को नेपाल का शाही महल आधुनिक इतिहास के सबसे भयावह नरसंहार का गवाह बना। क्राउन प्रिंस दीपेंद्र ने अपने माता-पिता और भाई-बहनों सहित अपने परिवार के नौ सदस्यों की हत्या कर दी और फिर खुद को भी गोली मार ली। आज करीब दो दशक बाद भी यह सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है कि आखिर होने वाले राजा ने अपने ही परिवार का खून क्यों बहाया?

वो रात जिसने हमेशा के लिए बदल दिया नेपाल का इतिहास

शाही परिवार मंथली डिनर के लिए काठमांडू के नारायणहिती पैलेस में क्राउन प्रिंस दीपेंद्र के घर पर इकट्ठा हुआ था। यह एक निजी डिनर पार्टी थी, जिसमें कोई सहयोगी नहीं, कोई बॉडी गार्ड नहीं, केवल नजदीकी रिश्तेदार ही थे।


इससे पहले दिन में दीपेंद्र ने अपने रोजमर्रा के काम किए- ऑफिस गए, एक स्टेडियम का निरीक्षण किया, और अपने माता-पिता के साथ एक शाही गुरु के घर गए। लेकिन जो लोग भी उनसे बात करते थे, उन्हें बेचैनी महसूस होती थी। वह चुप रहते थे और ज्यादा कुछ नहीं खाते थे।

शाम तक दीपेंद्र ने काफी शराब पी ली थी। उसने अपनी कथित गर्लफ्रेंड देवयानी राणा को फोन किया और दोनों की बीच तीखी नोकझोंक हुई और बातचीत के बाद बेहोश हो गया। रिश्तेदारों ने उसे आराम करने के लिए कमरे में लिटा दिया। लेकिन कुछ ही देर बाद वह पूरी सैन्य वर्दी में बाहर आया - उसके पास MP5K सबमशीन गन, M-16 राइफल और एक पिस्तौल थी।

वह डाइनिंग हॉल में गया, राजा बीरेन्द्र पर तीन गोलियां चलाईं और फिर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। रानी ऐश्वर्या, भाई निरजन, बहन श्रुति और कई दूसरे राजपरिवार के सदस्य मारे गए।

कुल मिलाकर नौ लोगों की हत्या कर दी गई। इसके बाद दीपेंद्र ने खुद को गोली मार ली, लेकिन कोमा में ही रहे - इतने लंबे समय तक कि उन्हें राजा घोषित कर दिया गया और 4 जून को उनकी मृत्यु हो गई।

राष्ट्र सदमे में, मीडिया मौन

नरसंहार की खबर सबसे पहले विदेशी मीडिया के जरिए फैली। नेपाल के सरकारी टीवी और रेडियो पर सन्नाटा पसरा रहा, सिर्फ गमगीन गाने और महल की तस्वीरें ही चलती रहीं।

शोकग्रस्त नागरिकों ने अपने सिर मुंडवा लिए और शाही अंतिम संस्कार के दौरान सड़कों पर उतर आए। इस घटना के बाद सवाल घूमने लगे: इस रौंगटे खड़े कर देने वाली वारदात के पीछे क्या कारण था? इसके पीछे कौन-या क्या-जिम्मेदार था?

पहली थ्योरी- देवयानी से प्यार!

इस घटना के पीछे सबसे चर्चित थ्योरी में एक थी- दीपेंन्द्र का ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की पोती और नेपाली राजनेता पशुपति राणा की बेटी देवयानी राणा के प्रति प्रेम। शिक्षित और मुखर देवयानी की मुलाकात इंग्लैंड में दीपेंद्र से हुई। उनका रिश्ता गहरा होता गया, लेकिन रानी ऐश्वर्या ने इस विवाह का कड़ा विरोध किया। वह देवयानी के शाही वंश को श्रेष्ठ मानती थीं और उनकी स्वतंत्र प्रकृति को खतरा मानती थीं।

