80वें संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अपने देश को बाहरी हमलों का शिकार दिखाने की कोशिश की और दावा किया कि पाकिस्तान ने भारत को “खून से लथपथ नाक” दी है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने भारत के सात लड़ाकू विमान गिराए और भारत के हमले को नाकाम किया। लेकिन इन दावों का कोई सबूत पेश नहीं किया गया और भारत ने इन्हें पूरी तरह प्रोपेगैंडा बताया।
शरीफ ने पहलगाम आतंकी हमले पर भी भारत पर आरोप लगाया कि वह घटना को राजनीतिक रंग दे रहा है। जबकि भारत का कहना है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन हैं।
अपने भाषण में शरीफ ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर और वायुसेना प्रमुख जहीर बाबर सिद्दू की जमकर तारीफ की और उनकी बहादुरी को “निर्णायक जीत” बताया। लेकिन पाकिस्तान की सरकारी मीडिया के अलावा इस जीत का कहीं भी कोई सबूत या अंतरराष्ट्रीय पुष्टि नहीं है।
भारत का पक्ष और उपग्रह तस्वीरों से साफ हुआ है कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और उसकी सैन्य ढांचों को गहरा नुकसान पहुंचाया, यहां तक कि इस्लामाबाद के पास स्थित नूर खान एयरबेस भी प्रभावित हुआ।
सबसे चौंकाने वाली बात रही कि शरीफ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की खुलकर तारीफ की और कहा कि उन्होंने युद्ध को रोकने के लिए समय पर मध्यस्थता की। पाकिस्तान ने तो ट्रंप को “नोबेल शांति पुरस्कार” के लिए नामित करने का दावा भी किया। लेकिन भारत ने बार-बार साफ किया है कि 10 मई को हुई संघर्षविराम कोई ट्रंप की पहल नहीं थी, बल्कि भारत-पाक DGMO स्तर की बातचीत का नतीजा थी, जो पाकिस्तान की ही अपील पर हुई थी।
शरीफ ने आगे भारत द्वारा सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को स्थगित करने के फैसले को “युद्ध का ऐलान” कहा और धमकी दी कि पाकिस्तान इन पानी पर अपने हक के लिए लड़ाई लड़ेगा।
इसके अलावा, उन्होंने एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश की और संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की। लेकिन भारत का रुख साफ है—कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और यह केवल भारत-पाक के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा है, किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं होगी। साथ ही भारत ने यह भी कहा कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर सख्त और भरोसेमंद कदम नहीं उठाता, तब तक बातचीत संभव नहीं है।
कुल मिलाकर, शरीफ का भाषण पुराने और झूठे आरोपों को दोहराने जैसा था। उन्होंने कोई नया सबूत नहीं दिया, न ही कोई ठोस रास्ता सुझाया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच का इस्तेमाल भारत को बदनाम करने और सहानुभूति बटोरने के लिए किया।