फर्रुखाबाद के कमालगंज क्षेत्र में सिंघाड़े की खेती इन दिनों तेजी से लोकप्रिय हो रही है। तालाबों की सफाई से लेकर पौध रोपाई तक किसान आधुनिक और असरदार तकनीकें अपनाकर अपनी पैदावार बढ़ा रहे हैं। पहले केवल कुछ ही किसान सिंघाड़े की खेती करते थे, लेकिन अब पूरे क्षेत्र में इसे बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। सिंघाड़ा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली फसल है, इसलिए ये किसानों के लिए आय का एक स्थायी स्रोत बन गया है। तालाब की सतह पर जमी काई और कचरे को साफ करने के बाद पौध रोपाई की जाती है, जिससे फसल स्वस्थ रहती है और उत्पादन भी बेहतर होता है।
कमालगंज के किसान अनिल कुमार जैसे अनुभवी किसान पिछले 30 वर्षों से इस फसल की देखभाल कर आर्थिक रूप से मजबूत बने हुए हैं। सिंघाड़ा ठंड की फसल है और ठंड के मौसम में इसकी कीमत अधिक मिलती है, जिससे किसान सीधे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
तालाब की सफाई और रोपाई का तरीका
सिंघाड़े की फसल तैयार करने के लिए सबसे पहले तालाब की पूरी सफाई की जाती है। तालाब की सतह पर जमी काई को नष्ट करने के लिए छिड़काव किया जाता है। इसके बाद पौध डालकर तालाब को साफ रखा जाता है और उत्पादन बढ़ाया जाता है। सही तैयारी से नुकसान की संभावना कम हो जाती है और फसल स्वस्थ रहती है।
कमालगंज में बढ़ता उत्पादन
पहले केवल कुछ किसान ही सिंघाड़े की खेती करते थे, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। कमालगंज क्षेत्र में लगभग दो दर्जन किसान तालाबों में सिंघाड़े की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं। धीरे-धीरे ये फसल पूरे जिले में फैलती जा रही है।
कमालगंज ब्लॉक के ग्राम महमदपुर अमलैया के अनिल कुमार पिछले 30 वर्षों से सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं। उनके अनुभव और मेहनत से वे आर्थिक रूप से सुदृढ़ बने हुए हैं। उनके इलाके के अन्य किसान भी बड़े पैमाने पर तालाबों में सिंघाड़े की खेती कर लाभ कमा रहे हैं।
सिंघाड़े की खेती के फायदे
कमालगंज नवीन मंडी और जिले के थोक बाजार में सिंघाड़ा 20 से 30 रुपए प्रति किलो बिक रहा है। फुटकर विक्रेता इसे 40–50 रुपए प्रति किलो में बेचते हैं, जिससे सीधे अच्छा मुनाफा होता है। सिंघाड़ा ठंड की फसल है, इसलिए इसकी कीमत ठंड के मौसम में अधिक मिलती है।
सिंघाड़े की रोपाई आमतौर पर मार्च-अप्रैल में की जाती है। फसल सितंबर से नवंबर तक तैयार हो जाती है। सही समय पर रोपाई और कटाई से गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बेहतर होते हैं।
सिंघाड़े की फसल तैयार करने में प्रति बीघा लगभग 3–5 हजार रुपए की लागत आती है, जिसमें उर्वरक और आवश्यक सामग्री शामिल है। प्रति एकड़ 75 क्विंटल तक उत्पादन संभव है। वर्तमान में किसान इस फसल से प्रति एकड़ 50,000 से 70,000 रुपए तक की आमदनी कर पा रहे हैं।
आधुनिक तकनीक से बढ़ता उत्पादन
किसान अब पारंपरिक तरीकों के बजाय आधुनिक तकनीक अपनाकर तालाबों की सफाई और पौध रोपाई कर रहे हैं। इससे सिंघाड़े की पैदावार बढ़ रही है और किसान आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं।
सिंघाड़े की खेती से स्थायी आय
कमालगंज क्षेत्र में सिंघाड़े की खेती कई किसानों के लिए आय का स्थायी साधन बन गई है। कम लागत और उच्च उत्पादन वाली ये फसल किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।