उन्हें अलग करने की बार-बार कोशिशों के बावजूद, दीपेंद्र अड़े रहे। अपने 29वें जन्मदिन पर, उन्होंने अपने परिवार के सामने घोषणा की, "मैं केवल देवयानी से ही शादी करूंगा। अगर कोई इसके खिलाफ जाएगा, तो मैं उसे मार डालूंगा।"

जब बहन श्रुति ने इसका विरोध किया, तो उसने कथित तौर पर उसे थप्पड़ तर मार दिया। ऐसी आशंका थी कि अगर वह पहले शादी कर ले और बेटा पैदा कर ले, तो उसके छोटे भाई निरजन को उत्तराधिकारी घोषित किया जा सकता है।

मई 2001 में, रानी ऐश्वर्या ने कथित तौर पर दीपेंद्र को धमकी दी थी कि अगर वह रिश्ता नहीं तोड़ेंगे, तो वे उनके शाही विशेषाधिकार खत्म कर देंगी। इसके कुछ दिनों बाद ही ये नरसंहार हुआ।

हत्याओं के बाद देवयानी नेपाल छोड़कर भारत में बस गईं और 2007 में उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह के बेटे ऐश्वर्या सिंह से शादी कर ली।

दूसरी थ्योरी: एक विदेशी षड्यंत्र?

कुछ लोगों का मानना ​​है कि इसमें विदेशी खुफिया एजेंसियां ​​शामिल थीं। माओवादी नेता बाबूराम भट्टाराई ने दावा किया कि यह नरसंहार एक राजनीतिक साजिश थी, जिसमें ज्ञानेंद्र, भारत की रॉ, CIA और नेपाल के सेना प्रमुख शामिल थे। राजशाही का विरोध करने वाले माओवादियों को शुरू में दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में यह थ्योरी दम तोड़ गई।

2010 में नेपाल के पूर्व राजदूत चक्र प्रसाद बस्तोला ने आरोप लगाया था कि भारत और अमेरिका की जानकारी के बिना इतनी बड़ी घटना घटित नहीं हो सकती थी। पूर्व शाही सहयोगी बिबेक कुमार शाह ने अपनी किताब ‘माइले देखेको दरबार’ में लिखा है कि माओवादियों को भारत से हथियार मिल रहे थे, शायद अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से। इन दावों के बावजूद, कोई निर्णायक सबूत कभी सामने नहीं आया।

तो क्या सत्ता के लिए हुआ ये नरसंहार? राजा ज्ञानेंद्र का एंगल

इसका शक राजा ज्ञानेंद्र पर भी गया, जो हत्याओं की रात महल से गायब थे। उनके बेटे पारस और पत्नी कोमल बच गए, हालांकि कोमल घायल हो गई। दीपेंद्र और पारस करीब थे, और पारस ने दीपेंद्र के देवयानी के साथ संबंधों का समर्थन किया।

ज्ञानेंद्र के अचानक सिंहासन पर बैठने से लोगों में संदेह और असंतोष देखा गया। पैलेस में नरसंहार के अनुसार, लोगों ने उनके राज्याभिषेक के समय ताली बजाने से परहेज किया, कुछ लोगों ने तो उनके वध के लिए नारे भी लगाए। उन्हें कभी भी राजा बीरेंद्र जैसा प्यार नहीं मिल पाया।

2008 में राजशाही को आधिकारिक तौर पर खत्म कर दिया गया और नेपाल एक गणतंत्र बन गया। फिर भी, राजशाही के प्रति उदासीनता बनी हुई है। राजा ज्ञानेंद्र के पास अभी भी समर्थक हैं और हाल ही में राज शाही को फिर से बहाल करने की मांग फिर से उठी है।

24 साल बाद भी सच्चाई, आधिकारिक चुप्पी, अटकलों और साजिशों की परतों के नीचे दबी हुई है। क्या यह जुनून में किया गया अपराध था? कोई राजनीतिक साजिश? या दोनों का घामलेम? यह साफ है कि 1 जून, 2001 की इस घटना ने न केवल एक परिवार, बल्कि पूरे देश की पहचान की भावना को चकनाचूर कर दिया।

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